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गंगा माई है, कमाई नहीं

राजेंद्र सिंह
मां गंगे बीमार हैं. इनकी संपूर्ण जांच के बाद निदान और निदान के बाद इलाज किया जाना चाहिए. गंगा मैया की बीमारी समझे बिना इसमें बैराज बनाकर बड़े जहाज चलाना ठीक नहीं है. मां की शारीरिक शक्ति और गंगत्व की आत्मिक शक्ति असीम थी. उस पर मानवीय लालची शक्ति अब भारी पड़ रही है. लालची विकास हमारा और हमारी मां गंगा का विरोधी है.

विकास जरूरी है. आरोग्य शास्त्र में ‘पथ्य-अपथ्य’ का प्रावधान है. हम गंगा को मैया कहते हैं. इसलिए मां की सेहत के लिए ‘पथ्य-अपथ्य’ का ध्यान रखें. हम उसके बेटे हैं. अत: इलाज कराने वाले बड़े भाई से मां को अपथ्य पर ले जाने से रोकने का नैसर्गिक हक रखते हैं.

बजट में गंगा मैया के संबंध में दो महत्वपूर्ण घोषणाएं हुईं. एक, गंगा जल मार्ग और दूसरी नमामी गंगे. इन दोनों के विषय में गंगा संसद का मानना है कि जल मार्ग बिना बैराज के ही लाभदायी और शुभ होगा. गंगा में और बैराज बनाना उसकी अविरलता को नष्ट करना है. फरक्का बैराज के अनुभव से स्पष्ट हो जाता है कि बैराज गंगा के जीवन और उसकी अविरलता के विरुद्ध हैं.

गंगा से जुड़े मछुआरों की आजीविका खत्म हो रही है. गंगा में हिल्सा मछली नष्ट हो गई है. आप जानते हैं कि मछलियां साफ पानी में रहना पसंद करती हैं. यह मछली समुद्र के खारे पानी से नदियों में सैकड़ों-हजारों किलोमीटर अंदर आकर अंडे देती थी. ये अंडे पानी के साथ बहते हुए डेल्टा में जा कर मछली बनते थे. पर गंगा में प्रदूषण के कारण अब हिल्सा मछली समाप्त हो गई है.

जल प्रवाह में जब भी कोई कठोर संरचना खड़ी होती है, उस पर जल प्रवाह का दबाव बढ़ता है. इस कारण कटाव होता है और नीचे की तरफ मिट्टी का जमाव हो जाता है. यह प्रक्रिया गंगा में इलाहाबाद के नीचे से शुरू होती है. घाटों के कारण बनारस में रेत का जमाव हो गया है. इस प्रकार के कार्य गंगा मैया को समझे बिना करना अच्छा नहीं है.

गंगा मैया कमाई नहीं, माई है. निदान के बिना मैया की चिकित्सा करना खतरनाक है. गंगा को समझे बिना बैराज का काम शुरू न किया जाए. नमामी गंगा के लिए केवल एसडीपी और एटीपी पर राशि खर्च न की जाए. गंगा पर निर्भर लोगों को समझा कर रिवर और सीवर सेप्रेशन यानी गंगा मैया और गंदगी को अलग-अलग रखा जाए. इस कार्य के लिए अलग तरह का ढांचा बनाना आवश्यक है.

गंगा संसद, कुंभ 2010 हरिद्वार और गंगा संसद, कुंभ 2013 प्रयाग में मंथन के बाद सर्वसम्मत निर्णय लिया गया था कि गंगा को विषैला होने से बचाया जाए. इस पर नए बांध और बैराज न बनें. गोमुख से चला गंगत्व गंगा सागर तक जाए. बांध-बैराज बनने पर गंगा मैया नहीं रहती वह झील-तालाब में बदल जाती है. गंगा को मैया बनाए रखने के लिए ही पंडित मदनमोहन मालवीय 1916 में हरिद्वार में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े और जीते थे. वह भीमगोड़ा पर गंगा को अविरल बनाने में सफल भी हुए.

