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दागियों पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक

नई दिल्ली | संवाददाता: दागी नेताओं को मंत्री बनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री पर छोड़ा है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि दागी लोगों को मंत्रीमंडल में शामिल करना ग़लत है.

दस साल पहले 2004 में याचिकाकर्ता मनोज नरूला ने एक याचिका दायर करते हुये दागी लोगों को मंत्रीमंडल से हटाने की मांग की थी. जिस पर बुधवार को सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा निर्देश का असर नरेंद्र मोदी के मंत्रीमंडल पर भी पड़ेगा, जिनकी टीम में 14 लोगों को पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें उमा मा भारती, नितिन गडकरी, उपेंद्र कुशवाहा, राव साहेब दादाराव, डॉ हर्षवर्धन, धर्मेंद्र प्रधान, जनरल वीके सिंह, जुअल ओरांव, मेनका गांधी, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रकाश जावड़ेकर, रामविलास पासवान और संजीव कुमार बालयान शामिल हैं.

पांच जजों की इस संविधान पीठ ने कहा कि किसी की नियुक्ति को खारिज नहीं किया जा सकता है. किसी को मंत्री बनाना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है और हम इस बारे में कोई निर्देश नहीं जारी कर सकते हैं. संविधान प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों में गहरा विश्वास रखता है और उनसे उम्मीद करता है कि वे जिम्मेदारी के साथ और संवैधानिक आचरण के अनुरूप व्यवहार करेंगे.

इस पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार देश का दुश्मन है और संविधान के संरक्षक की हैसियत से प्रधानमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वह भ्रष्टाचार और अनैतिक कृत्यों में लिप्त व कानून का उल्लंघन करने वालों को मंत्री न नियुक्त करें. हालांकि अनुच्छेद 75 में अयोग्यता संबंधी कोई नियम नहीं जोड़ा जा सकता है.

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