सुनो अक्षय कुमार कनाडा वाले
विशाल | फेसबुक : 1. मुझे सच में यह समझ नहीं आता कि मेरी नागरिकता में लोगों को इतनी रुचि और नकारात्मकता क्यों है.
– आपको यह आश्चर्य करने की आज़ादी है. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी को यह आश्चर्य करने की आज़ादी नहीं है. भारतीय पासपोर्ट होने के बावजूद वह आज भी कइयों की नज़र में इटैलियन हैं. ऊंचा पायजामा पहने और दाढ़ी बढ़ाए तमाम मुस्लिम रोजाना पाकिस्तानी नागरिक की निगाह से गुजरते हैं. आज़ाद भारत में मॉब लिंचिंग के पहले बड़े मामले में एक ईसाई ने जान गंवाई थी. अनगिनत ईसाइयों को आज भी सहमकर रहना पड़ता है कि कोई धर्म-परिवर्तन का आरोप लगाकर मार न दे. असम और बंगाल के तमाम नागरिकों को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष बाकयदा मंच सजाकर धमकी देते हैं कि देश से बाहर कर देंगे. और आप कहते हैं कि आपकी नागरिकता में लोगों की रुचि गैर-ज़रूरी है.
2. मैंने कनाडा का पासपोर्ट रखने की बात न तो कभी छिपाई और न नकारी.
– 2017 में टाइम्स नाऊ के एक कार्यक्रम में आपने कहा कि कनाडा ने आपको मानद नागरिकता दी है. इसी साल यूट्यूब पर अपलोड हुए एक और कार्यक्रम के विडियो में आपने मानद नागरिकता की बात दोहराई. आपके दावे से उलट कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की वेबसाइट बताती है कि कनाडा ने अब तक सिर्फ 6 लोगों- मलाला यूसुफजई, रॉल वालनबर्ग, नेल्सन मंडेल, 14वें दलाई लामा, आंग सांग सू की और आगा खां को मानद नागरिकता दी है. आंग सांग की मानद नागरिकता बाद में खारिज भी कर दी गई थी.
2014 में कनाडा की संसद में मानद नागरिकता पर बहस के दौरान सांसद स्टीफन ग्रीन ने कहा कि मानद नागरिकता सिर्फ उन्हें दी जाती है, जिन्होंने आज़ादी की पैरवी में ऐतिहासिक योगदान दिया हो. ज़ाहिर है आप इस पाले में खड़े नहीं नज़र आते.
अल जज़ीरा की रिपोर्ट बताती है कि कनाडा की मानद नागरिकता होने पर पासपोर्ट या वोटिंग जैसी सुविधा नहीं मिलती है. यानी या तो आप कल झूठ बोल रहे थे कि आपके पास कनाडा की मानद नागरिकता है या आप आज झूठ बोल रहे हैं कि मानद नागरिकता के बावजूद आपके पास कनाडा का पासपोर्ट है.
3. यह भी सच है कि मैं पिछले सात बरस से कनाडा नहीं गया.
– सच तो यह भी है कि 2018 में होली पर जब राहुल गांधी अपनी नानी के घर गए थे, तब बीजेपी समेत सभी कांग्रेस विरोधी उन पर चढ़ बैठे थे. सच तो यह भी है कि सोनिया गांधी को 1983 में भारत की नागरिकता मिल गई थी, लेकिन उनका मूल इटली के होने पर इस मुल्क का निज़ाम मंच पर खड़े होकर तंज कसता है. भले वह बरसों से अपने घर न गईं हों.
सच तो यह भी है कि आपकी इंडस्ट्री में ही काम करने वाले कट्रीना कैफ, आलिया भट्ट, जैक्लीन फर्नांडिस, नरगिस फखरी, इमरान खान, एमी जैक्सन, ईवलिन शर्मा जैसे तमाम कलाकारों के पास विदेशी नागरिकता है. ये भी काम के सिलसिले में महीनों-बरसों तक घर नहीं जाते, तो आपके सात बरस से कनाडा न जाने में क्या अनोखा है?
