विकिलीक्स: लीक हुए थे बस्तर, माओवादियों से जुड़े खुफिया दस्तावेज़
रायपुर | संवाददाता: विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज लगभग पांच सालों तक ब्रिटेन की जेल में रहने के बाद आज रिहा हो गए. अमेरिकी प्रशासन के साथ समझौता होने के बाद जूलियन असांज को रिहा किया गया है.
52 वर्षीय असांज पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज़ चुराने और सार्वजनिक करने के आरोप थे.
बारह साल पहले विकीलीक्स ने अमरीका की टेक्सास मुख्यालय वाली “वैश्विक खुफिया” कंपनी स्ट्रैटफोर से पचास लाख से अधिक ई-मेल, द ग्लोबल इंटेलिजेंस फाइल्स प्रकाशित करके दुनिया भर में हंगामा मचा दिया था.
इन दस्तावेज़ों में छत्तीसगढ़ से जुड़ी जानकारियां भी थीं. इनमें बस्तर के माओवादियों के दस्तावेज़ से लेकर इस खुफिया एंजेंसी की रणनीति तक के जुड़ी बातचीत के रिकार्ड सार्वजनिक किए गए थे.
क्या था विकीलीक्स
27 फरवरी, 2012 को, विकीलीक्स ने टेक्सास मुख्यालय वाली “वैश्विक खुफिया” कंपनी स्ट्रैटफोर से पांच मिलियन से अधिक ई-मेल, द ग्लोबल इंटेलिजेंस फाइल्स प्रकाशित करना शुरू किया. ये ई-मेल जुलाई 2004 से दिसंबर 2011 के अंत तक के थे.
विकीलीक्स ने इस कंपनी स्ट्रैटफोर के अंदरूनी कामकाज को उजागर किया, जो एक खुफिया प्रकाशक के रूप में सामने आती है, लेकिन यह कंपनी भोपाल की डॉव केमिकल कंपनी, लॉकहीड मार्टिन, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन, रेथियॉन और सरकारी एजेंसियों जैसे बड़े घरानों को गोपनीय खुफिया सेवाएं प्रदान करती है. इनमें यूएस डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी, यूएस मरीन और यूएस डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी शामिल हैं.
इन पचास लाख ईमेल और दस्तावेज़ों से दुनिया भर में स्ट्रैटफोर के मुखबिरों, भुगतान संरचना, भुगतान शोधन तकनीकों और काम काज के मनोवैज्ञानिक तरीकों का पता चलता है.
छत्तीसगढ़ से जुड़े दस्तावेज़
विकिलीक्स ने जिन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया था, उनमें छत्तीसगढ़ और बस्तर से जुड़ी कई छोटी-छोटी जानकारियां थीं, जिन पर अमरीका की खुफिया एजेंसी की दिलचस्पी थी.
21 अक्टूबर 2011 का एक दस्तावेज़ छत्तीसगढ़ के बस्तर में 6 जवानों के मारे जाने से जुड़ा हुआ है, तो 13 जनवरी 2010 का एक विस्तृत दस्तावेज़ इस बात से जुड़ा हुआ है कि सामाजिक संगठन, एनजीओ क्यों मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में चल रहे हिंसक संघर्ष को मानव विकास से ही रोका जा सकता है.
6 जुलाई 2011 का एक दस्तावेज़ “भारत के छत्तीसगढ़ राज्य ने माओवादी विरोधी मिलिशिया सलवा जुड़ूम के 4500 सदस्यों से हथियार वापस लेना शुरू कर दिया है” की ख़बर से जुड़ा हुआ है.
माओवादी और लश्कर पर बहस
एक दस्तावेज़ 10 नवंबर 2010 को तब के छत्तीसगढ़ के डीजीपी के बयान से जुड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “लश्कर के आतंकियों ने माओवादी बैठक में भाग लिया था.”
इस बयान को लेकर अमरीका खुफिया एजेंसी की टिप्पणी है-“हमें इसे परस्पर अनन्य ढांचे में देखने से दूर हटना होगा. दूसरे शब्दों में, ऐसा नहीं है कि या तो वे मनगढ़ंत हैं या रिपोर्टें सच हैं. वास्तविकता हमेशा कहीं बीच में होती है. मैं देख सकता हूँ कि आईएसआई और/या इस्लामी आतंकवादी नक्सलियों के साथ काम करने का विकल्प तलाश रहे हैं और इसलिए बैठकें कर रहे हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनके बीच सहयोगात्मक संबंध हैं. भारतीयों ने इन संवादों को समझ लिया होगा और अब वे संबंधों का आरोप लगा रहे हैं.”
