पेंड्रावन : खनन के लिए बांध की बलि या…
रायपुर | संवाददाता: क्या छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार पेंड्रावन जलाशय को बचाने के लिए लाइम स्टोन के खनन की मंजूरी को रद्द करेगी या इस बांध और हज़ारों किसानों की खेती की बलि देगी ? पेंड्रावन में खनन के ख़िलाफ़ आंदोलन की तैयारी कर रहे किसानों को देख कर यह सवाल उठने लगा है.
रायपुर ज़िले का पेंड्रावन जलाशय, छत्तीसगढ़ का दूसरा सबसे पुराना जलाशय है. केंद्र सरकार के दस्तावेज़ों की मानें तो यह जलाशय 1907 में बन कर पूरा हुआ था. पिछले सौ सालों से भी अधिक समय से अलग-अलग गांवों की 3417.95 हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई इस जलाशय से होती रही है. लेकिन अब पेंड्रावन जलाशय पर ख़तरा मंडरा रहा है.
पिछले कई सालों से इस जलाशय को अनुपयोगी बता कर यहां खनन की तैयारी होती रही है. लेकिन इलाके में लगातार विरोध के कारण खनन को अब तक मंजूरी नहीं मिल पाई.
अब हाईकोर्ट के एक निर्देश के बाद, फिर से इस जलाशय में खनन को लेकर सुगबुगाहट शुरु हो गई है.
अंग्रेजों ने करवाया था निर्माण
यह एक बहुदेशीय सिंचाई परियोजना है, जिसका निर्माण रायपुर जिले के खरोरा एवं सारागाँव क्षेत्र में भारी जल संकट और भविष्य की पानी की जरूरतों को देखते हुए वर्ष 1907 में ग्राम बंगोली, मूरा में अंग्रेजों द्वारा करवाया गया था.
आज भी इस ऐतिहासिक जलाशय से क्षेत्र के 3440 किसानों की 3417.95 हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई होती है एवं दर्जनों गाँव को निस्तार का पानी मिलता है. भूमिगत जल स्रोतों के रिचार्ज में भी यह जलाशय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
इसकी केनाल संरचना का इस्तेमाल महानदी गंगरेल परियोजना की भाटापारा शाखा से सिंचाई की जल आपूर्ति के लिए भी होता है. इस जलाशय और उसके केचमेंट के नालों के डायवर्सन से अन्य जलाशयों को भी भरा जाता है, जिससे इसकी कुल सिंचाई क्षमता लगभग 15 हजार एकड़ से अधिक हो जाती.
यह जलाशय सम्पूर्ण पारिस्थिकी तंत्र और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है. जलाशय के नजदीक स्थित मोहरेंगा जंगल है, जिसे वन विभाग ने पक्षी विहार बनाया है. बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी इस इलाके में आते हैं. इस वन क्षेत्र के काले हिरण समेत कई जानवर, इस जलाशय के आसपास विचरण करते हैं.
अस्तित्व पर संकट
इस जलाशय के केचमेंट में अल्ट्राटेक कम्पनी की 689 हेक्टेयर क्षेत्रफल में चूना पत्थर यानी लाइम स्टोन का खनन प्रस्तावित है.
विशेषज्ञों का कहना है कि खनन परियोजना शुरू होने से पेंड्रावन में जल भराव में भारी कमी आएगी.
जलाशय का जल ग्रहण क्षेत्र 25.47 वर्ग किलोमीटर से घटकर मात्र 8.4 वर्ग किलोमीटर ही रह जाएगा.
जल ग्रहण क्षेत्र घटने से बांध की जल भराव क्षमता सिर्फ 32 प्रतिशत रह जाएगी. ज़ाहिर है, बांध के बने रहने का कोई औचित्य ही नहीं रहेगा. इस बांध का जल भराव पूर्ण रूप से बरसात के पानी पर निर्भर है.
एनओसी यानी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट यानी अनापत्ति प्रमाण का खेल
अल्ट्राटेक कंपनी द्वारा 21 अगस्त 2007 को ग्राम मूरा और मोहरेंगा की 689 हेक्टेयर जमीन में लाइम स्टोन उत्खनन हेतु माइनिंग लीज के लिए खनिज साधन विभाग को आवेदन प्रस्तुत किया गया था.
दिनांक 5 फरवरी 2009 को जल संसाधन विभाग ने सशर्त खनिज पट्टा स्वीकृत करने के के लिए अनापत्ति जारी की.
लेकिन 2015 तक कम्पनी द्वारा समय पर खनन योजना उपलब्ध नहीं कराने के कारण खनिज साधन विभाग ने माइनिंग लीज सम्पादित नही की.
उसी वर्ष धरसींवा के तत्कालीन विधायक देवजी भाई पटेल ने खनन से पेंड्रावन जलाशय के अस्तित्व का संकट का मुद्दा उठाते हुए खनन परियोजना निरस्त करने की मांग रखी. विधायक की मांग पर तब के जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने जल संसाधन विभाग की अनापत्ति प्रमाण पत्र यानी एनओसी निरस्त करने की घोषणा की.
मंत्री की घोषणा के बाद विभाग ने 31 दिसंबर 2015 को पूर्व में जारी एनओसी निरस्त कर दी.
