पत्रकारिता विश्वविद्यालय- कांग्रेस न नाम बदल पाई, न कुलपति
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार अपने कार्यकाल में अब तक कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम नहीं बदल पाई.राज्य सरकार द्वारा कुलपति बदलने की कोशिश भी धरी रह गई.
सरकार ने 2020 में भाजपा के वरिष्ठ दिवंगत नेता के नाम के स्थान पर वरिष्ठ दिवंगत पत्रकार चंदूलाल चंद्राकर के नाम पर करने की घोषणा की थी.
दुर्ग के रहने वाले कांग्रेस नेता चंदूलाल चंद्राकर पांच बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे और केंद्र में मंत्री के तौर पर काम किया था. हालांकि 1970 में राजनीति में प्रवेश से पहले उन्होंने कई सालों तक पत्रकारिता की थी और देश के शीर्ष अखबारों के संपादक भी रहे थे.
कांग्रेस पार्टी की सरकार ने कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर करने की घोषणा की थी.
राज्य सरकार ने इसके लिए विधानसभा में बजाप्ता विधेयक पेश किया था. लेकिन सरकारी गजट में प्रकाशित होने के बाद भी विधेयक धरा रह गया.
1998 से 2000 तक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे आरएसएस और जनसंघ के शीर्ष नेताओं में थे. 1979 में अविभाजित मप्र के खंडवा से चुनाव जीतने वाले कुशाभाऊ ठाकरे भारतीय जनता पार्टी में जीवन पर्यंत सक्रिय रहे. 2003 में उनके निधन के बाद, छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने उनकी स्मृति में 2004 में कुशाभाऊ पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की थी.
दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पार्टी की सरकार ने इस विश्वविद्यालय के कुलपति को बदलने की प्रक्रिया शुरु की लेकिन इसमें राज्य सरकार को भाजपा की रणनीतियों के सामने झुकना पड़ा और भाजपा में सक्रिय रहे पत्रकार बल्देव भाई शर्मा को मार्च 2020 में इस विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया. वे अभी भी इस पद पर कार्यरत हैं.
कुलपति की नियुक्ति के बाद 25 मार्च 2020 को विधानसभा में छत्तीसगढ़ कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किया गया.
इस विधेयक में मूल अधिनियम में संशोधन करते हुए कहा गया कि प्रस्तावना में शब्द ‘कुशाभाऊ ठाकरे’ के स्थान पर शब्द ‘चंदूलाल चंद्राकर’ प्रतिस्थापित किया जाए. इसके अलावा विधेयक में कहा गया कि शब्द ‘कुशाभाऊ ठाकरे’ जहां कहीं भी आया हो के स्थान पर शब्द ‘चंदूलाल चंद्राकर’ प्रतिस्थापित किया जाए.
इसके अलावा इस विधेयक में कुलपति चयन के लिए कार्य परिषद द्वारा अनुशंसित एक व्यक्ति, राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित राज्य के किसी अन्य विश्वविद्यालय के कुलपति और राज्य सरकार द्वारा नाम निर्देशित एक व्यक्ति की कमेटी बनाने का उल्लेख था.
लेकिन साढ़े तीन साल गुजर जाने के बाद भी राज्य सरकार ने तो अपनी पसंद का कुलपति बना पाई और ना ही विश्वविद्यालय का नाम ही बदल पाई.