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छत्तीसगढ़ में करंट से 77 हाथी मारे गए, सरकारी झगड़े में जाती रही जान

रायपुर| संवाददाताः छत्तीसगढ़ में अंधाधुंध कोयला खदानों की खुदाई के बीच सरकार के दो विभागों की आपसी खींचतान में लगातार हाथी मारे जा रहे हैं. पिछले दो सालों में राज्य में केवल करंट लगने से 21 हाथियों की मौत हो चुकी है.

इस साल भी अब तक तीन हाथी करंट लगने से मारे जा चुके हैं.

राज्य बनने के बाद से राज्य में अब तक केवल करंट लगने से 77 से अधिक हाथियों की मौत हो चुकी है.

लेकिन करंट से हाथियों को बचाने के लिए किए जाने वाले उपायों की फाइल पर, राज्य का वन और ऊर्जा विभाग, धरातल पर कोई उपाय नहीं कर रहा है.

कई सालों तक राज्य के ऊर्जा विभाग और वन विभाग के बीच इसी बात को लेकर विवाद चलता रहा कि हाथियों को बचाने के लिए किए जाने वाले उपाय पर जो खर्च आएगा, उसका वहन कौन करेगा.

अब कहीं जा कर विभागों के बीच सहमति बनी है और राज्य के वन और ऊर्जा विभाग ने हाईकोर्ट में इस आशय का हलफ़नामा दायर किया है.

हाथी मारे जाते रहे और केंद्र चिट्ठी पर चिट्ठी लिखता रहा

छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के कई सालों तक हाथियों का दायरा सरगुजा संभाग और कोरबा-रायगढ़ ज़िलों तक ही था.

लेकिन उनके रहवास वाले इलाकों में कोयला खदानों की शुरुआत के साथ ही हाथी, राज्य के दूसरे इलाकों में भटकने को बाध्य हो गये.

इसके बाद से ही हाथी राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भटक रहे हैं और मारे जा रहे हैं.

इनमें से अधिकांश हाथियों की मौत, करंट से हो रही है.

छत्तीसगढ़ में करंट से हाथियों की मौत के अधिकांश मामले बताते हैं कि या तो जंगल से हो कर गुजरने वाले बिजली के खंबों से तार खींचकर हाथियों को मारा गया या फिर बिजली के तार इतने नीचे थे कि उनकी चपेट में आ कर हाथी की मौत हो गई.

20 मई 2015 को हाथी अभयारण्य और कॉरिडोर को मजबूती देने के लिए गठित कार्यदल की पहली बैठक में करंट से हाथियों की मौत को लेकर चिंता जताते हुए, 22 मई को देश के सभी राज्यों के वन विभाग को भारतीय विद्युत अधिनियम 1956 की धारा 77 को कड़ाई से लागू करने के लिए एक प्रपत्र भेजा गया.

विद्युत अधिनियम की इस धारा में विस्तार से इस बात का वर्णन है कि कितने वोल्ट के करंट की स्थिति में, बिजली के तारों की ऊंचाई कितनी होगी.

इस क़ानून के अनुसार सबसे निचले कंडक्टर की जमीन के ऊपर निकासी के मामले में, सड़क के पार खड़ी की गई सर्विस लाइनों सहित ओवरहेड लाइन का कोई भी कंडक्टर, उसके किसी भी हिस्से में, निम्न और मध्यम वोल्टेज लाइनों के लिए 5.8 मीटर और उच्च वोल्टेज लाइनों के लिए 6.1 मीटर से कम ऊंचाई पर नहीं होगा.

उसी साल 18 दिसंबर को एक ख़बर का हवाला देते हुए वन महानिदेशक ने विद्युत विभाग को मई की चिट्ठी का हवाला देते हुए उस पर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया.

7 सितंबर 2020 को वन महानिदेशक ने एक बार फिर विद्युत विभाग को पत्र लिख कर विस्तार से इस समस्या को निपटाने के लिए सुझाव दिए.

6 जुलाई को वन महानिरीक्षक ने छत्तीसगढ़ के वन विभाग को और 31 जुलाई 2020 को तत्कालीन वन एवं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को, दो महीने में आठ हाथियों की करंट और अन्य कारणों से मौत को लेकर, वन विभाग और बिजली विभाग समेत दूसरे संबंधित विभागों के बीच समन्वय बनाने के लिए मंडल, ज़िला और राज्य स्तर पर कमेटियां गठित करने का सुझाव दिया था.

लेकिन राज्य का वन विभाग और छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव इस मुद्दे पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे.

छत्तीसगढ़ के वन विभाग को जगाने की कोशिश

23 अगस्त 2021 को वन और पर्यावरण मंत्रालय के इंस्पेक्टर जनरल ने फिर से छत्तीसगढ़ के वन विभाग को चिट्ठी लिख कर नींद से जगाने की कोशिश की.

आईजी ने वन विभाग को पत्र लिख कर, अब तक 40 हाथियों की करंट से मौत और ताज़ा घटनाओं का हवाला देते हुए राज्य और ज़िला स्तर पर कमेटी गठित करने के निर्देश की याद दिलाई.

