पंजाब: भाजपा पर भारी सिद्धू की छाया
चंडीगढ़ | समाचार डेस्क: सिद्धू से लोकसभा चुनाव के समय पीछा छुड़ाना भाजपा को पंजाब विधानसभा चुनाव में भारी पड़ सकता है. पंजाब में विधानसभा चुनाव होने में एक साल का समय बचा है, लेकिन भाजपा राज्य में अपनी राजनैतिक दिशा नहीं तय कर पा रही है. सवाल यह भी उठ रहा है कि राज्य में अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे, नवजोत सिंह सिद्धू को किनारे लगाने वाली भाजपा को कहीं सिद्धू से ही तो चुनावी मुकाबले का सामना नहीं करना पड़ेगा?
पंजाब में भाजपा हमेशा से अकाली दल के जूनियर पार्टनर की भूमिका में रही है. 2014 के आम चुनाव में पार्टी की जबरदस्त जीत के बाद पार्टी ने ऐसे संकेत दिए थे कि वह अब अकाली दल का दामन छोड़कर अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में उतर सकती है.
लेकिन, पहले दिल्ली और फिर बिहार की जबरदस्त हार ने भाजपा की सोच ही नहीं बदल दी बल्कि राज्य में उसे एक गहरी सुस्ती में ढकेल दिया. पार्टी ने जैसे मान लिया कि उसकी नियति अकाली दल के जूनियर पार्टनर की है. 2014 के आम चुनाव के बाद जोरशोर से बोलने वाले राज्य में पार्टी के नेता अब पूरी तरह से खामोश हैं.
आज हालात यह है कि पंजाब में अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय संघर्ष की चर्चा हो रही है. भाजपा का जिक्र तक नहीं हो रहा है.
भाजपा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य में उसके पास ऐसे नेता हैं जिनकी राज्य की राजनीति में कोई खास पहचान नहीं है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को इनमें से कुछ नेताओं से मुलाकात कर राज्य में पार्टी की स्थिति और इसके भावी कार्यक्रम पर बात की.
पार्टी नेतृत्व ने बीते कुछ सालों में न केवल पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता नवजोत सिंह सिद्धू को जान बूझकर किनारे लगा रखा है बल्कि उन्हें असहज भी बनाने की कोशिश की है. अमृतसर से सांसद रह चुके सिद्धू के बजाए अरुण जेटली को 2014 में अमृतसर से चुनाव लड़ाया गया. जेटली की जबरदस्त हार हुई थी. पार्टी के फैसले से नाराज सिद्धू चुनाव अभियान से दूर रहे लेकिन चुनाव के फौरन बाद अमृतसर में दिखे थे.
सिद्धू की अकाली दल की कमान संभालने वाले बादल परिवार से बिलकुल नहीं पटती. उन्होंने राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ कई बार आवाज उठाई. अपने राजनैतिक भविष्य को बचाने की गरज से पंजाब भाजपा के नेताओं ने सिद्धू को किनारे लगा दिया.
अब चर्चा यह है कि सिद्धू आप में या कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. इस सिलसिले में बातचीत चल रही है. संबद्ध पक्षों ने इसकी पुष्टि तो नहीं की है लेकिन किसी ने इसका खंडन भी नहीं किया है.
पंजाब में आप एक मजबूत ताकत बनकर उभरी है. पार्टी के चार सांसद हैं और सभी पंजाब से हैं. पार्टी को तलाश है एक ऐसे बड़े नाम की जो चुनाव में उसकी नैया का खेवनहार बन सके.
आप के लिए सिद्धू फिट बैठते हैं. उन्हें ईमानदार और साफ बोलने वाला माना जाता है. लोकप्रिय हैं. बेहतरीन वक्ता हैं. जाट सिख समुदाय से हैं. ये सभी पंजाब में उन्हें मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाने वाले गुण हैं. अब यह आप पर और सिद्धू पर है कि दोनों साथ होना चाहते हैं या नहीं.