राष्ट्र

आम आदमी के लिये आम बजट का अर्थ

रायपुर | अन्वेषा गुप्ता: आम आदमी का देश के आम बजट से क्या सरोकार है? देश का आम आदमी बजटीय भाषा के शब्दावली राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पादन, विकास दर तथा मुद्रा स्फीति का अर्थ कभी भी समझने की कोशिश नहीं करेगा. उसे इसकी जरूरत भी नहीं है. इन शब्दावलियों को राजनेताओँ तथा बुद्धिजीवियों के बीच बहस के लिये रहने दिया जाये. आम आदमी का सरोकार आम बातों से है खास तर्को से नहीं.

आम आदमी तो इतना चाहता है कि देश का आम बजट ऐसा हो जो उसे जीने-खाने दे, अपने बच्चों की परवरिश करने दे, उनके धूप-पानी से बचाने के लिये उनके सिर उपर एक छत का निर्माण करने दे तथा बीमार पड़ने पर उसे तथा उसके परिजनों को समुचित चिकित्सा मिल सके.

आखिरकार एक कल्याणकारी राज्य की कल्पना भी तो यही है जिसे कभी राम राज्य कहा जाता था.

आज महंगाई के तमाम सरकारी आकड़े ऐलान कर रहें हैं कि महंगाई कम हो रही है परन्तु जब आम आदमी बाजार जाता है तो पहले जिन सब्जियों को 150 से 200 रुपयों में खरीदता था उसके लिये उसे करीब 400 रुपये चुकाने पड़ रहें हैं. तभी तो आम आदमी का सवाल है कि महंगाई बढ़ने की दर पिछले साल से कम होने के बाद भी महंगाई क्यों बनी रहती है.

बीमार पड़ने पर सरकारी चिकित्सालयों में उच्च स्तरीय चिकित्सा की कल्पना नहीं की जा सकती. सरकारी अस्पतालों के बजबजाते नाली तथा दुर्गंध से भले टायलेट भले-चंगे को बीमार बनाने के लिये काफी हैं.

स्कूल तथा कॉलेजों में शिक्षा का जो स्तर है उसके कारण चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट, अंटी से पैसे खर्च करके बच्चों को अलग से ट्यूशन करवाना पड़ता है. आखिरकार सवाल बच्चे के भविष्य का है जिसे माता-पिता कैसे नज़रअंदाज कर सकते हैं.

बिजली के बिल करीब हर साल बढ़ते जाते हैं. गौर से देखने पर पता चलता है कि बिजली की घरेलू खपत नहीं बढ़ी है बल्कि उसके प्रति यूनिट का दाम बढ़ा दिया गया है.

स्वच्छ पीने के पानी की समस्या के कारण हमारे देश में कई रोगों का जन्म होता है. आज भी वर्षो पुरानी पानी के पाइपो से जिस पर सड़क की कई पर्त चढ़ गई है से आने वाले पानी को ही खाना पकाने तथा पीने के लिये इस्तमाल करना पड़ता है.

जनता को यह सब सुविधा मुहैय्या करवाने के लिये सरकार को शिक्षा, स्वच्छ जल, चिकित्सा, सामाजिक सुरक्षा पर किये जा रहे खर्च को बढ़ाना पड़ेगा. जाहिर है कि उसका पैसा भी टैक्सदाताओं के जेब से सरकारी खजाने में जमा होता है. फिर जनता का पैसा जनता पर खर्च करने में कोताही क्यों?

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