सच तो यह भी है कि एक विडियो में आप यह कहते नज़र आ रहे हैं कि आप रिटायर होकर कनाडा जाकर बस जाएंगे.
— Akshay Kumar (@akshaykumar) May 3, 2019
4. मैं भारत में काम करता हूं और यहीं टैक्स भरता हूं.
– भारत में टैक्स के नियम-कानून में यह बात स्पष्ट है कि आप भारत में रहकर जो भी कमाई करेंगे, उस पर आपको भारत में टैक्स भरना पड़ेगा. फिर आप चाहें भारतीय नागरिकता के साथ विदेश में रहते हुए भारत से कमाई कर रहे हों या विदेशी नागरिकता के साथ भारत में रहकर भारत से कमाई कर रहे हों. यानी भारत में कमाई करके भारत में टैक्स भरना कोई अहसान नहीं है.
5. इतने बरसों में मुझे कभी किसी को भारत के लिए अपना प्यार साबित करने की ज़रूरत नहीं पड़ी. मेरी नागरिकता को गैर-ज़रूरी विवाद में खींचना निराशाजनक है. यह निजी, कानूनी और गैर-राजनीतिक मामला है, जिसका दूसरों से कोई लेना-देना नहीं.
– इतने बरसों तक आपको कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि ऑनस्क्रीन आप कुछ साबित करने की कोशिश नहीं कर रहे थे. 1991 में ‘सौगंध’ आपकी बतौर लीड ऐक्टर पहली फिल्म थी. इसके बाद 2001 और 2003 को छोड़ दें, तो कोई भी साल ऐसा नहीं गया, जब आपने कम से कम तीन फिल्में न की हों.
इनमें से अधिकतर प्योर बॉलिवुड कमर्शियल मसाला फिल्में थीं. 2004 में आपकी 9 फिल्में रिलीज़ हुईं, जिनमें अधिकांश में आप सैनिक या पुलिसवाले के रोल में थे. 2005 से 2013 तक आपकी 42 फिल्में रिलीज़ हुईं, जिनमें इक्का-दुक्का में ही आप पुलिसवाले या देशभक्त के रोल में थे. बाकी सभी फिल्में प्योर मसाला फिल्में थीं.
पर 2014 के बाद से यह सूरत बदल जाती है. 2014 से ‘हॉलीडे’, ‘बेबी’, ‘गब्बर इज़ बैक’, ‘एयरलिफ्ट’, ‘रुस्तम’, ‘जॉली LLB 2’, ‘नाम शबाना’, ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’, ‘पैड मैन’, ‘गोल्ड’ और ‘केसरी’ जैसी राष्ट्रवाद और देशप्रेम से सराबोर फिल्मों की एक पूरी कतार है, जिनमें आप देश के मौजूदा नेतृत्व से गलबहियां करने की अच्छी-बुरी कोशिश करते दिखते हैं. इन फिल्मों को अगर फिल्म-मेकिंग की कसौटी पर परखा जाने लगा, तो आपको और भी बहुत कुछ साबित करने की ज़रूरत पड़ जाएगी.
यह आपका निजी, कानूनी और गैर-राजनीतिक मसला हो सकता था, अगर आप अपनी प्रतिभा सिनेमा तक सीमित रखते. बीते पांच बरसों में केंद्र सरकार की बड़ी लेकिन फ्लॉप योजनाओं पर हिट फिल्मों की सीढ़ी लगाकर आप जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, वहां चीज़ें निजी भले होती हों, लेकिन गैर-राजनीतिक तो बिल्कुल नहीं होती हैं. ऊपर से देश के निज़ाम का ‘अपॉलिटिकल इंटरव्यू’ लेना तो ‘चेरी ऑन दि टॉप’ है.
6. मैं भारत को मजबूत बनाने में अपना छोटा-छोटा योगदान देता रहूंगा.
– कैसे? जब कोई पूछेगा कि आपने वोट क्यों नहीं दिया, तो उससे ‘हां चलिए भाई’ कहकर? या ‘रुस्तम’ जैसी फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड स्वीकार करके, जिस साल ‘अलीगढ़’ भी रिलीज़ हुई थी.