आधुनिक चिकित्सा की ‘माँ’ : हेनरिएटा लैक्स
सुदेशना रुहान
साल 1951: बाल्टीमोर, राज्य मेरीलैंड, संयुक्त राष्ट्र अमरीका.
सितंबर की एक सुबह 31 वर्षीय हेनरिएटाअपने चार बच्चों से वादा करती है कि वह अस्पताल से जल्द लौट आएगी. पिछली रात उसने पति डेविड से अस्पताल में भर्ती होने की इच्छा जताई थी. एक साल से अस्पताल के चक्कर लगाकर वह थक गयी थी, और लगता था कि भर्ती हुए बग़ैर लंबा आराम मुश्किल है.
पेट में कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा था, पर उसकी रफ़्तार का अंदाज़ा न जॉन हॉप्किंस के डॉक्टर्स को था, न ख़ुद हेनरिएटा को. परिवार भी यही मानता था कि बीमारी परमेश्वर देता है, और केवल वही उसे हर सकता है. लिहाज़ा इस पर बात करने की बजाय हेनरिएटा ने घर की ज़िम्मेदारी के साथ, बच्चे पैदा करना और तंबाकू के खेत में काम को बदस्तूर जारी रखा. अस्पताल और इलाज पर कोई ग़रीब सवाल नहीं कर सकता था, और अगर वह अश्वेत हो, तो हर्गिज़ नहीं.
1950 के दशक में अमरीका में नस्लीय भेदभाव चरम पर था. शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकार उल्लंघन में इसकी जड़ें बहुत गहरी थी. अश्वेतों ले लिए अस्पताल में अलग वार्ड और बाथरूम होते थे. माना जाता था कि सभी यौन जनित संक्रमणों के लिए केवल अश्वेत ज़िम्मेदार हैं.
श्वेत डॉक्टरों द्वारा इलाज उपलब्धि थी, जिसके बदले अस्पताल और डॉक्टर उन पर मनमाना शोध करते. अश्वेत परिवारों को मुफ़्त खाना और अस्पताल तक लाने जाने के एवज़ में उन पर सिफ़िलिस, मलेरिया, और अन्य जीवाणुओं से संक्रमित कर उसका प्रभाव देखा जाता. कई अस्पताल मृत अश्वेतों को उनके कब्र से निकालकर शोध करते.
अश्वेत समुदाय सुरक्षित नहीं था, मगर ग़रीबी और रोग अस्पताल जाने की उनकी बाध्यता को बनाये रखते. लैक्स परिवार के साथ भी यही हुआ. इलाज के दौरान जॉन हॉप्किंस अस्पताल ने हेनरिएटा की जानकारी के बग़ैर उसके कैंसर के नमूने ले लिए.
हेनी, दूसरे शहर चलो…
हेनरिएटा लैक्स का असल नाम था लॉरेटा प्लीजेंट. उनका जन्म 1 अगस्त 1920 में अमरीका के वर्जिनिया प्रांत में एक अश्वेत परिवार में हुआ था. लॉरेटा, कब और क्यों हेनरिएटा बनी यह कोई नहीं जानता, सिवाय इसके कि घरवाले और दोस्त उन्हें हेनी पुकारते.
परिवार बेहद ग़रीब और दस बच्चों से घिरा था. इसीलिए हेनरिएटा की मां की असमय मृत्यु के बाद, सभी बच्चों को उनके पिता ने अलग अलग रिश्तेदारों के घर भेज दिया. हेनरिएटा, अपने नाना टॉमी लैक्स के हिस्से में आईं.
10 अप्रैल 1941 को हेनरिएटा ने अपनी मौसी के 25 वर्षीय बेटे डेविड लैक्स से शादी की, जो उन दिनों तंबाखू खेत में काम करते थे. कुछ समय बाद ही लैक्स परिवार अपने बच्चों के साथ बाल्टीमोर शहर आकर बस गया. डेविड एक स्टील मिल में काम करने लगे.
