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छत्तीसगढ़ के 80% बच्चों के आहार में विविधता नहीं

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ अभी भी देश के उन 6 राज्यों में शुमार है, जहां 6 से 23 महीने के बच्चों को विविधतापूर्ण आहार नहीं मिल पाता. न्यूनतम आहार विविधता विफलता या minimum diet diversity failure MDDF को लेकर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि छत्तीसगढ़ के लगभग 80 प्रतिशत बच्चे इस दायरे में हैं.

न्यूनतम आहार विविधता विफलता का मतलब यह है कि बच्चे को हर दिन एक ही तरह का भोजन मिल रहा है. अगर किसी बच्चे को दलिया मिल रहा है तो हर समय भोजन में उसे दलिया ही दिया जा रहा है. किसी बच्चे को खिचड़ी दी जा रही है, तो उसे हर समय खिचड़ी ही मिल रही है. उसके आहार में विविधता नहीं है. जिसके कारण उसका संपूर्ण विकास बाधित होना तय है.

न्यूनतम आहार विविधता, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वीकृत एक विश्वसनीय और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला संकेतक है, जो बच्चों के लिए विविध खाद्य समूहों और आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता और उपभोग को दर्शाता है. WHO के अनुसार, पोषण संबंधी कारक लगभग 35 प्रतिशत बाल मृत्यु का कारण बनते हैं और वैश्विक स्तर पर कुल बीमारी के बोझ में 11 प्रतिशत का योगदान करते हैं.

पोषण के खराब स्तर के कारण बच्चों की रोग प्रतिरक्षा कम हो जाती है, संक्रमण और अभावजन्य रोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है, साथ ही कई तरह की खराब स्वास्थ्य स्थितियां पैदा हो जाती हैं.

चूंकि आहार विविधता की विफलता, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनेपन और दुर्बलता का एक बड़ा कारण है, इसलिए छोटे बच्चों के आहार उपभोग के तौर-तरीके को समझना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें न्यूनतम पर्याप्त आहार मिल रहा है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा प्रकाशित नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया में वैज्ञानिक ध्रुवी बागरिया, सुदेशना रॉय और गौरव सुरेश गुन्नाल ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि पिछले कुछ सालों में न्यूनतम आहार विविधता विफलता में कमी आई है. हालांकि यह कमी बहुत संतोषजनक नहीं है.

उन्होंने बच्चों में न्यूनतम आहार विविधता विफलता की अनुदैर्ध्य, क्षेत्रीय और विविध पृष्ठभूमि विशेषताओं वाले जनसंख्या समूहों में जांच करने के लिए राउंड 3, 4 और 5 से राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) डेटासेट का उपयोग किया.

इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश (86.1 प्रतिशत), राजस्थान (85.1 प्रतिशत), गुजरात (84 प्रतिशत), महाराष्ट्र (81.9 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (81.6 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (79.8 प्रतिशत) के साथ अभी भी सर्वाधिक न्यूनतम आहार विविधता विफलता वाले राज्य बने हुए हैं.

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