सूखे से लड़ने जल संग्रहण जरूरी
‘जलपुरुष’ ने कहा मराठवाड़ा के सूखे से लड़ने की महाराष्ट्र सरकार में इच्छा शक्ति नहीं है. देश में ‘जलपुरुष’ के नाम से मशहूर और प्रतिष्ठित स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में गहराए सूखे के संकट ने आम आदमी की जिंदगी को बेहाल कर दिया है. लोग तो इस संकट से लड़ने को तैयार हैं, मगर सरकार में इस समस्या से निपटने की इच्छा शक्ति नजर नहीं आती.
जल-हल यात्रा पर निकले सिंह ने गुरुवार को भोपाल में एक साक्षात्कार में कहा कि चार सामाजिक संगठनों स्वराज अभियान, एकता परिषद, नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट और जल बिरादरी ने साथ मिलकर जनजागृति लाने और लोगों को जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के लिए मराठवाड़ा से यह यात्रा शुरू की है. इस यात्रा के दौरान उन्हें मराठवाड़ा के तीन जिलों के गांवों में जाने का मौका मिला.
उन्होंने कहा कि वहां पहुंचकर लगता ही नहीं है कि महाराष्ट्र सरकार इन विषम हालातों का मुकाबला करने के लिए तैयार है. इस इलाके में औसत के मुकाबले 84 प्रतिशत बारिश हुई थी, अर्थात औसत से मात्र 16 प्रतिशत कम. अगर इस बारिश के पानी को ही रोका गया होता, तो आज ऐसी हालत न होती.
उन्होंने कहा कि यहां के लोगों में सूखे से लड़ने और जल संग्रहण की ज्यादा लालसा है, यही कारण है कि सरकार ने बीते वर्ष जल प्रबंधन के लिए 300 करोड़ रुपये दिए थे, वहीं लोगों ने 700 करोड़ रुपये इकट्ठा किए थे. आज भी वहां लोग इन हालातों का मुकाबला करते नजर आते हैं.
मराठवाड़ा में जल संरक्षण के लिए दो वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों ने सामाजिक संगठनों के सहयोग से ‘जल युग शिविर’ येाजना की शुरुआत की थी, जिसके बेहतर नतीजे सामने आए हैं. अब तो वहां की सरकार भी यह मानकर चल रही है कि जल संरक्षण के लिए सामुदायिक प्रयास किए जाने चाहिए.
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए हैं. न्यायालय ने प्रभावित क्षेत्रों के प्रति व्यक्ति को प्रतिमाह पांच किलो अनाज देने, गर्मी की छुट्टी के बावजूद विद्यालयों में मध्याह्न भोजन देने, सप्ताह में कम से कम तीन दिन अंडा या दूध देने का निर्देश दिया है. इसके अलावा, मनरेगा के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया है. लेकिन ये निर्देश मराठवाड़ा में पूरे होते नजर नहीं आते.
जलपुरुष ने एक सवाल के जवाब में कहा कि यह यात्रा लोगों तक सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश को पहुंचाने के साथ ही जमीनी हकीकत को जानने के लिए निकाली गई है. मराठवाड़ा के बाद यह यात्रा शुक्रवार को बुंदेलखंड पहुंच रही है.
उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में सूखा न पड़े, लोगों को पीने का पानी आसानी से मिले, खेती बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि जल संरचनाओं का संरक्षण किया जाए. ऐसा प्रबंध हो कि बारिश का एक बूंद पानी भी बर्बाद न हेाने पाए. इसके लिए सिर्फ सरकारों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, बल्कि समाज को भी आगे आना होगा.