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कौन है अराजक

जे के कर
अरविंद केजरीवाल के धरने पर केन्द्र सरकार की प्रतिक्रिया थी कि यह अराजकतावादी धरना है. उसके जवाब में सोमवार को धरना देते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि हां मैं अराजकतावादी हूं. उन्होंने इस अराजकता को गृह मंत्रालय तक ले जाने की बात कही है.

अरविंद केजरीवाल तथा उनके साथी गण जो कुछ कर रहें हैं, उसे अराजकता की संज्ञा देने का काम केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने किया है. असल में तिवारी जिन परंपराओं में जीते रहे हैं और उनकी पार्टी जिस परंपरा में काम करती रही है, उसमे किसी मुख्यमंत्री का धरना-प्रदर्शन शामिल नहीं रहा है. मंत्री या मुख्यमंत्री को बंद कमरे में रहने और जनता से दूरी बना कर उसे विशिष्ठ बनाए रखना जब परंपरा हो तो अरविंद केजरीवाल जाहिर तौर पर अराजक नज़र आते हैं.

अरविंद केजरीवाल की मांग है कि दिल्ली पुलिस के उन अफसरों को निलंबित किया जाये, जिन पर आरोप है कि उन्होंने सैक्स रैकेट पर छापा मारने से हील हवाला किया था. दिल्ली पुलिस के कुछ अफसरों पर तो एक महिला को जिंदा जला देने वालों का साथ देने का आरोप है.

आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली में जो कार्य कराये जा रहें हैं या जिनकी कोशिश की जा रही है वह तो एक पुनीत कार्य है, जिसे पिछले 15 वर्षो से कांग्रेसी सरकार ने नहीं किया था. केजरीवाल ने पानी को मुफ्त किया है, बिजली के दाम को आधा किया है, बेरोजगारी बढ़ाने वाले प्रत्यक्ष विद्शी निवेश को दिल्ली से खारिज कर दिया है. इसी कारण दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को 28 सीटों पर जीत हासिल करने में मदद दी है. जनता जो चाहती है उसे अराजकतावाद की संज्ञा नहीं दी जा सकती है. जनता टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलकर इतिहास का निर्माण करती है.

इससे पहले भी तो अरविंद केजरीवाल ने अन्ना के आंदोलन में सड़कों पर संघर्ष किया था. उस आंदोलन के समय देश भर में उनके समर्थन में जन उभार देखा गया था. मांग थी जन लोकपाल का कानून लाया जाये. जिससे देश में भ्रष्टाचार को मिटाने में मदद मिले. हां, इतना जरूर है कि संसदीय व्यवस्था को ललकारना या उस पर दबाव डालना कुछ हद तक अराजकतावादी रुझानों से ग्रसित कदम था. जिसे एक बड़ा आंदोलन अपने में समाहित कर लेता है.

सवाल कांग्रेस सरकार के केन्द्रीय मंत्रियों से करने का मन करता है, जिनकी नीतियों से देश में बेरोजगारी बढ़ी है. सरकार के वायदा कारोबार को अनुमति देना जिससे खाद्यानों के दाम बेलगाम हुए हैं. अराजकतावादी तो उन नीतियों को घोषित कर देना चाहिये, जिन्होंने देश में अराजकता फैला रखी है. उन अराजक नीतियों का विरोध करना अराजकता नहीं, प्रगतिशील कदम है.

केन्द्रीय गृह मंत्री जब उन अफसरों को निलंबित करने से इंकार करते हैं, जिन पर सामाजिक रूप से गंभीर आरोप हैं, तब इसकी मांग में धरना-प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक अधिकार के दायरे में आता है. क्या सरकार में आ जाने के बाद किसी राजनीतिक दल का लोकतांत्रिक अधिकार छिन जाता है. केजरीवाल पर यदि अराजकता का आरोप लगता है तो हम तो कहेंगे कि वे एक सकारात्मक अराजकतावादी हैं जिसकी आज के राजनीतिक तथा आर्थिक हालात में जरूरत है. उनके कथित अराजकतावाद से समाज को फायदा ही होने जा रहा है.

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