सावधान ! आपके दूध में है एंटीबायोटिक
नई दिल्ली | इंडिया साइंस वायर: दूध आपके सेहत के लिये खतरनाक साबित हो सकता है. एंटीबायोटिक्स के बढ़ते दुरुपयोग से खाने-पीने की वस्तुओ में भी दवाओं के अवशेष मिलने का खतरा बढ़ रहा है.
एक नए अध्ययन में पता चला है कि बाजार में मिलने वाले खुले दूध में भी एंटीबायोटिक दवाओं की मात्रा लगातार बढ़ रही है.
इसका असर पशुओं के स्वास्थ्य, दूध की गुणवत्ता और दूध का सेवन करने वाले लोगों की सेहत पर पड़ सकता है. भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में यह खुलासा हुआ है.
इस अध्ययन के दौरान गाय के दूध में एजिथ्रोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन नामक एंटीबायोटिक दवाओं के अवशेष सामान्य से अधिक मात्रा में पाए गए हैं.
गाय के प्रति लीटर दूध में भी 9708.7 माइक्रोग्राम एजिथ्रोमाइसिन और 5460 माइक्रोग्राम टेट्रासाइक्लिन की मात्रा पायी गई है. इन दवाओं का उपयोग आमतौर पर पशु चिकित्सा में किया जाता है.
शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में दोनों एंटीबायोटिक दवाओं की स्थिरता को प्रभावित करने वाले तापमान और पीएच मान के स्तर का भी मूल्यांकन किया है.
एंटीबायोटिक दवाओं की अत्यधिक मात्रा गाय की आंतों में पाए जाने वाले बेसिलस सबटिलिस नामक बैक्टीरिया की वृद्धि को बाधित कर सकती है. यह बैक्टीरिया जुगाली करने वाले पशुओं और मनुष्यों की आंतों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है. इस बैक्टीरिया की वृद्धि बाधित होने का असर गाय के स्वास्थ्य एवं उसके दूध की गुणवत्ता पर पड़ सकता है.
शोधकर्ताओं ने दूध के 13 नमूने कर्नाटक के धारवाड़ के विभिन्न डेयरी फार्म से एकत्रित किए हैं और फिर उनका सूक्ष्मजीव परीक्षण किया गया है. दूध में मौजूद तत्वों का पता लगाने के लिए लिक्विड क्रोमैटोग्राफी विश्लेषण किया गया है.
क्रोमैटोग्राफी का उपयोग जटिल मिश्रण में प्रोटीन, न्यूक्लिक एसिड या छोटे अणुओं को अलग करने के लिए किया जाता है.
एजिथ्रोमाइसिन का कहर
एजिथ्रोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक की स्थिरता का पता लगाने के लिए इन दोनों दवाओं पर तापमान और पीएच मान के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है.
एजिथ्रोमाइसिन को 70 से 100 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 24 घंटे रखने पर उसकी स्थिरता एवं सूक्ष्मजीव गतिविधियों में महत्वपूर्ण रूप से कमी देखी गई है.
यह प्रक्रिया टेट्रासाइक्लिन पर दोहराए जाने पर उसकी स्थिरता में भी कमी दर्ज की गई है, पर सूक्ष्मजीव गतिविधि में उल्लेखनीय गिरावट नहीं देखी गई. हालांकि, अम्लीय पीएच मान 4-5 पर दोनों एंटीबायोटिक दवाओं की स्थिरता में गिरावट दर्ज की गई है.
दूध में मिले दोनों एंटीबायोटिक्स का उच्च स्तर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है. अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि उपभोक्ताओं के लिए दूध और उससे बने उत्पादों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कार्रवाई से एंटीबायोटिक दवाओं की स्थिरता को कम किया जा सकता है.
इसके अलावा अध्ययन का निष्कर्ष है कि एंटीबायोटिक्स अवशेषों के लिए दूध की स्क्रीनिंग से पहले इसे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की सख्त आवश्यकता होती है क्योंकि यह खाद्य श्रृंखला के अवशिष्ट संदूषण के खतरे को कम करने में मदद करेगा.
कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़, टोटोरी विश्वविद्यालय, जापान, हज्जाह विश्वविद्यालय, यमन और उम अल-कुरा विश्वविद्यालय, सऊदी अरब के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से यह अध्ययन किया गया है. अध्ययन के निष्कर्ष शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किए गए हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि “इस अध्ययन में पाए गए एंटीबायोटिक का स्तर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है.” यह बात भी पता चली है कि उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित दूध और दूध उत्पादों को सुनिश्चित करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की स्थिरता को कम किया जा सकता है.
शोध करने वालों का कहना है कि इसके अलावा, उपभोक्ताओं तक दूध पहुंचने से पहले उसमें मौजूद एंटीबायोटिक अवशेषों का पता लगाया जाना बेहद अहम होता है क्योंकि यह खाद्य श्रृंखला में हानिकारक संदूषण के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है.
शोधकर्ताओं में कर्नाटक विश्वविद्यालय के माहनतेश कुरजोगी, प्रवीण सतपुते एवं सुदिशा जोगैया, हज्जाह विश्वविद्यालय के यसर हुसैन इस्सा मोहम्मद और टोटोरी विश्वविद्यालय के मोस्तफा अब्देलर्रहमान शामिल थे.