तेल खींच लाया केरी को इराक तक
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: सुन्नी चरम पंथियों द्वारा जारी हिंसा के बीच अमरीका के विदेश मंत्री जॉन केरी सोमवार को इराक की राजधानी, बगदाद पहुंच गये हैं. इस दौरे में जॉन केरी शांति बहाल करने के लिये इराकी प्रधानमंत्री नूरी-अल-मालिकी, विदेश मंत्री होश्यार जेबारी के साथ-साथ शिया-सुन्नी नेताओं से भी मुताकात करेंगे.
इस बीच, इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड लेवंत, आईएसआईएल के आतंकवादियों ने सोमवार को सरकारी सेनाओं के पीछे हटने के बाद अनबर प्रांत में सीरिया की सीमा पर स्थित अल-वालीद और जॉर्डन की सीमा से लगे तुरैबिल क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इससे पहले आईएसआईएल आतंकवादियों ने शुक्रवार को अनबार प्रांत के काएम, रवा, अना और रुतबा शहरों पर भी कब्जा कर लिया था.
गौरतलब है कि आतंकवादियों से लड़ने में इराकी सेना को सलाह देने के लिये 300 अमरीकी सलाहकार वहां मौजूद हैं. जाहिर है कि इराक में अमरीकी सैन्य सलाहकार नाहक ही नहीं गये हैं. इसके पीछे इराक का अकूत तेल का भंडार है जिस पर अमरीका, पश्चिमी देशों के तेल कंपनियों की ताबेदारी बनाये रखना चाहता है.
गौरतलब है कि इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन ने इराकी तेल कंपनियों का सरकारीकरण करके विदेशी तेल कंपनियों को वहां से भगा दिया था. यहां पर यह उल्लेख करना गलत नहीं होगा कि अमरीका ने इराक के तेल के ठिकानों पर कब्जा करने के लिये ही इराक में रासायनिक हथियारों का हव्वा खड़ा किया था.
गौरतलब है कि उस समय इराक में मारे गये सैनिकों तथा वहां अमरीकी जनता के करों से प्राप्त पैसों को खर्च करके, तेल का जो खेल खेला गया था उससे अमरीकी जनता नाराज हो गई थी. इसी कारण से अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा फिर से इराक में सेना भेजने से सतही तौर पर ना-नुकुर कर रहें हैं.
अमरीका की रणनीति है कि सबसे पहले इराक में बातचीत के माध्यम से शांति बहाल करने की कोशिश की जाये. इसीलिये ओबामा प्रशासन ने अपने विदेश मंत्री जॉन केरी को सोमवार को बगदाद भेजा है. इसीलिये यह कहा जा सकता है कि यह सद्दाम हुसैन का भूत है जिसने अमरीका को फिर से इराक आने के लिये मजबूर कर दिया है.