‘पंडा पोथी’ में पाये अपना ‘फेमिली ट्री’
गया | एजेंसी: यदि आप अपना फेमिली ट्री बनाना चाहते हैं तो कम्प्यूटर को छोड़कर पंडा पोथी का सहारा लीजिये. इसमें आपको अपने पुरखों के निवास से लेकर व्यवसाय तक की जानकारी मिल जायेगी. पितृपक्ष के दौरान अगर आप अपने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया पहुंचे हों, लेकिन अपने पुरखों की सही जानकारी नहीं है, तो ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं. आपको इसके लिए बस किसी पंडे का सहारा लेना होगा. अगर आपके पूर्वजों में से कोई भी कभी मोक्षधाम गया आए हों और पिंडदान किया हो तो ‘पंडा पोथी’ में यह सब दर्ज रहता है.
जी हां, पंडा पोथी में 200 से ज्यादा वर्ष तक की जानकारी आपको आसानी से मिल सकती है. यही कारण है कि कई विदेशी अपने पूर्वजों की खोज के लिए भी इन पंडा पोथी का सहारा ले चुके हैं.
गया के पंडों के पास पोथियों की त्रिस्तरीय व्यवस्था है. पहली पोथी इंडेक्स की होती है, जिसमें जिले के बाद अक्षरमाला के क्रम में उस गांव का नाम होता है. इसमें 200 से ज्यादा वर्ष से उस गांव से आए लोगों के बारे में पूरा पता, व्यवसाय और पिंडदान के लिए गया आने की तिथि दर्ज की जाती है.
इसके अलावा दूसरी पोथी को दस्तखत बही कहा जाता है, जिसमें आए लोगों की जानकारी के साथ आए लोगों के हस्ताक्षर होते हैं. इसमें नाम के अलावा नंबर और पृष्ठ की संख्या दर्ज रहती है.
तीसरी पोथी में पूर्व से लेकर वर्तमान कार्य स्थल तक की जानकारी होती है. इस पोथी में किसी गांव के रहने वाले लोग अब कहां निवास कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, इसकी अद्यतन जानकारी दर्ज रहती है.
जानकार बताते हैं कि अगर गांव के अनुसार पूर्वजों की जानकारी नहीं मिल पाती है, तब इस पोथी में वर्तमान निवास से उनकी जानकारी प्राप्त की जाती है.
गया में पिंडदान करने वाले लोग सबसे पहले इस पंडा पोथी के जरिए अपने पूर्वजों को ढूंढते हैं और फिर उस तीर्थ पुरोहित या उनके वंशज के पास पहुंचते हैं, जहां कभी उनके दादा और परदादा ने पिंडदान किया था. इस दौरान आने वाले लोग अपने पूर्वजों के हस्ताक्षर को भी अपने माथे से लगाकर खुद को धन्य समझते हैं.
पिंडदान के लिए आने वाले लोग अपने तीर्थ पुरोहितों या उनके वंशज के मिल जाने के बाद सहजता से उस पंडे द्वारा कर्मकांड कराए जाने के बाद पुरखों के लिए पिंडदान करते हैं.
वैसे आधुनिक समय में कई पंडे ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी वेबसाइट के जरिए कई जानकारियां वेबसाइट पर डाल रखी हैं. इससे भी लोगों को अब पूर्वजों के पंडों की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो रही है.
गयापाल समाज के प्रतिनिधि या स्वयं पंडा वैसे क्षेत्र में भ्रमण भी करते हैं, जहां के लोग उनके यजमान हैं. इस क्रम में वे वैसे लोगों की जानकारी जुटा लेते हैं, जो उस क्षेत्र को छोड़ अन्य शहरों में चले गए हों.
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से पिंडदान के लिए गया आए अशोक पांडेय ने कहा कि अपने पूर्वजों के पुरोहितों के वंशज से पिंडदान कराने में आत्मसंतुष्टि मिलती है. वे कहते हैं कि पिछले एक वर्ष से वे अपने पूर्वज के पंडों की खोज में थे.
इधर, गयापाल पंडा महेश लाल कहते हैं कि भले ही आज लोग ऑनलाइन होने के कारण पिंडदान की जानकारी वेबसाइट और फोन के माध्यम से ले रहे हैं, परंतु पुरखों के दस्तखत और खाता-बही को कंप्यूटराइज करना आसान नहीं है, क्योंकि यह यजमानों की आस्था और मानवीय संवेदना से जुड़ी हुई है.
वे कहते हैं कि सभी पोथियों को लाल कपड़े में बांधकर सुरक्षित रखा जाता है. बरसात से पहले सभी बहियों को धूप में रखा जाता है, ताकि नमी के कारण पोथी खराब न हों. पोथियों को सुरक्षित रखने के लिए रसायनिक पदार्थो का उपयोग भी किया जाता है.