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जोगी का सियासी दांव

दिवाकर मुक्तिबोध
अजीत जोगी फिर सुर्खियों में हैं. नवम्बर 2013 में राज्य विधानसभा चुनाव के पूर्व उन्होंने संगठन खेमे के वर्चस्व को चुनौती देकर खूब सुर्खियां बटोरी थी और अंतत: पार्टी हाईकमान पर भी दबाव बनाने में कामयाब हुए थे.

दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री राजनीति के इस खेल में बड़े माहिर हैं. जब प्रदेश के चुनाव नतीजे कांग्रेस के खिलाफ गए और सरकार बनने की उम्मीदें टूट गई तब जोगी ने पुन: पैंतरा बदला. उन्होंने घोषणा की कि वे एक वर्ष तक सक्रिय राजनीति से दूर रहेंगे, चुनाव नहीं लड़ेंगे. अलबत्ता दिल्ली के बुलावे पर पार्टी बैठकों में भाग लेते रहेंगे. उन्होंने पूरे वर्ष अपने निवास में भजन-कीर्तन आयोजित करने की भी बात कही और लगे हाथ एक आयोजन भी कर डाला.

जाहिर है नाटकीयता से भरा उनका यह कदम भी बेइंतिहा चर्चा में आया. और अब वे फिर सुर्खियों में हैं, जो लोकसभा चुनाव के संदर्भ में है. मई 2014 में लोकसभा चुनाव होने हैं और प्रदेश प्रत्याशियों की सूची में उनका नाम शामिल कर लिया गया है. राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष टी.एस.सिंहदेव से लेकर प्रदेश कांग्रेस के तमाम बड़े नेता चाहते हैं कि जोगी लोकसभा चुनाव लड़ें. इसलिए पार्टी ने बिलासपुर से उनकी उम्मीदवारी अनधिकृत रूप से घोषित कर रखी है.

पार्टी के इस मनोभाव से जोगी के हाथ में तुरूप का इक्का आ गया है. अब उनके मान-मनौव्वल का दौर भी फिर शुरू हो गया. कूटनीति के लिहाज से जोगी की यह बड़ी जीत है. उन्होंने पुन: साबित कर दिया कि राजनीति के वे वाकई सिद्ध पुरुष हैं.

दरअसल जोगी कभी गेंद अपने पाले में नहीं रखते. जैसे ही वह उनकी ओर निशाना करके फेंकी जाती है, वे तुरंत रिवर्स किक करके लौटा देते हैं फिर चाहे उसे विरोधी फेंके या कोई और. उन्होंने राज्य विधानसभा चुनाव के बाद बहुत सूझबूझ से अपनी चालें चलीं थीं क्योंकि वे जानते थे लोकसभा चुनाव की वजह से वे पुन: सौदेबाजी की स्थिति में आ जाएंगे. जैसे-जैसे चुनाव की घड़ी नजदीक आते गई और प्रत्याशियों के नामों पर मंथन शुरू हुआ, जोगी का नाम स्वयमेव सतह पर आ गया.

जोगी जानते थे, ऐसा ही होगा क्योंकि राजनीति में बेहद खराब दौर से गुजर रही कांग्रेस के लिए एक-एक सीट कीमती है और खासकर ऐसी सीटें जहां से उम्मीदवारों के जीतने की शत-प्रतिशत गारंटी हो, यों ही नहीं छोड़ी जा सकती. छत्तीसगढ़ में जोगी कांग्रेस के ऐसे नेता हैं जो जीत की गारंटी देते हैं. और तो और पिछले चुनाव में कोरबा संसदीय सीट से चुने गए पार्टी के एकमात्र सांसद और वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत पर भी ऐसा दांव खेला नहीं जा सकता.

प्रदेश के वरिष्ठतम दिग्गज नेता एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा भी एक लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. यानी जोगी का चुनाव मैदान में उतरना सफलता की शत-प्रतिशत गारंटी है. जोगी इसी गारंटी को राजनीतिक ढंग से भुनाना चाहते हैं और इसीलिए वे तने हुए हैं और फिलहाल तटस्थ भाव से पार्टी नेताओं की कसरत को देख रहे हैं.

इन दिनों राष्ट्रीय मीडिया से जो खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक केन्द्रीय नेतृत्व ने जोगी को मनाने की कवायद शुरू कर दी है. नई दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख आस्कर फर्नांडीज और छत्तीसगढ़ के प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने अजीत जोगी से लंबी बातचीत की. फर्नांडीस पहले भी उनसे मिल चुके हैं. कहा गया है कि यह पहल सोनिया गांधी के निर्देश पर हो रही है.

इन मुलाकातों एवं बातचीत से क्या नतीजे निकले, उनका रहस्योद्घाटन अभी नहीं हुआ है, अलबत्ता अजीत जोगी जरूर कह रहे हैं कि वे अपने फैसले पर अडिग हैं यानी फिलहाल चुनावी राजनीति से दूर रहने का उनका इरादा अटल है. किंतु वे यह भी कह रहे हैं कि यदि सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात होती है तो उनका आदेश शिरोधार्य करेंगे लेकिन उन्हें उम्मीद है कि सोनिया गांधी भी उनके फैसले का सम्मान करेंगी तथा चुनाव लड़ने पर जोर नहीं देंगी.

जोगी का ऐसा कहना भी उनकी कूटनीति को दर्शाता है. लेकिन क्या ऐसा होगा? जोगी भी जानते हैं कि पार्टी को उनकी जरूरत है लिहाजा हाईकमान के आग्रह पर चुनाव लड़ने में क्या दिक्कत है? वे तो सिर्फ स्थितियों को तौल रहे हैं ताकि उनकी आवश्यकता एवं उपयोगिता कायम रहे. वे उपरी तौर पर ना-नुकुर कर रहे हैं. वे जानते हैं रबर को उतना ही खींचना चाहिए ताकि वह न टूटे. इसलिए वे अभी जिद पर अड़े हुए हैं लेकिन अंतत: उन्हें मान जाना है. प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व बनाए रखने एवं अपने गुट को ताकत देने के लिए सांसद बनने में क्या बुराई है?

यह तो हुई जोगी की अपनी राजनीति किंतु प्रदेश कांग्रेस की बात करें तो उसके लिए यह जरूरी है कि जोगी चुनाव लड़ें. वे किस सीट से लड़ेंगे बिलासपुर या महासमुंद से यह तो बाद में तय होगा, संभवत: जोगी की मर्जी के अनुसार ही होगा. उनके चुनाव लड़ने एवं प्रचार अभियान में शामिल होने से यह तो निश्चित है कांग्रेस की सीटें पूर्व की तुलना में बढ़ेंगी. सन् 2009 के चुनाव में वह राज्य की 11 में से मात्र 1 सीट पार्टी जीत पाई थी, 2004 के चुनाव में भी यही स्थिति थी. लेकिन इस बार के चुनाव में यह क्रम तो निश्चितत: टूटेगा.

कांग्रेस कितनी सीटें जीत पाएगी, यह उम्मीदवारों के चयन पर निर्भर है. पार्टी नेतृत्व चाहता है कि जीतने की बेहतर संभावना रखने वाले उम्मीदवारों को ही टिकट दी जाए. जोगी में ऐसी क्षमता है इसीलिए उनकी मान-मनौव्वल का दौर चला हुआ है.

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