अगले एक दशक ग़रीबी, डेविड की शराब की लत, और महिलाओं से अनैतिक संबंधों के बावजूद लैक्स परिवार में सब ठीक चलता रहा. परिवार में अब पांच बच्चे थे, जिसमें से मानसिक रूप से कमज़ोर बेटी एलसी को क्राउनस्विले स्टेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. जीवन के अंत तक एलसी उसी अस्पताल में रही.
अस्पताल और पूर्वाग्रह
साल 1950 की शुरुआत से ही हेनरिएटा को पेट के निचले हिस्से में असुविधा हो रही थी. आने वाले महीनों में जब दर्द के साथ पेट में एक गाँठ उभर आया, तब उसने डेविड को यह बात बताई.
दोनों को पूर्व में सिफलिस हो चुका था, जिसकी वजह से लैक्स परिवार के पाँचों बच्चों को जन्म से ही काम दिखाई और सुनाई देता. दोनों यौन जनित रोगों के बारे में जानते थे, मगर सर्विकल कैंसर उनकी समझ के परे का विषय था.
फ़रवरी 1951 में हेनरिएटा के कैंसर की टुकड़े की जांच की गयी. जॉन हॉपकिंस अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ डॉ. जॉर्ज गाए नमूने को देखकर हैरान थे. उन दिनों चिकित्सा विज्ञान एक असफल दौर से गुज़र रहा था.
मानव कोशिकाओं के जितने नमूने वैज्ञानिकों के पास आते, वे जल्द ही नष्ट हो जाते. उन्हें लम्बे समय तक जीवित रख कर शोध करने की कोई संभावना नहीं थी.
मगर हेनरिएटा की कैंसर कोशिकाएं पहले ऐसे नमूने थे जिन्हें न केवल लम्बे समय तक शरीर के बाहर जीवित रखा जा सकता था, बल्कि हर चौबीस घंटे में वे अपनी संख्या दोगुनी कर रहे थे. कोशिकाओं को हेला सेल्स का नाम दिया गया, और हेला सेल्स ने वैज्ञानिकों के आगे शोध करने का अथाह रास्ता खोल दिया.
डॉ. गाए इन परिणामों से इतने उत्साहित थे कि एक शाम वे अश्वेत वॉर्ड में गए और हेनरिएटा के कानों में फ़ुसफ़ुसाकर बोले “तुम नहीं जानती, तुमने चिकित्सा विज्ञान के लिए क्या किया है! अब तुम मशहूर होने वाली हो…”
समृद्धि और गुमनामी
हेला सेल्स से एक तरफ जहां विज्ञान समृद्ध हो रहा था, वहीं हेनरिएटा का परिवार गुमनामी में लौट गया.
3 अक्टूबर 1951 की रात हेनरिएटा की बहन ने डेविड से कहा “आज रात हेनी की मौत हो जाएगी. वह यह बात जानती है. उसे अपनी फ़िक्र नहीं, वह सिर्फ इतना चाहती है कि तुम एक अच्छे पिता की तरह बच्चों की परवरिश करो.”
अगले दिन तड़के अस्पताल में हेनरिएटा चल बसी. समय के साथ एक गुमनाम कब्र को देखते हुए बच्चे समझ पाए कि माँ अब नहीं लौटेगी.
1950 के दशक में हेला सेल्स की मांग बढ़ रही थी. जॉन हॉपकिंस अस्पताल की सीमाओं को लांघकर हेनरिएटा की कोशिकाएं एरिज़ोना के रेगिस्तान, अलास्का के घने जंगल, और यूरोप के कड़कड़ाने वाली प्रयोगशालों में पहुँच गई.
उन्हीं को आधार बनाकर पोलियो का टीका, कैंसर और एड्स के रोकथाम की दवाइयां बनाई गयी. 60 और 70 के दशक में स्पेस तकनीक और न्यूक्लियर विज्ञान में मानव शरीर पर प्रभाव के अध्ययन में हेला सेल्स ही इस्तेमाल किये गए.