इसके जवाब में लिखा गया है-“अभी जैकलिन से बात कर रहा था. वह अभी इस पर शोध कर रही है और उसने अभी कहा कि कई अलग-अलग स्थानीय अधिकारी और एजेंसियाँ, नक्सलियों और इस्लामी समूहों के बीच बैठकों/बातचीत की रिपोर्ट कर रही हैं. जितनी ज़्यादा रिपोर्ट हमें अलग-अलग स्रोतों से मिलती हैं, जो अलग-अलग तरीकों से नक्सलियों को अलग-अलग समूहों से जोड़ती हैं, उतना ही मैं उन पर विश्वास करता हूँ. सच है, भारत में बहुत से लोग हैं जो नक्सलियों को इस्लामी समूहों से जोड़कर उन्हें और ज़्यादा दुष्ट बनाना चाहते हैं, लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि भारतीय स्थानीय पुलिस एजेंसियों के साथ समन्वय करके, नक्सलियों और इस्लामी समूहों के बीच बैठकों की रिपोर्ट गढ़ सकते हैं. यह बहुत ही षडयंत्रपूर्ण हो रहा है. मुझे लगता है कि यह बहुत संभव है कि ये रिपोर्टें बढ़ा-चढ़ाकर या मनगढ़ंत हों, लेकिन मुझे लगता है कि इनमें कुछ हद तक सच्चाई है. जैकलिन, क्या आप इस पर विशिष्ट मामलों के उदाहरण भेज सकती हैं ताकि हम देख सकें कि हम किस पर काम कर रहे हैं?”
इसके जवाब में कहा गया-“मुख्य प्रश्न यह है कि हम इसकी पुष्टि कैसे कर सकते हैं? यह रिपोर्ट भी यह कहने में सक्षम है कि यह एक ही स्रोत से आई है. हमें इस तरह की रिपोर्टों से सावधान रहना होगा क्योंकि भारत की दिलचस्पी अमेरिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए, पाकिस्तान को यथासंभव बदनाम करने में है.”
इन्हीं दस्तावेज़ों में माओवादी नेता किशन जी का एक साक्षात्कार भी शामिल है, जिसमें किशन जी ने कहा था-“मैं असली देशभक्त हूं.”
भाजपा की सरकार और कांग्रेस का दावा
2008 के एक दस्तावेज़ का शीर्षक है- ‘छत्तीसगढ़ चुनाव: भाजपा को सरकार बनाने का भरोसा, कांग्रेस ने कहा अंकगणित उसके पक्ष में.’
दस्तावेज़ में दर्ज है-“सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने रोस्टर में बड़े पैमाने पर बदलाव किए हैं, सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए अपने अधिकांश मौजूदा विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया है. इसने अपनी माओवादी विरोधी, सुरक्षा नीतियों को सार्वजनिक किया है और अपने सबसे गरीब नागरिकों को सस्ते दामों पर चावल देने की पेशकश की है. कांग्रेस को उम्मीद है कि उसे सत्ता विरोधी लहर और भ्रष्टाचार की चिंता से फ़ायदा मिलेगा और उसका लक्ष्य बीजेपी से आदिवासी मतदाताओं को वापस लाना है.”
दस्तावेज़ में आगे लिखा है-“छत्तीसगढ़ में 90 सीटों वाली निवर्तमान राज्य विधानसभा में, भाजपा के पास 50 सीटें हैं, कांग्रेस के पास 37, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के पास 1 और बहुजन समाज पार्टी के पास 1 सीट है. (एक सीट रिक्त है.) छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति (एससी/दलित) और आदिवासी (एसटी) की आबादी काफी है और इन वंचित समुदायों के लिए बड़ी संख्या में विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से 39 सीटें एससी/एसटी उम्मीदवारों (एससी-10, एसटी-29) के लिए आरक्षित हैं. अन्य जगहों की तरह, राज्य में मुख्य चुनावी मुद्दे विकास, सुरक्षा और सत्ता विरोधी लहर हैं, हालांकि छत्तीसगढ़ इन चुनौतियों का सामना अनोखे तरीके से करता है.”