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छत्तीसगढ़ में अब जमीन की रजिस्ट्री होते ही नामांतरण

रायपुर| संवाददाताः छत्तीसगढ़ में अब जमीन की रजिस्ट्री होने के बाद नामांतरण के लिए महीनों राजस्व विभाग के दफ्तरों का चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. अब रजिस्ट्री होते ही तत्काल नामांतरण की प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाएगी. इसके लिए सरकार ने सुगम एप तैयार किया है.

सरकार का दावा है कि इससे न केवल लोगों की परेशानी कम होगी बल्कि उनका समय बचेगा. साथ ही भ्रष्टाचार और जमीनों से जुड़ी धांधली पर भी रोक लगेगी.

इससे पहले बरसों से यह होता रहा है कि रजिस्ट्री के बाद नामांतरण के लिए पटवारी, आरआई और तहसीलदार के दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे.

इसके लिए एक माह से 90 दिन तक इंतजार करना पड़ता था. इसके लिए तहसील और पटवारी कार्यालय में अघोषित कीमत चुकाने के बाद ही रिकार्ड में नाम चढ़ पाता था.

इसे देखते हुए सरकार अब तत्काल नामांतरण की सुविधा शुरू की है.

भू-राजस्व संहिता में संशोधन

राज्य सरकार ने नामांतरण की प्रक्रिया को पारदर्शी और सरल बनाने के लिए तकनीक को बढ़ावा देने पर जोर दिया है.

इसके लिए सरकार ने सबसे पहले तो भू राजस्व संहिता में संशोधन कराया है.

इसके लिए विधानसभा में छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया था. जिस पर विचार विमर्श के बाद इसे विधानसभा से पारित कर दिया गया.

इस संशोधन विधेयक के बाद अब जमीन की रजिस्ट्री के बाद सीधे नामांतरण होगी.

साथ ही विवादित जमीन के मामलों में पक्षकार को डिजिटल माध्याम से भी नोटिस भेजा जा सकेगा.

इसके अलावा राजस्व न्यायालय में अब ऑनलाइन कागजात भी मंगवाए जा सकेंगे.

भुईयां पोर्टल में होगा अपडेट

इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया जा रहा है, जो भुईयां पोर्टल से जुड़ा होगा.

जिससे अब जैसे ही किसी जमीन की रजिस्ट्री होगी उसके बाद तत्काल ही खरीददार या भूमि मालिक का नाम भुईयां पोर्टल में अपडेट हो जाएगा.

इसके लिए पटवारी, आरआई या तहसीलदार के पास जाने की जरुरत नहीं होगी.

हालांकि इस नई सुविधा का राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा विरोध करते हुए इससे फर्जी रजिस्ट्री होने की आशंका व्यक्त की है.

लेकिन राजस्व विभाग की इस दलील को सरकार ने दरकिनार कर दिया है.

रजिस्ट्री से नामांतरण था पेचीदा

इस नई व्यवस्था के लोगू हो जाने से प्रदेश के किसानों को बड़ी राहत मिलेगी. क्योकि रजिस्ट्री कराने के बाद भी नामांतरण कराने के लिए महीनों अधिकारियों सहित पटवारियों के चक्कर लगाते थे.

यहां तक रजिस्ट्री की प्रक्रिया से ज्यादा पेचीदा नामांतरण का था. रजिस्ट्री कराने के बाद नामांतरण कराने के लिए पहले तहसील कार्यालय जाना पड़ता था. वहां आवेदन देना होता था.

रजिस्ट्री होने के बाद पटवारी और तहसीलदार के लॉगिन आईडी में फारवर्ड हो जाता था. संबंधित तहसीलदार के पास रजिस्ट्रीकर्ता का आवेदन डिस्प्ले होने लगता था.

इसके बाद अधिकारी किसान को दावा-आपत्ति के लिए विज्ञापन छपवाने के लिए कहता था.

इसके बाद किसान को पंजीकृत रजिस्ट्री पेपर लेकर पटवारी के पास जाना पड़ता था. तब पटवारी अपने रिकार्ड में नाम दर्ज करता था.

इस प्रक्रिया में एक माह से 3 महीने तक का समय लग जाता था. इससे किसान काफी परेशान हो जाते थे.

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