जाति प्रमाण के लिये 1950 के कागज ज़रुरी नहीं
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में जाति प्रमाणपत्र के लिये अब 1950 के दस्तावेजों की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है. राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग की बैठक में यह फैसला किया गया. बैठक में फैसला लिया गया कि अब अगर किसी आवेदक के पास वर्ष 1950 के पहले का राजस्व अथवा अन्य अभिलेख नहीं है तो, ग्राम सभा के अनुमोदन और प्रस्ताव के आधार पर आवेदक को जाति प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है. इस संबंध में उससे यह शपथ पत्र लिया जा सकता है कि यदि वह गलत पाया जाएगा तो सारी जिम्मेदारी जाति प्रमाण पत्र प्राप्तकर्ता की होगी.
बैठक की अध्यक्षता करते हुए आयोग के अध्यक्ष देवलाल दुग्गा ने कहा कि छात्र-छात्राओं और जरूरतमंद आवेदकों की सुविधा के लिए इसके प्रावधानों को सरल बनाया है. उन्होंने कहा कि जाति प्रमाण पत्र जारी करने वालों को सिर्फ ग्राम सभा के आधार पर तथा आवेदकों की मांग के अनुसार ही जाति प्रमाण पत्र जारी करना चाहिए. उनसे किसी भी प्रकार का अतिरिक्त दस्तावेज नहीं मांगा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने की इस प्रक्रिया के सरलीकरण की अधिसूचना पिछले साल आठ मई को जारी कर दी है, लेकिन आयोग को मिली जानकारी के अनुसार आज भी राजस्व अधिकारियों द्वारा इसके लिए आवेदकों से वर्ष 1950 के पहले का रिकार्ड मांगा जाता है. आयोग की बैठक में इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग से यह अपेक्षा की गई कि विभाग अपने स्तर पर इस संबंध में तहसीलदारों, अनुविभागीय राजस्व अधिकारियों और अन्य संबंधित अधिकारियों को पत्र जारी करे.
आयोग ने इस विषय में जाति प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारियों के लिए राजधानी रायपुर में दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित करने का भी निर्णय लिया. यह कार्यशाला आयोग और आदिम जाति अनुसंधान संस्थान रायपुर द्वारा आयोजित की जाएगी. इसके अलावा इस प्रक्रिया के सरलीकरण पर आधारित छत्तीसगढ़ शासन की अधिसूचना को प्रचार-प्रसार के लिए पुस्तिका के रूप में प्रकाशित करने और आम जनता में वितरित करने का निर्णय भी बैठक में लिया गया.
बैठक में छत्तीसगढ़ के महासमुन्द, रायगढ़ जिलों में निवासरत कोंध/कोंद, अनुसूचित जनजातियों के जाति में वर्तनी संबंधी त्रुटियों के सुधार के लिए तथा सूरजपुर, सरगुजा और कोरिया जिलों में निवासरत पण्डो जाति और बिलासपुर, दुर्ग तथा बलरामपुर जिलों में निवासरत ब्रिजिया जाति पर अनुसंधान और जन सुनवाई करने का निर्णय लिया गया. आदिवासियों को टोनही, प्रेतआत्मा संबंधी अंधविश्वास के कारण प्रताड़ित करने की शिकायतों को दूर करने के लिए कार्ययोजना बनाकर राज्य शासन को भेजने का निर्णय लिया गया. अनुसूचित जनजाति वर्ग के कक्षा दसवीं उत्तीर्ण विद्यार्थियों को कैरियर निर्माण एवं विषय चयन हेतु विद्यालय स्तर पर काउंसिलिंग कराया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी योग्यता एवं क्षमता अनुसार सही विषयों का चयन कर सके. शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ से ही सभी विद्यालयों में प्रायोगिक कार्य कराने हेतु दिशा निर्देश जारी करने के लिए सुझाव पत्र शासन को भेजने का निर्णय लिया गया.
बैठक में प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों में निवासरत लोगों को बारिश के दौरान मौसमी बीमारियों से बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग को हर संभव कदम उठाने के निर्देश दिए गए. आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा संचालित कन्या छात्रावास, आश्रमों में सुरक्षा की दृष्टि से स्टाफ क्वाटर्स तथा बाउंड्रीवाल का निर्माण कराने हेतु राज्य शासन को पत्र लिखे जाने का निर्णय लिया गया. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों के लिए प्रदेश के सभी संभागीय मुख्यालयों में परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण केन्द्र संचालित करने तथा योग्य एंव अनुभवी शिक्षकों से प्रशिक्षण दिलाने की जरूरत पर भी बल दिया गया. व्यवसायिक पाठ्यक्रमों जैसे पी.ई.टी, पी.एम.टी. में प्रवेश हेतु कोचिंग दिलाने के लिए प्रत्येक जिला मुख्यालय में कोचिंग सेंटर स्थापित कराने हेतु राज्य शासन को अनुशंसा पत्र भेजने का निर्णय लिया गया.