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77 साल बाद यू ट्यूब ने भाई से मिलाया

चंडीगढ़ | संवाददाता : पंजाब के फिरोजपुर के तरनतारन रोड पर बसे बंदला गांव के87 साल के महिंदर सिंह गिल की आंखों में इन दिनों दुख और खुशी एक साथ तैर रहे हैं. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि 77 साल बाद उनके हिस्से जो सुख आया है, उसके लिए वो खुश हों या दुखी हों !

महिंदर सिंह गिल, तब दस साल के थे, जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था. फिरोजपुर जिले के जीरा तहसील के बुलोके गांव में महिंदर सिंह गिल अपने चार भाइयों और एक बहन के साथ रहते थे.

लेकिन ठहरिए. असल में महिंदर सिंह गिल का असली नाम था मोहम्मद शफी. पिता चिराग दीन और मां फ़ातिमा की आंखों के तारे.

जब बंटवारा हुआ तो बहन नहर पार करते डूब गई और जिस हाथ को पिता ने मजबूती से थामा था, उस शफी का हाथ भी छूट गया. दस साल का शफी अपने परिवार से बिछड़ गया.

एक मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े शफी को एक सिक्ख परिवार ने पाला और नाम रखा महिंदर सिंह गिल.

ताज़ा यादें, मर चुकी उम्मीदें

महिंदर सिंह गिल ने अपने पुराने परिवार के बारे में कई दफ़ा पता करने की कोशिश की. लेकिन उनके हिस्से जैसे कोई सिरा ही नहीं था.

उनका परिवार पाकिस्तान में कहीं जा कर बस चुका था और खुद महिंदर पूर्वी पंजाब के इस गांव में.

अपने घर-परिवार, मां-बाप, भाई और बहन की याद हमेशा ताज़ा बनी रहीं, लेकिन उनके मिलने की उम्मीदें धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती हुई, ख़त्म हो गईं.

यू ट्यूब का चमत्कार

महिंदर सिंह गिल उर्फ मोहम्मद शफी
सांझे वेले में दुख साझा करते भाई
दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय यानी जेएनयू में इतिहास पढ़ाने वालीं नोनिका दत्ता, एक दफ़ा महिंदर सिंह गिल से उनका किस्सा सुन चुकी थीं.

उनकी बचपन की यादें और सब कुछ. लेकिन कोई ओर-छोर हो तो बात बनती.

लेकिन कहते हैं न कि जीवन में कई बार चमत्कार हो जाते हैं. ऐसा ही चमत्कार यू ट्यूब पर हुआ.

यह पिछले महीने का किस्सा है, जब नोनिका दत्ता ‘सांझे वेले’ यानी एकता का युग नामक एक पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल देख रही थीं.

चैनल देखते-देखते वो जैसे ठहर गईं.

भाई का इंतजार

उस यू ट्यूब चैनल को चलाने वाले अब्बास खान लाशरी दो बुजुर्गों से एक बातचीत कर रहे थे, जिसमें दोनों बुजुर्ग बता रहे थे कि कैसे 1947 में उनका एक बड़ा भाई मोहम्मद शफी लापता हो गया और उसका कभी पता नहीं चला.

महिंदर सिंह गिल उर्फ मोहम्मद शफी
जूम पर बातचीत

इस बातचीत का शीर्षक था “वीर दी उडीक” यानी भाई का इंतजार.

77 साल पुरानी यह वही कहानी थी, जिसका एक सिरा नोनिका दत्ता को पता था.

उन्होंने कई-कई बार उस यू ट्यूब को देखा और उसे चलाने वाले अब्बास खान लाशरी से संपर्क किया.

इसके बाद तय हुआ कि सीमा के दोनों पार बैठे भाइयों की बातचीत कराई जाए. नोनिका ट्रेन से फिरोजपुर पहुंचीं और फिर बंदाला. रास्ते भर यह सोचते हुए कि कैसी प्रतिक्रिया होगी, क्या इस चौंकाने वाली कहानी पर उन्हें भरोसा होगा?

3 मील की दूरी और 77 साल का फ़ासला

बंदाला गांव पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से केवल 3 मील की दूरी पर है. लेकिन सगे भाइयों की तलाश में 77 साल का फ़ासला था.

नोनिका जब महिंदर सिंह गिल के घर पहुंचीं तो वो अपने पोते-पोतियों से घिरे बैठे थे.

फिर उन्होंने सीमा के दूसरी ओर पाकिस्तान के पंजाब में ननकाना साहिब में महिंदर सिंह गिल के छोटे भाइयों के साथ बैठे यू ट्यूबर अब्बास खान लाशरी को जूम पर जोड़ा. गिल को जब बताया गया कि 77 साल पहले खो चुके उनके परिवार को तलाश लिया गया है, तो वो रो पड़े.

77 साल बाद बुढ़ा गई आंखें, मोबाइल की स्क्रिन पर एक-दूसरे को देखती रहीं. गिल का एक छोटे भाई गंभीर रुप से बीमार थे और दूसरे बड़े भाई को सुनना बंद हो चुका था. एक भाई के बारे में पता चला कि उनकी मौत हो चुकी है.

महिंदर सिंह गिल ऊर्फ मोहम्मद शफी
दुख ने दुख से बात की…

जिस भाई की मौत हो चुकी थी, उसका बेटा, 77 साल पहले खो चुके अपने चाचा से बात करने को बेताब था.

सितंबर 1947 में बिछुड़े भाई, सितंबर 2024 में आंसुओं, दुख, अफसोस और खु़शी की भाषा में बात कर रहे थे.

गिल अब एक बार किसी तरह चाहते हैं कि उनकी भाइयों से आमने-सामने की मुलाकात हो जाए. सिर्फ़ एक बार. आख़िरी बार ! कौन जाने, उनकी यह मुराद शायद पूरी हो जाए.

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