मध्यप्रदेश: आग में दब गई चीखें
पन्ना | समाचार डेस्क: बस में सवार किसी ने नहीं सोचा नहीं था कि आग उन्हें एक ही मंजिल तक पहुंचा देने वाली है. हर किसी की मंजिल अलग थी, कोई शादी में जा रहा था तो कई ग्रीष्मकालीन छुट्टियां मनाने, मगर बस में लगी आग ने 21 लोगों को एक ही मंजिल पर पहुंचा दिया और वह थी मौत. बस में लगी आग के बीच मासूमों की चीखें और महिलाओं का रुदन तो कई ने सुना मगर उनका सहारा कोई नहीं बन पाया.
छतरपुर से सतना जा रही निजी बस में लगभग 40 यात्री सवार हुए थे, कई लोग परिवार सहित थे, इनमें महिलाएं और बच्चे भी थे. यह बस अपनी रफ्तार से पन्ना की ओर बढ़ रही थी. पांडव फाल के करीब पहुंचने पर बस का अनायास संतुलन बिगड़ा और वह खाई में जा समाई और उसमें आग लग गई.
बस उस ओर पलटी थी जिस तरफ दरवाजा होता है, इसका नतीजा यह हुआ कि बस को लपटों ने घेर लिया और बस के यात्री अपनी अपनी जान बचाने के लिए चीखने-चिल्लाने लगे. इस बीच कुछ पुरुषों ने ड्राइवर के दरवाजे और सामने के कांच का सहारा लेकर अपनी जान बचा ली, मगर महिलाएं अपने बच्चों के साथ जल कर मर गई.
मौके पर पहुंचे लोगों ने कुछ ऐसे कंकाल भी देखे हैं, जिनमें दो लोग आपस में एक दूसरे को पकड़े हुए हैं. इससे ऐसा लगता है कि आपदा की इस घड़ी में जिंदगी बचाने के लिए लोगों ने एक दूसरे का सहारा लेने की कोशिश की होगी.
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आर. डी. प्रजापति भी इस बात को मानते हैं कि मरने वालों में महिलाएं और बच्चों की संख्या ज्यादा रही होगी, क्योंकि कई पुरुष तो जान बचाने में कामयाब रहे हैं, मगर बचने वालों में महिलाएं कम हैं. उनका कहना है कि यात्री कंकाल में बदल चुके हैं, लिहाजा यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि मरने वाले कौन हैं.
इस हादसे में मरने वालों की संख्या ज्यादा होने की एक वजह बस में आपातकालीन दरवाजे का न होना भी माना जा रहा है. आग लगने की स्थिति में मुख्य दरवाजों का नीचे की ओर दबे होने पर कुछ लोग आपातकालीन दरवाजे का इस्तेमाल कर अपनी जान बचा सकते थे, मगर ऐसा हुआ नहीं.
कांग्रेस विधायक अजय सिंह का कहना है कि यह हादसा राज्य के परिवहन विभाग की लापरवाही को उजागर करता है. राज्य में निजी बसों पर किसी की लगाम नहीं हैं, नियम कानूनों को ताक पर रखकर बसें चल रही है. पुलिस और परिवहन विभाग को इस बात की जांच कराना चाहिए कि बस में आग लगने के बाद विस्फोट या धमाके किसके थे. कहीं कोई ज्वलनशील पदार्थ तो बस में नहीं रखा था. वहीं आपातकालीन दरवाजा होता तो कई जानें बच सकती थी. राज्य में अधिकांश बसें ऐसी चल रही है, जिनमें आपातकालीन दरवाजा ही नहीं है.
आग में जली कई जिंदगियों के साथ उन परिवारों की खुशियां भी खाक हो गई जो इस यात्रा के जरिए दूसरों के साथ मनाने जा रहे थे. अब तो उन लोगों की निशानदेही तक मुश्किल हो गई है, जिन्होंने इस हादसे में अपनी जान गंवाई है.