प्रसंगवश

घोटाले का नमक, चावल में घोटाला

सुरेश महापात्र छत्तीसगढ़ में एसीबी ने नॉन के दफ्तर में छापा मारकर करीब पौने दो करोड़े रुपए बरामद किए थे. तब किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले दिनों में एंटी करप्शन ब्यूरो की यही कार्रवाई सरकार के गले का फांस बन जाएगी. जनता को मुफ्त अनाज देने के लिए तैनात विभाग में यह पैसा कहां से और क्यों आ रहा था? इस सवाल का जवाब भी इसी कार्रवाई से सामने आया.

छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के इस मामले में शुक्रवार को 12 आरोपियों को एंटी करप्शन ब्यूरों ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. पर एक बड़ा सवाल अभी भी खड़ा है कि यह सब कैसे होता रहा? इस कार्रवाई में एसीबी द्वारा जब्त की गई डायरी से कैश डिस्ट्रीब्यूशन का जो हिसाब उजागर हुआ है उसने सरकार की ‘गुड गर्वनेंस’ से ‘गुड’ को सकते में डाल दिया है. यानी सब कुछ ‘गर्वनेंस’ का ही हिस्सा रहा. अब बजट सत्र में जिस तरह से कांग्रेस हंगामा मचा रही है. उससे पूरे छत्तीसगढ़ में लोग सरकार की नीति, नीयत और निष्ठा पर सवाल उठा रहे हैं.

हांलाकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार को जनता ने छत्तीसगढ़ गठन के बाद कांग्रेस की तानाशाही पूर्ण सरकार से तंग आकर चुना था. तीन बरस में कांग्रेस का शासन देखने के बाद राज्य की जनता का जनादेश पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने परिवर्तन यात्रा निकालकर आव्हान किया था. जनता जिसे चाहे अपने माथे पर सजा ले. हुआ भी यही तमाम कयासों और कांग्रेस की उम्मीद को दरकिनार करते भाजपा ने 2003 में छत्तीसगढ़ में सत्ता हासिल की.

पहले पहल कमजोर मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह समय के साथ मजबूत होते चले गए. वे सारे नेता जिन्होंने भाजपा को सत्ता दिलाने के लिए मुख्यमंत्री अजित जोगी के टारगेट में रहे वे नेपथ्य में खिसका दिए गए. भाजपा के कद्दावर नेताओं की मजबूती धीरे—धीरे मजबूरी में बदलती चली गई.

अंतत: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ही एकमात्र नेता रह गए जिनके इर्द—गिर्द सरकार संचालित हो रही है. यानी छत्तीसगढ़ में जो कुछ भी हो रहा है वह मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से शुरू होता है और उनकी ही चौखट पर जाकर खत्म हो जाता है. हांलाकि छत्तीसगढ़ जैसे नए प्रदेश को नई सोच और नई उम्मीदों से सींच कई मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने नई दिशा तो दी ही साथ ही नई पहचान दिलाने में भी कामयाबी दिलाई.

छत्तीसगढ़ में सरकार के इसी प्रयास को अपनी तीसरी पारी में मुख्यमंत्री ने दो नारों के साथ खड़ा किया पहला था ‘सबका साथ—सबका विकास’, दूसरा है ‘गुड गर्वनेंस’. ‘क्रेडिबल छत्तीसगढ़’ के नारों से गुंजायमान छत्तीसगढ़ में अब सीधे सरकार की क्रेडिबिलेटी पर ही खतरा दिख रहा है.

छत्तीसगढ़ में भाजपा की तीसरी पारी के साथ ही केंद्र में नरेंद्र मोदी को स्पष्ट बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व करने का मौका मिला. छत्तीसगढ़ के विकास की उम्मीदों को पर लग गए. केंद्र और राज्य में अलग—अलग सरकार का दंश झेल रही जनता को विश्वास होने लगा कि अब ज्यादा बेहतर विकल्पों के साथ छत्तीसगढ़ विकास की दिशा में तीव्रता से कदम बढ़ाएगा.

छत्तीसगढ़ के धान खरीदी सिस्टम, पीडीएस सिस्टम, ई—गर्वनेंस, उर्जा विभाग के प्रयास समेत अनेक मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. पुरस्कार मिले. साथ ही श्रेष्ठता का दंभ भी मिला. ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में सब कुछ ठीक—ठीक ही चल रहा है. कई बातें नकारात्मकता का बोध कराती रहीं. जिस पर श्रेष्ठता के दंभ के चलते ध्यान देने की कोशिश नहीं की गई. रह—रह कर सत्ता और संगठन की भीतर से आवाजें उठती रहीं कि सरकार भले ही जनता की है पर इसे जनप्रतिनिधियों की जगह अफसर चला रहे हैं.

छत्तीसगढ़ के शीर्ष नेतृत्व ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. यह सही है कि मुख्यमंत्री बेहद सरल और संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी हैं. उनके इर्द—गिर्द कई ऐसे लोगों की घेराबंदी रही जिनके चलते वे सीधे कुछ भी देखने की स्थिति में नहीं रहे. शायद यही उनकी कमजोरी भी है.

इसी कमजोरी का ही परिणाम हालिया उजागर पीडीएस घोटाला है जिसमें एंटी करप्शन ब्यूरो ने कई बड़ी कार्रवाई की है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर मुख्यमंत्री नहीं चाहते तो पीडीएस सिस्टम को अंतश तक खोखला कर रही भ्रष्टाचार की दीमक का घर उजागर नहीं किया जा सकता था. पर यह भी बड़ी गंभीर बात है कि जिस सिस्टम का तमगा हम लेकर दुनिया को बेहतर विकल्प देने का दावा कर रहे हैं उसमें इस कदर खोखलापन अफसरशाही के चलते बना हुआ है.

इस मामले में छत्तीसगढ़ के खाद्य विभाग के आला अफसरों से लेकर जिन मंत्रियों तक भ्रष्टाचार की छींटें पहुंची हैं उसे साफ किए बगैर मुख्यमंत्री का दामन कैसे साफ हो सकता है? करोड़ों रुपयों के लेन—देन के इस खुला खेल में जो नाम आरोपियों की डायरी से उजागर हुए हैं, इसकी जांच और कार्रवाई भी ईमानदार सरकार का नजीर पेश करेगी.

अब तो एंटी करप्शन ब्यूरो ने यह भी बता दिया है कि छत्तीसगढ़ के गरीब तबके को बांटा जाने वाला ‘अमृत नमक’ भी ‘अमृत’ नहीं है. नसबंदी के बाद दवा के जगह पर जहर के मामले की फिलहाल जांच चल रही है. पीडीएस सिस्टम में चल रहे भ्रष्टाचार का खुला खेल पूरे देश के सामने उजागर हो चुका है.

‘गुड गर्वनेंस’ के ‘फील गुड’ में संचालित हो रही प्रदेश सरकार की यही खामियां प्रदेश में डा. रमन सिंह के नेतृत्व पर उंगली उठा रही हैं कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है. केवल सादगी और सरल स्वभाव से सरकार के भीतर किस तरह की खामियां उजागर हो सकती हैं इसे छत्तीसढ़ में देखा, समझा और सीखा जा सकता है.

* लेखक दंतेवाड़ा से प्रकाशित ‘बस्तर इंपैक्ट’ के संपादक हैं.

error: Content is protected !!