मीज़ल्स, हर्पीस, सिफ़िलिस, रक्त चाप और मधुमेह की दवाईयों के प्रभाव को सबसे पहले हेला सेल्स पर परिक्षण किया गया. मानव शरीर पर रेडियोथेरेपी को बेहतर बनाने के लिए भी हेला सेल्स की सेवाएं ली गयी.
सन 2000 तक हेला सेल्स को आधार बनाकर 60,000 शोध पात्र लिखे जा चुके थे, जिनकी संख्या हर महीने करीब 300 नए शोध के साथ लगातार बढ़ रही थी. बावजूद इसके किसी अस्पताल, फार्मा कंपनी या अनुसंधान केंद्र ने हेनरिएटा या उनके परिवार का परिचय नहीं जानना चाहा. दुनिया के लिए वह हेला सेल्स या हेलेन लेन नाम की कोई अनजान महिला बनी रही.
नियति: हेनरिएटा की अमर कहानी
90 के दशक तक हेनरिएटा केवल अपने परिवार की स्मृतियों में दबी रही.
साल 1995 में रिबेका स्कलूट नामक एक अमरीकी लेखिका, हेनरिएटा पर किताब लिखने पर विचार कर रही थी. उसने लैक्स परिवार से संपर्क किया, मगर परिवार का कोई भी सदस्य हेनरिएटा पर बात करने को तैयार नहीं था.
वे आधी सदी तक हुए अपनी मां की उपेक्षा से व्यथित थे. दुःख की बात ये कि जिस महिला की कोशिका से चिकित्सा विज्ञान इतना समृद्ध हुआ, उसी महिला के परिवार के पास मेडिकल इन्शुरन्स ख़रीदने तक के पैसे नहीं थे.
हेनरिएटा का परिवार आज भी बाल्टीमोर में ग़रीबी, अशिक्षा और अपराध से जूझ रहा था.
रिबेका के बहुत मनाने और सालों संपर्क बनाये रखने के बाद, हेनरिएटा की बेटी डेबोराह बातचीत के लिए तैयार हुयी. वह 50 वर्ष की हो चुकी थीं और लैक्स परिवार उसके निर्णय को मानता था.
समय के साथ परिवार के सदस्यों ने संघर्षों को परे रख, अपनी माँ की स्मृतियों को रिबेका के साथ साझा किया. हेनरिएटा के पति डेविड ने भी.
दि इम्मोर्टल लाइफ़ ऑफ हेनरिएटा लैक्स
2 फरवरी 2010 को रिबेका स्कलूट द्वारा लिखी हेनरिएटा की जीवनी ‘दि इम्मोर्टल लाइफ़ ऑफ हेनरिएटा लैक्स’ प्रकाशित हुयी और कम समय किताब न्यूयोर्क टाइम्स बेस्ट सेलर की लिस्ट में शामिल हो गई.
पहली बार लोग हेला सेल्स के बजाय हेनरिएटा लैक्स को जान रहे थे. अब वह केवल सेल लाइन ही नहीं, वरन एक पूरी महिला थी, जिसने दुनिया को नया जीवन दिया था.
आगे चलकर जॉन हॉपकिंस अस्पताल ने अपनी त्रुटि सुधारते हुए हेनरिएटा लैक्स और उनके परिवार को चिकित्सा में किये योगदान के लिए सम्मानित किया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हेनरिएटा को श्रद्धांजलि दी. 2017 में इस किताब पर आधारित हेनरिएटा पर एक फिल्म बनी, जिसमें ओपराह विनफ्रे ने डेबोराह के पात्र को निभाया था.
आज हेनरिएटा की मौत के लगभग 73 बाद भी मानव समाज में उनकी आवश्यकता बनी हुयी है. हम सभी हेनरिएटा लैक्स के योगदान के आगे नतमस्तक हैं.
कालांतर में डॉ. जॉर्ज गाए का कहा हुआ वाक्य, “हेनरिएटा, तुम मशहूर होनेवाली हो!” सच साबित हुआ.