छत्तीसगढ़ में शराबबंदी नहीं होगी
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में शराबबंदी को लेकर चाहे जितनी भी कवायद हो लेकिन सरकार इसे बंद करने का खतरा मोल नहीं लेगी. आबकारी विभाग के शीर्ष सूत्रों की मानें तो राज्य में कम से कम 28 लाख वोटर ऐसे हैं, जो शराब का नियमित सेवन करते हैं. विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि शराबबंदी की स्थिति में वोट देने वालों की संख्या कितनी बढ़ेगी यह तो तय नहीं है लेकिन चुनाव के समय 28 लाख वोटरों की नाराजगी रमन सिंह की भाजपा सरकार के लिये मुश्किल पैदा करना वाला हो सकता है.
छत्तीसगढ़ में पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार को शराब से लगभग 3300 करोड़ के राजस्व का लाभ हुआ था. अनुमान है कि इस साल राजस्व का यह आंकड़ा 5000 करोड़ तक पहुंच सकता है. सरकार शराब बिक्री के क्षेत्र में कम से कम 12 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार करेगी, ऐसा अनुमान है. जाहिर है, सरकार इस राजस्व को भी खोने के पक्ष में नहीं है.
आंकड़ों की देखें तो छत्तीसगढ़ के लोग साल में 12 करोड़ लीटर शराब पी जाते हैं. इस तरह से देखा जाये तो मोटे तौर पर छत्तीसगढ़ का हर बाशिंदा साल में औसतन 4 लीटर से ज्यादा शराब पी जाता है. छत्तीसगढ़ में शराब की लत इतनी है कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के दौरान पाया गया कि यहां के 52.7 फीसदी पुरुष शराब पीते हैं. छत्तीसगढ़ में रहने वाली 5 फीसदी महिलायें भी शराबखोरी करती हैं.
शराब पीने वाले पुरुषों का राष्ट्रीय औसत छत्तीसगढ़ से काफी कम 29.3 फीसदी है. गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर 10 साल पहले पुरुषों में 31.9 फीसदी लोग शराब पीते थे. इस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर शराब पीने वालों की संख्या घटी है. जबकि छत्तीसगढ़ में पिछले 10 पहले की तुलना में 0.4 फीसदी का इज़ाफा हुआ है.
भयावह है कि सर्वाधिक गरीबों वाले छत्तीसगढ़ में दिल्ली समेत दूसरे राज्यों से प्रति व्यक्ति शराब पर खर्च कहीं अधिक है. एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार देश में औसतन प्रति व्यक्ति शराब का खर्चा 10 रुपये 31 पैसा है. दिल्ली में यह आंकड़ा 2 रुपये 87 पैसे है लेकिन छत्तीसगढ़ में सारे रिकार्ड टूट गये हैं. छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति शराब का खर्च 13 रुपये 22 पैसे है. इतना सब होने के बाद भी सरकार शराबबंदी का झुनझुना बजाती रहती है. भले, उसका कोई मतलब हो या न हो.