नौकरशाहों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़े
इलाहाबाद | समाचार डेस्क: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़वाना अनिवार्य किया जाये. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सरकारी स्कूलों की दुर्दशा से जुड़ी याचिका पर हाईकोर्ट ने अपने आदेश में नेताओं, अधिकारियों और जजों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कराना अनिवार्य कर दिया है. जो नहीं पढ़ाएगा, उसे निजी स्कूलों की फीस के बराबर पैसा खजाने में जमा कराना होगा. ऐसे लोगों का प्रमोशन, इन्क्रीमेंट भी रोका जाए. यह आदेश अगले सत्र से लागू होगा.
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शिवकुमार पाठक की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही. याचिका में कहा गया कि सरकारी परिषदीय स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति पर नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है जिसके चलते अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है. इसके चलते बच्चों को स्तरीय शिक्षा नहीं मिल पा रही है. इसकी चिंता ना तो सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को है और ना ही प्रदेश के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सरकारी कर्मचारी, निर्वाचित जनप्रतिनिधि, न्यायपालिका के सदस्य एवं वे सभी अन्य लोग सरकारी खजाने से वेतन एवं लाभ मिलता है, अपने बच्चों को पढ़ने के लिए राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में भेजें.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, “उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे को किसी ऐसे निजी विद्यालय में भेजा जाता है जो कि यूपी बोर्ड की ओर से संचालित नहीं है तो ऐसे अधिकारियों या निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से फीस के रूप में भुगतान किए जाने वाली राशि के बराबर धनराशि प्रत्येक महीने सरकारी खजाने में तब तक जमा की जाए जब तक कि अन्य तरह के प्राथमिक स्कूल में ऐसी शिक्षा जारी रहती है.”
कोर्ट ने कहा कि “प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है. अंग्रेजी कॉन्वेंट स्कूल, मध्य वर्ग के प्राइवेट स्कूल और उत्तरप्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल. अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए अनिवार्य न करने से इन स्कूलों की दुर्दशा हो रही है. इनमें न तो योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं. सरकारी खजाने से वेतन या सुविधा ले रहे बड़े लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए जब तक ऐसे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक इनकी दशा में सुधार नहीं होगा.”