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भारी न पड़ जाये भूमि विधेयक

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का शिवसेना तथा अकाली दल भी विरोध कर रहें हैं. करीब-करीब पूरा विपक्ष भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में एकजुड हो गया है. इससे आभास होता है कि मोदी सरकार के लिये यह भूमि अधिग्रहण अध्यादेश कहीं भारी न पड़ जाये. लोकसभा में प्रचंड बहुमत होने के बाद भी राज्यसभा में इस अध्यादेश को पास करवाने में मोदी सरकार को कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है. राज्यसभा का बहुमत, मोदी सरकार के खिलाफ है कम से कम इस भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के मामले में तो जरूर. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर तीखी आलोचना का सामना कर रही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने मंगलवार को भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन में शामिल हुए और इस विधेयक को किसान विरोधी करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की. विधेयक पर चर्चा की मांग को लेकर राज्यसभा में माहौल गरम रहा और हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही को निलंबित करना पड़ा.

विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में मंगलवार को भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास विधेयक 2015 पेश किया गया. पारित हो जाने के बाद यह राजग सरकार द्वारा 30 दिसंबर, 2014 को लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की जगह ले लेगा.

विपक्ष को शांत करने के लिए कदम उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने एक कमेटी बनाई है, जिसमें पार्टी के आठ सांसद होंगे, जिसकी अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल मलिक करेंगे. यह कमेटी मुद्दे पर किसानों तथा अन्य संगठनों से चर्चा करेगी.

सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विधेयक को किसान समर्थित बताते हुए अपने सांसदों से इस मुद्दे पर बचाव करने के लिए कहा है.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के अंदर किसी की भी जमीन का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं करने दिया जाएगा.

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में राष्ट्रीय राजधानी में जंतर मंतर पर दो दिवसीय आंदोलन के अंतिम दिन केजरीवाल ने कहा, “दिल्ली का मुख्यमंत्री होने के नाते आज मैं यह ऐलान करता हूं कि दिल्ली में जमीन का मुद्दा भले ही केंद्र सरकार के अधीन आता है, लेकिन राज्य सरकार अपनी पूरी ताकत से जहां तक हो सकेगा यह सुनिश्चित करेगी कि यहां किसी की जमीन का अधिग्रहण जबरन नहीं होने दिया जाए.”

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में विधेयक पर निशाना साधते हुए इसे किसानों के हितों के खिलाफ बताया.

उन्होंने कहा, “हम विधेयक का विरोध करते हैं और इसे समर्थन करने का सवाल ही नहीं उठता.”

नीतीश ने कहा, “भूमि अधिग्रहण विधेयक किसानों, गरीबों और गांव में रहने वाले लोगों के हित में नहीं है. यह विधेयक चंद पूंजीपतियों के हित और उनके भलाई के लिए लाया जा रहा है.”

नीतीश ने कहा कि आखिर केंद्र सरकार को इतनी जल्दी इस विधेयक को लाने की क्या जरूरत पड़ी. उन्होंने कहा कि यह सब चंद कारपोरेट घरानों के हित के लिए किया जा रहा है.

समाजवादी पार्टी नेता नरेश अग्रवाल ने कहा, “हमने एक नोटिस दिया है. पूरे देश में अध्यादेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. दिल्ली में भी प्रदर्शन हो रहे हैं.”

वहीं राज्यसभा के उप सभापति पी.जे.कुरियन ने सदस्यों से आग्रह किया कि जब विधेयक राज्यसभा में आए, तब उस पर चर्चा की जाएगी. अध्यादेश की जगह विधेयक ले लेगा. जब विधेयक यहां आएगा, तब उस पर आप चर्चा कर सकते हैं.

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने आरोप लगाया कि अध्यादेश का सहारा लेकर सरकार संसद की मर्यादा को कम कर रही है.

वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि सरकार संसद की मर्यादा को कम कर रही है.

उन्होंने कहा, “कोई भी कानून संसद की मर्यादा को कम नहीं कर सकता है. मेरे मित्र को यह मालूम होना चाहिए कि 636 अध्यादेश आज तक आए हैं, जिनमें से 80 फीसदी आनंद शर्मा की पार्टी ने ही लाया है.”

बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती, सपा के रामगोपाल यादव, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी नेता डी.राजा ने विधेयक पर सरकार पर हमला किया.

इसी बीच, कांग्रेस के प्रवक्ता रंदीप सिंह सूरजेवाला ने दावा किया कि इस विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार का इरादा सदन की संयुक्त बैठक बुलाना है. लेकिन उनकी पार्टी विधेयक का विरोध करेगी.

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