वर्ष 2016-2017 में अल्ट्राटेक कंपनी की पहल के बाद, एक बार पुनः खनन के लिए एनओसी देने की कोशिश शुरू हुई. इसके लिए जल संसाधन विभाग ने डेम सेफ्टी बोर्ड का गठन किया. तीन सदस्यीय डेम सेफ्टी बोर्ड के पैनल ने 8 नवम्बर 2016 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कम्पनी को सशर्त एनओसी देने की अनुशंसा की.
सिंचाई क्षमता खत्म करने की शर्त के साथ अनुमति !
बोर्ड ने सुझाव दिया कि खनन के दरम्यान आने वाले पानी को पुनः पम्प के माध्यम से जलाशय में वापस भरा जाये. बोर्ड ने कहा कि हालाँकि यह कार्य अव्यावहारिक और खर्चीला है परन्तु इस कार्य के लिए यदि कंपनी तैयार है तो एनओसी दी जा सकती है.
हालाँकि जल संसाधन विभाग में अधिकतर अधिकारी एनओसी देने के पक्ष में नहीं थे. डेम सेफ्टी बोर्ड की रिपोर्ट के पूर्व जल संसाधन विभाग के ही बंगोली स्थित उपसंभाग क्रमांक 11 के अनुविभागीय अधिकारी और कार्यपालन अभियंता ने खनन की अनुमति नहीं देने का स्पष्ट अभिमत उच्च अधिकारियों को भेजा था.
4 जून 2016 को अनुविभागीय अधिकारी ने अपने अभिमत में आपतियों को दर्ज करते हुए लिखा कि “खनन की अनुमति केवल सिंचाई क्षमता को ख़त्म करने की शर्त पर ही दी जा सकती हैं.”
14 जुलाई 2016 को कार्यपालक अभियंता द्वारा प्रेषित पत्र में बिन्दुवार आपत्तियों को लिखते हुए कहा गया कि “खनन से पेंड्रावन जलाशय की उपयोगिता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जायेगा.”
डेम सेफ्टी बोर्ड के कई सुझाव, जिन्हें बोर्ड भी स्वयं अव्यावहारिक घोषित कर चुका था, उन्हीं सुझावों को शर्तों में परिवर्तित करके 3 जनवरी 2017 को एक बार पुनः जल संसाधन विभाग ने खनन के लिए एनओसी जारी कर दी.
हालाँकि उसी माह छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला को सूचना के अधिकार के तहत इस एनओसी की जानकारी मिली तो एक बार फिर इलाके के किसान लामबंद हुए.
पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति के नेतृत्व में चले व्यापक किसान आन्दोलन और तत्कालीन विधायक देवजी भाई पटेल के मुखर विरोध के कारण एक बार पुनः इस एनओसी को निरस्त किया गया.
तब के जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने 2 मार्च 2017 को क्षेत्र के किसानों की सभा में पहुंचकर दूसरी बार इस एनओसी को ख़ारिज करने की घोषणा की.
हाईकोर्ट में पहुंचा मामला
जल संसाधन विभाग के निरस्तीकरण के आदेश को खनन कम्पनी ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में चुनौती दी और दूसरी ओर किसानों ने भी याचिका दायर की. न्यायालय ने 25 अप्रेल 2024 को विभाग के निरस्तीकरण के आदेश को ख़ारिज करते हुए जल संसाधन विभाग से कहा है कि वह कंपनी को सुनवाई का अवसर देते हुए, तीन महीने के अंदर पुनः निर्णय ले.
न्यायालय के आदेश के तारतम्य में खनन परियोजना की अनुमति देने या नहीं देने के संबंध में विभागीय कार्यवाही एक बार पुनः शुरू हो गई है. क्षेत्र के किसान भी लामबंद हैं और पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला कहते हैं-“जांजगीर-चांपा ज़िले का रोगदा बांध एक महत्वपूर्ण जलाशय था, जो कई गाँव के लिए खेती और निस्तार का जल उपलब्ध कराता था लेकिन उसे सूखा और अनुपयोगी बताकर एक बड़े थर्मल पॉवर प्लांट को बेच दिया गया. पेंड्रावन जलाशय के साथ भी उसी तरह का षड्यंत्र रचा जा रहा है. लेकिन इलाके के किसानों ने तय किया है कि जिस जलाशय पर उनकी आजीविका निर्भर है, खेती निर्भर है, उसे किसी भी हालत में खनन के लिए नहीं देंगे.”
किसानों ने हाल ही में राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से भी मुलाकात करके, पेंड्रावन जलाशय को बचाने की अपील की है. धरसींवा के भाजपा विधायक अनुज शर्मा, पूर्व विधायक देवजी भाई पटेल, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष अनिल नायक, सचिव घनश्याम वर्मा, संरक्षक मंडल के सदस्य ललित बघेल और उधोराम वर्मा ने मुख्यमंत्री के अलावा जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप को भी ज्ञापन सौंपा है.
किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर पेंड्रावन जलाशय में खनन हुई तो वे राज्य भर में इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरेंगे.
ज़ाहिर है, किसान इस बार आर या पार की मुद्रा में हैं. जल, जंगल और ज़मीन की रक्षा की घोषणा करके सत्ता में आई भाजपा सरकार, इस जलाशय पर क्या फ़ैसला लेती है, यह देखना दिलचस्प होगा.