छत्तीसगढ़: जनता से दूर बजट
रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने रमन सरकार के बजट को जनता से दूर एक बजट कहा है. छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता राजेश बिस्सा ने प्रदेश की रमन सरकार द्वारा पेश किए गए बजट को जन आकांक्षाओं के साथ धोखा बताते हुए कहा है कि यह अदूरदर्शितापूर्ण बजट है. उन्होंने कहा, “राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग कृषि क्षेत्र का 22 प्रतिशत, औद्योगिक क्षेत्र का 28 प्रतिशत तथा सेवा क्षेत्र का 40 प्रतिशत योगदान रहता है. लेकिन बजटीय प्रावधान यह स्पष्ट कर रहे हैं कि आने वाले वर्ष में इस में भारी कमी आएगी जो प्रदेश के गांव, गरीब, किसान व उद्योग जगत के लिए निराशाजनक है. प्रदेश जिस तरह से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदुषण व गंदगी को लेकर शर्मिदगी झेल रहा है उससे निपटने के लिये बजट में कोई ठोस प्रावधान नहीं किया गया है.”
बिस्सा ने कहा की पिछले वर्ष कुल बजट की दस प्रतिशत राशि के प्रावधान के साथ ‘युवा बजट’ प्रस्तुत करने वाली राज्य सरकार का आज बजट में इस मद में मौन रहना दुर्भाग्यजनक है. पिछले वर्ष बजट प्रस्तुत करते वक्त कहा गया था कि युवा बजट पेश करने वाली राष्ट्र की वह पहली सरकार बन गयी है.
बिस्सा ने कहा कि प्रदेश के छोटे व मंझले उद्योग भारी संकट के दौर से गुजर रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार का बजट उन्हें इस विपदा से उबारने के बजाय और संकट में डालने वाला नजर आ रहा है.
छत्तीसगढ़ माकपा ने कहा आम जनता की उपेक्षा करने वाला बजट
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने बुधवार भाजपा द्वारा पेश बजट को केन्द्र सरकार की लीक पर चलने वाला तथा कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के क्षेत्र में आम जनता की बुनियादी समस्याओं की उपेक्षा करने वाला बजट करार दिया है. पार्टी ने कहा है कि 74,000 करोड़ रुपयों के बजट में विभिन्न कल्याणकारी मदों पर चना-मुर्रा की तरह राशि तो आबंटित की गई है, लेकिन पर्याप्त राशि के अभाव में जमीन पर इसका कोई प्रभाव दिखाई नहीं देगा. वैट की दरों में वृद्धि का सीधा असर महंगाई बढ़ने के रूप में दिखाई देगा और प्रति व्यक्ति आय में हुई वृद्धि से बढ़ी क्रय-शक्ति को भी ख़त्म करेगा.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि बजट में ऐसी कोई नीतिगत घोषणा नहीं है, जिससे लगे कि पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए यह सरकार नव-उदारवादी नीतियों तथा सब्सिडी घटाने की नीति से पलट रही है. इस सरकार का आर्थिक सर्वे बताता है कि अमीर और गरीबों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ रही है, फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के दावे के बावजूद जीडीपी में कृषि क्षेत्र के योगदान में 2% की गिरावट आई है और बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, इसके बावजूद किसानों को लागत मूल्य का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य के रूप में देने और बोनस देकर उनकी फसलों को लाभकारी बनाने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है. इसी प्रकार, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आउटसौर्सिंग की नीति को पलटने और रिक्त पदों को भरने की चिंता भी सरकार को नहीं है.
माकपा नेता ने कहा कि आम जनता यह देखना चाहती थी कि अपनी चुनावी घोषणाओं को यह सरकार किस तरह लागू करती है, लेकिन इस मायने में यही सरकार पूरी तरह असफल साबित हुई है. उसकी चिंता तो केवल बजट घाटे को जीडीपी के केवल 3% तक सीमित करने की रही है. इसके लिए उसे अपने बांड बेचकर पैसा जुटाने और बजट घाटे को कम करने से भी परहेज नहीं है. लेकिन अमीरों पर टैक्स लगाकर गरीबों की भलाई में लगाने का साहस उसमें नहीं है, बल्कि वह तो इस प्रदेश में कारपोरेटों को यहां के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की खुली छूट ही दे रही है.