पेशाब पानी अमर वाणी
बिलासपुर | संवाददाता: बिलासपुर के लिये सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा क्या है? इस पर यकीन करना शायद मुश्किल हो, लेकिन बिलासपुर में सबसे बड़ा मुद्दा सीवरेज और उसके लिये खोदी गई सड़के हैं. शहर के भाजपा विधायक और राज्य के कद्दावर मंत्री अमर अग्रवाल को कांग्रेसी महापौर वाणी राव इसी में उलझाने की कोशिश में हैं.
असल में बिलासपुर शहर में घरों के शौचालयों से निकलने वाला मलमूत्र युक्त पानी सीधे ज़मीन में जाता है और फिर वह पीने के पानी के साथ बाहर आता है. बरसों पहले शहर के चिकित्सक और पर्यावरण प्रेमी डाक्टर चंद्रशेखर रहालकर ने शहर के अलग-अलग हिस्सों के ग्राउंड वाटर के नमूने लिये थे. उस समय पहली बार यह सनसनीखेज मामला सामने आया था कि बिलासपुर की आधी से अधिक आबादी मल-मूत्र युक्त पानी पीती है. इसके बाद कुछ और व्यक्तियों ने पीने के पानी की जांच के बाद यह तथ्य सामने लाया कि बिलासपुर में पीने के पानी में मल-मूत्र और उससे संबंधित पदार्थ खतरनाक होने की हद तक घुले-मिले हैं.
केंद्र सरकार की जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन के तहत बिलासपुर में अंडरग्राउंड सीवरेज बनाने की कोई योजना नहीं थी. लेकिन जोड़-तोड़ कर अमर अग्रवाल इस परियोजना को बिलासपुर के लिये स्वीकृत करा लाये और आनन-फानन में काम भी शुरु कर दिया.
अमर अग्रवाल को यह उम्मीद थी कि इस परियोजना को वे अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिना सकेंगे. लेकिन यह उपलब्धि उनके लिये मुश्किल का सबब बन गई. महीनों तक शहर की सड़कें खुदी रही, लोग उसमें गिरते रहे, मरते रहे, धूल उड़ती रही. अफसरों को मंत्री से लेकर हाईकोर्ट तक ने फटकार लगाई लेकिन मामला ढाक के तीन पात वाला रहा.
महापौर का चुनाव जीत कर सामने आई वाणी राव ने सबसे पहले सीवरेज को लेकर ही सरकार को निशाने पर रखा. देवकीनंदन सभागृह में उन्होंने आम जनता के साथ इस मुद्दे पर बड़ी सभा बुलाई और सीवरेज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. शहर में जहां-जहां भी खुदी हुई सड़कों को लेकर आंदोलन हुये, वाणी राव वहां उपस्थित रहीं. यहां तक कि उन्होंने अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना को रद्द करने की भी मांग की.
हालांकि यह बात वाणी राव भी बेहतर तरीके से जानती थीं कि केंद्र सरकार की यह परियोजना देश के हर बड़े शहर में अनिवार्य रुप से लागू करनी हैं. अगर वाणी राव सत्ता में होतीं तो उन्हें भी सीवरेज बनाना ही होता. लेकिन अव्यवस्थित तरीके से सीवरेज के निर्माण ने अमर अग्रवाल को मुश्किल में डाल दिया.
अमर अग्रवाल कहते हैं-“जनता में नाराजगी स्वाभाविक है, लेकिन मलमूत्र का पानी पीती जनता को जब स्वच्छ पानी मिलेगा और सीवरेज परियोजना पूरी हो जाएगी तो शहर को धूल, गंदगी और मच्छर से भी मुक्ति मिलेगी. यकीन मानें, बिलासपुर की प्रगति में यह एक बड़ा कदम साबित होगा.”
दूसरी ओर महापौर वाणी राव का कहना है कि सीवरेज की परियोजना ने जनता को कई सालों तक मुश्किल में डाल कर रखा. इस अव्यवस्था के कारण जनता नाराज है और वह इस चुनाव में सत्ता परिवर्तन करके ही मानेगी.
हालांकि वाणी राव जिस परिवर्तन की बात कह रही हैं, उसकी राह आसान भले नहीं है लेकिन यह इतनी भी मुश्किल नहीं है. बिलासपुर परंपरागत रुप से कांग्रेसी सीट मानी जाती रही है. 1991 में पहली बार भाजपा के मूलचंद खंडेलवाल ने 1100 वोटों से इस सीट पर कब्जा किया था लेकिन 1993 के चुनाव में कांग्रेस के बीआर यादव 17 हजार वोटों से जीत कर फिर से सत्ता में काबिज हो गये.
1998 के चुनाव में कांग्रेस ने बीआर यादव के बेटे कृष्णकुमार यादव को टिकट मिली लेकिन वे हार गये. उन्हें हराने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई पिछले चुनाव तक कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अनिल टाह ने, जो इंजन छाप पर बागी हो कर लड़े थे. अमर अग्रावल पहली बार सत्ता की राजनीति में आये. इसी तरह 2003 और 2008 में अनिल टाह को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया लेकिन पहली बार 5843 वोटों से हारने वाले अनिल टाह 2008 में 9376 वोटों से हार गये. अमर अग्रवाल हैट्रिक बनाते चले गये.
हालांकि 2009 में नगर निगम का चुनाव हुआ तो भाजपा फिर पीछे हट गई और वाणी राव लगभग 5500 वोटों से जीत कर महापौर बनीं. ये और बात है कि लोकसभा चुनाव में बिलासपुर की जनता ने भाजपा के दिलीप सिंह जूदेव को ही संसद में पहुंचाया और बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र से उनको 17 हज़ार की लीड मिली थी.
जाहिर है, वोटों के उतार-चढ़ाव को देखें तो कांग्रेस-भाजपा के बीच चुनावी हार-जीत का खेल चलता रहा है. ऐसे में बिलासपुर की जनता क्या गुल खिलाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा. एक तरफ जहां अमर अग्रवाल भाजपा में एकछत्र रुप से मोर्चे पर हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस के 17 दावेदारों को पीछे छोड़ कर मोर्चे पर जुटीं वाणी राव, जिनकी नाक में उनके ही पार्षदों ने पिछले कई सालों से दम कर रखा है. कांग्रेस में ही सब तरफ अपने विरोधियों से जूझना वाणी राव के लिये आसान नहीं होगा और अगर वह ऐसा कर पाईं तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. हालांकि वाणी राव जिस तरीके से काम करती रही हैं और उनकी जो पहचान है, उसे वोट में बदलना बहुत मुश्किल नहीं है. महिलाओं के बीच उनकी उपस्थिति और जन आंदोलनों में उनकी भागीदारी का उन्हें कितना लाभ मिल पाता है, यह देखना दिलचस्प होगा. दूसरी ओर आत्मविश्वास से भरे हुये भाजपा के अमर अग्रवाल के सामने एकमात्र चुनौती वाणी राव के रुप में है, जिसे पार पाने के लिये साम-दाम-दंड-भेद और इन सबसे इतर कांग्रेसियों को ही अपने पाले में कर लेने की उनकी रणनीति को क्या वाणी राव तोड़ पायेंगी, इसके सही जवाब के लिये मतगणना के दिन की प्रतीक्षा करनी होगी.