‘चमकीला’ की चमक बाज़ार की चमक है…
मनीष आज़ाद | फेसबुक
बर्टोल्ट ब्रेख्त के नाटकों में संगीत देने वाले ‘हैंस आइस्लर’ ने A Rebel in Music में जनता के बीच ‘लोकप्रिय’ सस्ते संगीत की तुलना देशी शराब से की है, जो दिन भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद निश्चित रूप से जनता को तात्कालिक ‘रिलीफ’ देती है, लेकिन दूरगामी तौर पर यह मेहनतकश जनता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए किसी जहर से कम नहीं होती.
इन सस्ते/अश्लील गानों की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण इनकी धुनें होती हैं, जो कमोवेश लोकधुनों से उठाई गयी होती हैं. हैंस आइस्लर कहते हैं कि लोकधुने प्रकृति के बीच जीवन-संघर्षों से पैदा हुई थी, इसलिए सीधे जनता के दिलों पर असर करती हैं. पूंजीवाद में ये धुनें आमतौर से प्रतिक्रियावादी/यथास्थितिवादी विचारों/मूल्यों की वाहक बन जाती हैं.
अमर सिंह ‘चमकीला’ ऐसे गायकों की कड़ी में महज एक कड़ी भर था. 8 मार्च 1988 को अगर उसकी और उसकी सहगायिका पत्नी अमरजोत को गोली न मारी गयी होती तो शायद ही किसी की उसमे रूचि होती.
जाहिर है, इसी रूचि के कारण इम्तियाज अली ने उस पर यह बहुचर्चित फिल्म बनाई. एक इंटरव्यू में इम्तियाज अली ने ‘चमकीला’ में अपनी रूचि के कारणों का खुलासा करते हुए कहा कि जब अश्लील गाने न गाने के लिए उस पर चारों तरफ से दबाव पड़ रहा था, तो उसने इन दबावों को दरकिनार करते हुए अश्लील गाने गाना जारी रखा.
लेकिन इसका कारण चमकीला की बहादुरी नहीं थी, बल्कि लालच था. इसी चीज ने मुझे चमकीला के साथ कनेक्ट किया.
यह ‘टीना’ [there is no alternative] का दौर है. कलाकारों का भी इससे प्रभावित होना लाजिमी है. इसलिए वे वही फिल्म बनाते हैं, जो जनता पसंद करती है, वही गाने बनाये जाते हैं, जो जनता पसंद करती है. सत्ता में वही बैठता है जिसे जनता पसंद करती है. [people get leaders they deserve] जनता फासीवाद पसंद करती है इसलिए फासीवाद आ जाता है.
यानि अब कला का कोई मकसद नहीं रहा, सिवाय जनता की तथाकथित पसंद का इन्तजार करने के. इसी कारण इम्तियाज अली की टीम फिल्म के प्रमोशन के लिए कपिल शर्मा के शो में भी गयी क्योकि जनता को कपिल शर्मा शो की बेहूदगियां ‘पसंद’ है.
इम्तियाज अली को पता है कि 99 प्रतिशत अश्लील गाने महिलाओं का वस्तुकरण [objectification] करते हैं. इसलिए फिल्म के अंतिम हिस्से में ‘इरशाद कामिल’ के एक प्रभावशाली गाने के माध्यम से महिलाओं द्वारा पुरुष का वस्तुकरण [objectification] करवा दिया है. मामला बराबर. पोर्न फिल्म इंडस्ट्री में भी एक ‘female gaze’ धारा है, जो पोर्न में ‘फीमेल एजेंसी’ को ‘प्रधानता’ देती है.
परंतु असल सवाल तो शरीर के वस्तुकरण को ही खत्म करने का है. चाहे वह शरीर पुरुष का हो या स्त्री का.
जब मंटो पर जनता के स्याह पक्ष को उभारने का आरोप लगा था तो मंटों ने जवाब दिया कि मैं समाज की चोली क्या उतारूंगा, वो तो पहले से नंगी है.
लेकिन मंटो जब जनता के स्याह पक्ष को सामने लाते हैं, तो उसे स्याह पक्ष की तरह ही पेश करते हैं. लेकिन चमकीला के बहाने जब इम्तियाज जनता के स्याह पक्ष को सामने लाते हैं तो उसे उजला बना कर पेश करते हैं. फिल्म के अंत में DSP अपने किशोर बेटे से भावुक अंदाज में कहता है कि जब भी मन करे ‘चमकीला’ को सुन लिया करे. मंटों और इम्तियाज का यही फर्क है.
चमकीला बनाते हुए इम्तियाज ने काफी शोध किया था. जो उनकी इस फिल्म में दिखता भी है. लेकिन क्या उन्होंने चमकीला की पहली पत्नी गुरुमेल कौर से बात की? गुरुमेल कौर का क्या पक्ष है? यह इस फिल्म में नदारद है.
गुरुमेल कौर ने एक हालिया इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने चमकीला के मरने के बाद 5 रुपये प्रतिदिन पर दिहाड़ी की है. चमकीला ने जब दूसरी शादी सह गायिका अमरजोत कौर से की तो उसने अमरजोत और गुरुमेल दोनों को अँधेरे में रखा. और यह बात फिल्म में इतने हल्के और लगभग कॉमेडी की शक्ल में पेश की गयी है कि आश्चर्य होता है कि इम्तियाज अली महिला प्रश्न पर इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं.
जो लोग फिल्म की तारीफ महज इसीलिए कर रहे हैं कि चमकीला दलित समुदाय से था, [हालाँकि उसकी दलित पहचान महज एक डायलाग में रेडुस [reduce] कर दी गयी है, तो उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि चमकीला की पहली पत्नी गुरुमेल भी दलित ही थी.
फिल्म के अंत में इरशाद कामिल का रहमान के खूबसूरत संगीत में रचा गीत ‘अब विदा करो’ अमर सिंह ‘चमकीला’ के नायकत्व को बेहद उचाई प्रदान करते हुए लगभग शहीद का दर्जा दे देता है. जिसके वे कतई हकदार नहीं थे.
बाकी ‘स्प्लिट फ्रेम’, टू डी एनीमेशन, शानदार संगीत, असरदायक अभिनय, कसी एडिटिंग के बारे में तो सभी लिख चुके हैं. उसे मैं दोहराना नहीं चाहता.
लेकिन कोई भी चमक रात को दिन में नहीं बदल सकती.
कला का उद्देश्य चमक पैदा करना भी है, लेकिन यह चमक जीवन से निकलनी चाहिए, जीवन के कृतिम म्यूटेशन से नहीं.
यह फिल्म इस समय नेटफ्लिक्स पर है.