साहित्यकार सड़कों पर, अकादमी जागी
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: आखिरकार साहित्य अकादमी ने पिछले दिनों हुई लेखकों की हत्या की शुक्रवार को पहली बार निंदा की. पिछले दिनों हुई लेखकों की हत्या और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों का एक समूह जहां सड़कों पर उतरकर विरोध जताया, वहीं भगवा बैनर लिए एक अन्य वर्ग ने इसके जवाब में प्रदर्शन किया और कहा कि निहित स्वार्थो की वजह से पुरस्कार लौटाया जा रहा है. इस बीच साहित्य अकादमी ने लंबी चुप्पी के बाद हत्याओं की निंदा की और लेखकों से पुरस्कार वापस लेने की अपील की. करीब 50 से अधिक साहित्यकारों ने साहित्य अकादमी की चुप्पी के विरोध में सफदर हाशमी मार्ग स्थित श्रीराम सेंटर से साहत्य अकादमी तक मौन जुलूस निकाला. इनकी मांग थी कि लेखकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध प्रकट करने के अधिकार की रक्षा की जाए.
उधर, भगवा बैनर वाले ज्वाइंट एक्शन ग्रुप ऑफ नेशनलिस्ट माइंडेड आर्टिस्ट एंड थिंकर्स ने विरोध प्रदर्शन किया और साहित्य अकादमी को ज्ञापन सौंपा तथा लेखकों की मंशा पर सवाल उठाए. इनका कहना था कि लेखक निहित स्वार्थो की वजह से पुरस्कार लौटा रहे हैं.
इन सबके बीच साहित्य अकादमी ने पिछले दिनों हुई लेखकों की हत्या की शुक्रवार को पहली बार निंदा की. अकादमी ने कहा कि विख्यात लेखक एम.एम. कलबुर्गी और कुछ अन्य बुद्धिजीवियों की कायरतापूर्ण हत्या से उसे ‘गहरा दुख’ पहुंचा है और वह इसकी कड़े शब्दों में निंदा करती है.
अकादमी ने संस्थान की चुप्पी से खफा होकर अपने पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों से अब अपना पुरस्कार वापस ले लेने की अपील की है.
साहित्य अकादमी के कार्यकारी बोर्ड की विशेष बैठक के बाद अकादमी सदस्य एवं तमिल विद्वान कृष्णास्वामी नचिमुथु ने यहां संवाददाताओं को बताया कि साहित्यकारों से पुरस्कार वापस लेने की अपील की गई है.
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने एक बयान में कहा, “अकादमी भारत की सभी भाषाओं के लेखकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दृढ़ता से समर्थन करती है. अकादमी देश के किसी भी लेखक के साथ किसी भी तरह के अत्याचार की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करती है.”
साहित्य अकादमी के कार्यकारी बोर्ड की विशेष बैठक तीन घंटे चली. बैठक में प्रस्ताव पारित कर देश के नागरिकों के साथ हिंसा की घटनाओं की भी निंदा की गई.
वर्ष 1954 में अस्तित्व में आई स्वायत्त संस्था साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ने अपने बयान में कहा है कि अकादमी पूरी तरह से लेखकों द्वारा निर्देशित है और पुरस्कार समेत सभी फैसले लेखकों का पैनल करता है.
बयान में कहा गया है, “अकादमी ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वे हत्याओं के मुजरिमों के खिलाफ अविलंब कार्रवाई करें और लेखकों की अभी और भविष्य में सुरक्षा सुनिश्चित करें.”
अकादमी ने केंद्र और राज्य से समाज में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को बनाए रखने की मांग की है. साथ ही विभिन्न समुदायों से जाति-धर्म-विचार के मतभेदों को भुलाने की अपील की है.
एम.एम. कलबुर्गी जैसे चिंतकों और लेखकों पर कुछ हिंदुत्ववादी समूहों के हमले के खिलाफ अब तक करीब 50 साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लौटा चुके हैं.
लेखकों ने उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस खाने की अफवाह पर मौत के घाट उतारे गए मोहम्मद अखलाक की हत्या का भी जिक्र किया और शुक्रवार को यहां एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला.
उल्लेखनीय है कि जाने-माने कन्नड़ विद्वान कलबुर्गी की अगस्त में हत्या कर दी गई थी. इस घटना के बाद लेखकों ने देश में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता को लेकर कई विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन साहित्य अकादमी चुप्पी साधे रही.
16 फरवरी को एक अन्य मशहूर मराठी लेखक गोविंद पनसारे को कोल्हापुर में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर घायल कर दिया था. घटना के चार दिन बाद पनसारे का निधन हो गया था.
लेखक वीरेंद्र यादव ने आईएएनएस से कहा कि अकादमी देर से जागी और इसकी अपील में कुछ खास नहीं है.
उन्होंने कहा, “हमारा विरोध इस बात से है कि अकादमी लेखकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही है. हमारे विरोध के खिलाफ अकादमी समर्थक लेखक प्रदर्शन कर रहे हैं और हमें सरकार विरोधी और मोदी विरोधी बता रहे हैं.”
बांग्ला कवि मंदक्रांता सेन और केरल की लेखिका सारा जोसफ ने कहा कि पुरस्कार वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता.
सेन ने कोलकाता में कहा, “इसे वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि देश के हालात नहीं बदले हैं. हम असहिष्णुता, सांप्रदायिकता और लेखकों पर हमले का विरोध कर रहे हैं.”
तिरुअनंतपुरम में सारा जोसफ ने कहा, “अकादमी का प्रस्ताव अपनी लाज बचाने की कोशिश है. बड़े मुद्दे जस के तस हैं. इसलिए पुरस्कार वापस नहीं लेने का फैसला अपनी जगह पर कायम है.”