समानांतर सिनेमा के स्तंभ श्याम बेनेगल का निधन
मुंबई | डेस्क: भारत के जाने-माने फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का मंगलवार की देर रात निधन हो गया. वे 90 साल के थे और इन दिनों कई फिल्मों पर काम कर रहे थे.
पद्मभूषण से सम्मानित श्याम बेनेगल उन थोड़े से फिल्मकारों में से एक थे, जिन्होंने हिंदी की कला या समानांतर फिल्मों की नींव मज़बूत की. हालांकि उन्होंने गंभीर फिल्मों के अलावा व्यंग्य और विडंबनाओं से भरे ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ जैसी फिल्में भी बनाई.
एक दौर था, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब पर आधारित श्याम बेनेगल के बनाए धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ को दूरदर्शन पर पूरा देश देखता था.
उन्हें पद्म श्री (1976) और पद्म भूषण (1991) से सम्मानित किया गया. 2007 में उन्हें फिल्म जगत में उपलब्धि के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
हैदराबाद में जन्मे और उसी शहर के निज़ाम कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद, 60 के दशक में काम की तलाश में मुंबई पहुंचे श्याम बेनेगल ने एक विज्ञापन फिल्म में बतौर कॉपी राइटर काम शुरु किया. उन्होंने हिंदुस्तान लीवर के लिए जो विज्ञापन लिखा, उसे राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया. इसके बाद उन्होंने लगभग एक हज़ार से अधिक विज्ञापन फिल्में बनाईं.
उन्होंने 1974 में पहली फीचर फिल्म ‘अंकुर’ बनाई, जिसकी दुनिया भर में चर्चा हुई. निशांत (1975), मंथन (1976) और भूमिका (1977) जैसी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को इसके कुछ सबसे कुशल अभिनेता दिए, उनमें शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल जैसे नाम शामिल हैं.
महाभारत की एक आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष व्याख्या करने वाली फिल्म कलयुग (1981), ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय विद्रोह की शुरुआत को लेकर जुनून (1979), एक वेश्यालय, उसके आगंतुकों और उसके निवासियों को लेकर मंडी (1983), 1960 के दशक के पुर्तगाली शासित गोवा पर त्रिकाल (1985), जैसी फिल्मों ने उन्हें एक स्थाई पहचान दी.
टेलीविज़न धारावाहिक यात्रा (1986), कथा सागर (1986) और 53-भागों वाला भारत एक खोज (1988), अंतरनाद (1991) जैसे काम से उन्होंने छोटे पर्दे पर अपना एक बड़ा प्रशंसक वर्ग तैयार किया.
टीवी धारावाहिकों के बाद वे फिर से फिल्मों की और लौटे और सूरज का सातवां घोड़ा (1993 ), मम्मो (1994), सरदारी बेगम (1996), समर (2000), हरी-भरी: फर्टिलिटी (2000), जुबैदा (2001), नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो (2005), वेलकम टू सज्जनपुर (2008), और वेल डन अब्बा! (2009) जैसी फिल्में बनाईं.
बेनेगल ने वृत्तचित्र भी बनाना जारी रखा, विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के प्रारंभिक वर्षों का एक सिनेमाई अध्ययन : द मेकिंग ऑफ द महात्मा (1996) और संविधान: द मेकिंग ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ इंडिया (2014) यादकार काम रहे.