बदल रहा है आरएसएस
आलोक श्रीवास्ताव | फेसबुक: आरएसएस बौद्धिक रूप से काफी बदल गया है और बदलने जा रहा है. वह सिर्फ हेडगेवार और गोलवलकर की किताबों पर ही निर्भर नहीं है. उसने अपने बुद्धिजीवी खड़े कर दिए हैं. यह एक अत्यंत विस्तृत विषय है, पर अभी सिर्फ एक बात का जिक्र करना जरूरी है.
आरएसएस भाजपा के जरिये केवल सत्ता के मजे नहीं ले रहा है, बल्कि अपने बौद्धिक नख-दंत को शार्प कर रहा है और बड़े कौशल के साथ कर रहा है. वह ज्ञान की बारीकी में उतर रहा है. वह किस प्रक्रिया से और कैसे यह कर रहा है, यह जानने की कोशिश करने पर पता चल जाएगा.
अब वि-उपनिवेशीकरण उसके मुख्य लक्ष्यों में से है.
विउपनिवेशीकरण अफ्रीका एशिया, चीन, रूस इन सभी के लिए पिछली एक सदी से बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है, क्योंकि औद्योगिक क्रांति के बाद पूंजीवाद के प्रसार ने सारी दुनिया में न सिर्फ उपनिवेश बनाए बल्कि उपनिवेशों के समाज, लोगों के मानस और वहां की संस्थाओं पर जो छाप छोड़ी वह आज तक मिटी नहीं है.
अतः विउपनिवेशीकरण सचमुच एक बहुत बड़ा मसला है. हालांकि भारत की कांग्रेसी, समाजवादी और वामपंथी राजनीति के लिए यह कोई मसला नहीं रहा, लिहाजा दक्षिणपंथ ने इसे लोक लिया है.
बहुत सरल शब्दों में कहा जाए तो यह कि पश्चिमी सभ्यता ने भारत में बहुत कुछ बुरा किया और बहुत कुछ अच्छा भी किया तो विउपनिवेशीकरण का मतलब हुआ भारत की संस्थाओं, कानूनों आदि समस्त जीवन-क्षेत्रों से पश्चिमी प्रभाव से आए अच्छे को बरकरार रखना और सशक्त करना और बुरे को खत्म करना.
परंतु संघ की विचारधारा में विउपनिवेशीकरण का मतलब अभारतीय चीजों को हटाकर भारतीय चीजों की स्थापना करना है. भारतीय से उनका आशय हिंदू परंपरा है और हिंदू परंपरा से उनका आशय यह नहीं है कि हिंदू धर्म के जीवंत और उचित तत्वों को लिया जाए और मृत तत्वों को त्यागा जाए.
यह एक बहुत सूक्ष्म और कठिन युद्ध है जो आने वाले समय में भारत पर थोपा जा रहा है और इसमें जय-पराजय पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा.