प्रसंगवश

आम आदमी जीता

रायपुर | अन्वेषा गुप्ता: दिल्ली में साधनहीन आम आदमी की जीत हुई है. जिस आम आदमी को पिछले कुछ माह से दरकिनार कर खास आदमी के लिये नीतियां बनाई जा रही थी यह वास्तव में उसकी हार है. केन्द्र में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद से जिस आम आदमी को वास्तविक एजेंडे से गायब कर दिया गया था वह फिर से भारतीय राजनीति के केन्द्र में आ गया है. अब आम आदमी के बेहतरी के लिये नीतियां बनाई जायेगी कि नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा परन्तु इतना तय हो गया है कि आम आदमी भी राजनीति में हलचल मचा सकता है.

केन्द्र की सरकार ने देश को बुलेट ट्रेन चलाये जाने के ख्वाब दिखाये. जाहिर सी बात है कि जिस आम आदमी के पास ट्रेन के स्लीपर क्लास में सैर करना भी कठिन है वह बुलेट ट्रेन से क्या करेगा.

शेयर बाजार अपने उफान पर था लेकिन उससे आम आदमी को इससे क्या फर्क पड़ता है. आम आदमी तो सरकारी अस्पताल में 4-5 पांच रुपये की पर्ची कटवाने से भी डरता है वह भला करोड़ों के निवेश से क्या फायदा उठा पायेगा यह विचार करने की बात है.

पड़ोसी देशों पर कूटनीतिज्ञ विजय से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का मान बढ़ता है, नाम होता है परन्तु क्या उससे आम आदमी अपने बच्चों का नाम ‘पब्लिक स्कूलों’ में लिखवा सकता है.

आम आदमी का सरोकार आम बातों से है जिसमें रोटी-कपड़ा-मकान की जद्दोजहद शीर्ष पर है. आम आदमी के लिये राजनीति के दावपेंच गौण तथा जीवन की वास्तविक समस्या प्रधान हैं.

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