सात आइआइटी कन्सोर्टियम ने गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान तैयार किया है. अंतरमंत्रलय समूह की रिपोर्ट है. वन्य जीव संस्थान, देहरादून की रपट है. इन तमाम रपटों को जांच रिपोर्ट मान सकते हैं. इन पर चिकित्सकों का बड़ा समूह बैठकर निर्णय करे. यह निर्णय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण को ही करना है. इसकी बैठक पिछले दो वषों से नहीं हुई है. अब नई सरकार भी दो माह पूरे कर चुकी है.

मां गंगा जब बुलाती है तो सब-कुछ भूलकर और छोड़कर केवल मां के इलाज का प्रबंधन करना होता है. गंगा माई है, कमाई नहीं. कमाई छोड़कर हम सभी पहले अपनी गंगा मां को ही देखते हैं. यदि हमने किसी को मां कहा है तो फिर उसके बेटों जैसा व्यवहार भी तो हमें करना ही चाहिए. यही भारतीय संस्कार है.

हम पड़ोसी का दिल जीतने से पहले अपनी मां का दिल जीतते हैं. मां को विश्वास दिलाते हैं. उनकी चिकित्सा, सेवा करते हैं. केवल डॉक्टर के भरोसे नहीं छोड़ते. केवल संपदा का हकदार बनने के लिए हम किसी को मां नहीं कहते हैं. गंगा ने अपनी संपदा अपने बेटों को सौंप रखी है. बेटों का कर्तव्य है कि वह उसे मैला न होने दें. मां के केशों को जल देकर धोने, सींचने का काम करेंगे. उसके अंदर के खरपतवार साफ करेंगे या उसका जल गंदा करने की व्यवस्था करेंगे? यह निर्णय तो बेटों को ही लेना है.

मां को असली आजादी देनी है. बंधनों में बंधी गंगा मैया को मुक्त करना है. अच्छे बेटे-बेटियां मां को बंधनों में बांधते नहीं. मां को बंधनों से मुक्ति दिलाते हैं. ध्यान रहे, गंगा मैया केवल इंतजार करती है, माफ नहीं करती. संप्रग सरकार के प्रथम काल में गंगा मैया की आजादी के लिए तीन बांधों को रद कर दिया गया था. यह कदम मैया की मुक्ति की दिशा में उठाया गया था. उसे दूसरी बार राज करने का मौका मिला.

राजग सरकार ने गंगा को बांधा तो गंगा मां दूसरा मौका नहीं देगी. मां के पास ही देश के 51 प्रतिशत वोट हैं. ये वोट किसी को भी जिता-हरा सकते हैं. इन्हीं से राजा बने बेटे को गंगा मैया के उद्धार पर विचार करना है. दूसरे मौके पर गंगा मैया की सेवा और चिकित्सा से पहले बंधन मुक्ति आवश्यक है.

सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले प्रदेश गंगा के किनारे ही स्थित हैं. देश का 43 प्रतिशत भूभाग इसके बेसिन में हैं. 11 राज्य इसमें आते हैं. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल तो इसकी मुख्यधारा में हैं. हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ बहुतायत व आंशिक रूप से गंगा बेसिन में हैं. इन सभी की सभ्यता और संस्कृति तो गंगा ही है.

गंगा संस्कृति ही सम्मान पाने वाली है. गंगा के लिए काम करने वाली सरकार को शोषणकारी सभ्यता में भी सम्मान मिल जाता है. अत: शोषणकारी सभ्यता नहीं बननी चाहिए. हम पोषण करके दुनिया के गुरु बने थे. शोषण करने वालों को बुलाया तो फिर भगाया भी, लेकिन उनकी छूत की बीमारी खत्म नहीं हुई. वह तेजी से फैल रही है. इसे रोक कर अपनी मूल पोषणकारी संस्कृति को अपनाना और बढ़ाना है. इसकी शुरुआत हम अपनी मां गंगा के साथ सदाचार से करें. हमारा भ्रष्टाचार केवल सदाचार से ही नष्ट होगा. यह सदाचार गंगा मैया के उद्धार से आरंभ करना है. सदाचार से ही हम विश्वगुरु बन सकते हैं. आइए! प्रयास शुरू करें.
* पानी वाले बाबा के नाम से मशहूर लेखक तरुण भारत संघ के संयोजक हैं.

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