इसमें पुराने दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए बिजली के खंबों में लटकने वाले तारों को आवश्यक ऊंचाई तक रखने, बिजली के खंबों को कांटेदार तार से घेरने, खंबों को कांक्रीट से मज़बूत करने, जंगल के इलाकों से गुजरने वाले विद्युत तारों का समय-समय पर वन विभाग और विद्युत विभाग द्वारा संयुक्त रुप से जायजा लेने, किसी स्वतंत्र संस्था द्वारा भारतीय विद्युत नियमों के पालन के संदर्भ में प्रतिवर्ष अनिवार्य ऑडिट करवाने, 11 केवी के नंगे तारों की जगह इंसुलेटेड केबल यानी विद्युतरोधी तार का उपयोग करने जैसे सुझाव दिए गए थे.

12 अगस्त 2022 को प्रोजेक्ट एलिफेंट की स्टेयरिंग कमेटी की 17वीं बैठक में बिजली के करंट से हाथियों की मौत पर व्यापक चर्चा हुई और 16 सितंबर 2022 को देश के सभी राज्यों के वन विभाग को इस आशय की चिट्ठी लिख कर वन्यजीव बोर्ड की 54वीं बैठक में लिए गए निर्णयों की याद दिलाई गई, जिसमें संरक्षित वन क्षेत्र में पारेषण लाइनों और केबल को तत्काल सुधारने का निर्देश दिया गया था.

इस निर्देश में कहा गया कि बिजली विभाग और वन विभाग के अधिकारियों द्वारा संरक्षित क्षेत्रों से गुजरने वाली या संरक्षित क्षेत्रों (जहाँ जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता है) के आसपास से गुजरने वाली प्रत्येक पारेषण/वितरण लाइन का संयुक्त निरीक्षण नियमित रूप से किया जाएगा.

इसके अलावा निर्देश दिया गया कि वन क्षेत्रों में बिजली से होने वाली पशुओं की मृत्यु को रोकने के लिए वितरण कंपनियां आम तौर पर एरियल बंच्ड केबल या भूमिगत केबल का उपयोग करेंगी. साथ ही साथ, मौजूदा ट्रांसमिशन लाइनों को विद्युत वितरण कंपनियाँ और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, द्वारा प्राथमिकता के आधार पर बदला जाना चाहिए और उसकी जगह इंसुलेटेड केबल या भूमिगत केबल का उपयोग किया जाना चाहिए.

लेकिन छत्तीसगढ़ का वन अमला टस से मस नहीं हुआ.

हाईकोर्ट के निर्देश पर भी टाल मटोल

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने 2028 में इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

मार्च 2019 में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण विभाग ने हाथियों को मौत से बचाने के लिए 810 किलोमीटर 33 केवी और 3761 किलोमीटर 11 केवी लाइन की ऊंचाई बढ़ा कर कवर्ड कंडक्टर लगाने व 3976 किलोमीटर निम्न दाब लाइन में एरियल बंच्ड केबल लगाने के लिए वन विभाग से 1674 करोड़ रुपये की मांग की.

वन विभाग ने इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग को चिट्ठी लिख कर इस राशि की मांग की तो केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने साफ तौर पर कहा कि यह काम विद्युत वितरण कंपनी का है और इसे उन्हें अपने बजट से पूरा करना है.

केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग न इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला भी दिया गया. यहां तक कि राज्य के वन विभाग को कहा गया कि अगर विद्युत विभाग इसे पूरा करने में असफल रहता है तो दोषियों के ख़िलाफ़ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, भारतीय विद्युत अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई की जाए.

इसके बाद तो बिजली विभाग ने अपना रूख ही बदल दिया. व्यवस्था ठीक करने के बजाय हाथी प्रभावित इलाकों में बिजली की आपूर्ति ही बंद करना शुरू कर दिया. इससे वहां के निवासी भी प्रभावित हो रहे हैं.

अब जा कर बनी सहमति

इधर पिछले सप्ताह हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में यह तथ्य सामने रखा गया कि 26 जून 2024 को ऊर्जा विभाग, विद्युत वितरण कंपनी और वन विभाग के अधिकारियों के उच्च स्तरीय बैठक में निर्णय लिया गया कि 11 केवी लाइन 33 केवी लाइन और एलटी लाइन के झुके हुए तारों को कसने का काम, तार की ऊंचाई बढ़ाने का काम तथा वन क्षेत्र, हाथी रहवास, हाथी विचरण क्षेत्र में भूमिगत बिजली की लाइन बिछाने अथवा इंसुलेट केबल लगाने का कार्य तथा स्पाई युक्त खम्बों का प्रयोग करने का कार्य ऊर्जा विभाग और छत्तीसगढ़ पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी करेगी.

26 जून 2024 की बैठक में केंद्र के बनाए गए मार्गनिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने पर सहमति बनी है.

जिसके अनुसार विद्युत कंपनी को सभी झुकी हुई लाइनों को ठीक करना है, बिजली लाइन के तार को वन क्षेत्र में जमीन से कम से कम 20 फीट ऊंचाई पर करना है और 11 केवी और एलटी लाइन के कंडक्टर को बदलकर कवर्ड कंडक्टर लगाना है.

हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है.

ज़ाहिर है, वन विभाग की दिलचस्पी इसमें जितनी अधिक होगी, काम उतनी तेज़ी से होगा.

लेकिन वन विभाग की दिलचस्पी का हाल ये है कि हाथियों की करंट से मौत को लेकर दायर याचिका में, उसने लगातार इस याचिका का ही विरोध किया. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ताज़ा सहमति के बाद वन विभाग का रुख कैसा रहता है.

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