जोगी की पाठशाला के सबब
विश्वेष ठाकरे | बिलासपुर: आईएएस, सांसद, मुख्यमंत्री रह चुके मंझे हुए राजनेता अजीत जोगी अब एक नए रूप में हैं. शुक्रवार को उन्होंने अपने मोबाइल नंबर सार्वजनिक कर दिए और कहा कि बोर्ड परीक्षा दे रहे छात्र उनसे फोन पर परीक्षा के संबंध में सलाह ले सकते हैं. शनिवार को जब वे बिलासपुर पहुंचे तो मोबाइल उनके कान पर लगा था और वो कह रहे थे…बेटा ये समय बहुत महत्वपूर्ण है, चार घंटे की पढ़ाई से नहीं होगा, इसे छह घंटे करो..तीन घंटे सुबह..तीन घंटे शाम… ये फोन कटते ही दूसरा आ गया..जोगी जी बोले लिखकर पढ़ो…गणित है जब तक बनाओगे नहीं तब तक आएगा नहीं… एक के बाद एक फोन, किसी को बिना डरे परीक्षा हाल में जाने की सलाह तो किसी को गणित के फार्मूले बताते….
अजीत जोगी के मुताबिक शनिवार सुबह से शाम चार बजे तक वे करीब एक हजार फोन काल अटेंड कर चुके हैं और करीब 200 मिस्ड हो गए हैं…इस बात में कोई शंका नहीं है कि वे विद्वान हैं, दूसरे को बेहतर मार्गदर्शन दे सकते हैं और दूसरे उनसे प्रभावित होकर उनकी बात मानते भी हैं, लेकिन सवाल यह है कि ये अचानक जोगी गुरू बनने का कारण क्या है…मायने तलाशें तो कई बातें सामने आती हैं, एक तो वे इन दिनों अपने राजनीतिक जीवन के संक्रमणकाल से गुजर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि उन पर राजनीतिक रूप से ये विपत्ति पहली बार आई हो, लेकिन पहले के समय में और अभी के समय में उम्र, काल, परिस्थिति को लेकर फर्क जरूर है.
एक समय इस राज्य में कांग्रेस की राजनीति की धुरी अजीत जोगी, इस समय हाशिए पर हैं. उनके पुत्र अमित जोगी जो मरवाही से रिकार्ड मतों से चुनाव जीतकर विधायक बनें, उन्हें पीसीसी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है. इतना ही नहीं मंतूराम पवार टेप कांड को हथियार बनाकर ‘उन्हें भी क्यों ना निष्कासित कर दिया जाए’ नुमा नोटिस जारी कर दिया है.
अपने विरोधियों पर हावी रहने वाले जोगी पिता-पुत्र के लिए ये संकट पुराने संकटों से ज्यादा गंभीर इसलिए भी है, क्योंकि हर बार जिस दिल्ली से वो राहत लेकर आते रहे हैं वहां के दरवाजे भी उनके लिए बंद ही दिखाई दे रहे हैं. संगठन के कड़े रुख के चलते नेता धीरे-धीरे जोगी गुट से दूरी बना रहे हैं, ऐसे में सीनियर जोगी का युवाओं के लिए काउंसलर की भूमिका में आना यह सवाल खड़े करता है कि क्या जोगी इसी बहाने भविष्य के वोटर्स से जुड़ना चाह रहे हैं.
जोगी जी को फोन करने वाले अधिकतर छात्र-छात्राएं बारहवीं के हैं मतलब एक या दो साल बाद के ये वोटर्स हैं. अगले विधानसभा चुनाव जो कि 2018 में होने हैं उसमें जाहिर है कि ये युवा डिसाइडिंग वोट होंगे. अब इनसे बात करने, अपनत्व दिखाने, मार्गदर्शन करने में एक तत्व जो छुपा हुआ है वह है इनको प्रभावित भी करना. इस प्रभावित करने के साथ साथ हो सकता है कि जोगी जी के मीडिया प्लानर किसी एजेंसी के थ्रू उनके नंबरों पर आने वाले काल्स का डेटा बेस बना रही हो.
इस समय सूचनाओं का व्यापार चरम पर है. कई कंपनियां इंटरनेट सोशल साइट्स के जरिए अपने यूजर्स की इकट्ठा की गई जानकारियां कंज्यूमर प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों को बेचती हैं, जिससे वे अलग अलग देशों के लोगों की रुचि, आवश्यकता, आदतों के मुताबिक प्रोडक्ट बना सकें या उस तरीके से प्रमोट कर सकें. तो हो सकता है कि दूरदर्शी जोगी जी भविष्य का डेटा बेस बना रहे हों.
एक और संभावना जो इस फोन काल्स योजना के पीछे दिखती है वह है चर्चा में बने रहना, हालांकि अजीत जोगी की कहीं उपस्थिति और किसी सवाल पर हां या ना ही उनके चर्चा में बने रहने के लिए पर्याप्त है, लेकिन ये छात्रों की काउंसलिंग का काम पूरी तरह से पाजिटिव साउंड करता है. इसके बारे में जो भी सुनेगा वह काउंसलर को सराहेगा मतलब जोगी को सराहेगा. वैसे इस फोन काल्स की बाढ़ के जरिए जोगी अपने विरोधी कांग्रेसी नेताओं को चिढ़ा भी सकते हैं, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री हर प्रेस वार्ता में बातों बातों में यह इशारा जरूर करते हैं कि उनके विरोधी नेताओं की शिक्षा कम हुई है, उन्हें कम ज्ञान है और सीमित बुद्धि के कारण संगठन प्रदेश में गलत फैसले लेता है
अब जोगी जी इस बात को नकारने के लिए और उनका काउंटर करने के लिए निश्चित ही पीसीसी चीफ भूपेश बघेल इस तरह फोन पर काउंसलिंग नहीं कर सकते, क्योंकि वाकई भूपेश बघेल जोगी की तरह एकेडमिक जवाब नहीं दे सकते. वैसे ये लेख लिखते लिखते पूर्व मुख्यमंत्री के इस टीचर, काउंसलर रूप में आने का एक सटीक कारण मेरे दिमाग में आया है, जो कि इतिहास की एक घटना से जुड़ता है.
मुगल बादशाह औरंगजेब ने जब अपने पिता शाहजहां को राजगद्दी से हटाया और आगरा के किले में नजरबंद किया तब,उसने शाहजहां से पूछा कि आप समय काटने के लिए कुछ करना चाहते हैं क्या, तब शाहजहां ने जवाब दिया कि हां मैं बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं. यह सुनकर औरंगजेब हंसा और साथ गए लोगों से कहा- अच्छा तो अब्बा हुजुर अभी भी शासन करना चाहते हैं. दरअसल टीचर शासक ही होता है, भले ही कुछ छात्रों का ही शासक क्यों ना हो.