फिर नोटा का जादू
आलोक प्रकाश पुतुल | बीबीसी: छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के दौरान ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी नोटा का जादू राज्य के आदिवासी बहुल इलाके में सर चढ़ कर बोला.
छत्तीसगढ़ की 11 में से आदिवासी बहुल पांच सीटों पर जनता ने उम्मीदवारों की बजाए तीसरे नंबर पर नोटा को चुना. राज्य के दूसरे इलाक़ों में भी बड़ी संख्या में मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है.
माओवाद प्रभावित बस्तर में 38772 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया, जो राज्य में सबसे अधिक है. बस्तर सीट पर आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी सोनी सोरी भी चुनाव मैदान में थीं. उन्हें केवल 16903 वोट मिले हैं.
इसी तरह कांकेर में 31917 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया है. यहां तक कि मुख्यमंत्री रमन सिंह के गृह ज़िले राजनंदगांव में भी 32384 लोगों ने नोटा को चुना. यहां से रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह को जनता ने अपना सांसद चुना है.
राज्य के उत्तरी हिस्से सरगुजा में 29349 वोट नोटा में पड़े तो रायगढ़ में भी 28480 मतदाताओं ने नोटा को चुना. कांकेर में कांग्रेस प्रदेश प्रतिनिधि और चुनाव सह संयोजक रही नंदिनी साहू का मानना है कि जनता उनकी पार्टी के उम्मीदवार से नाराज़ थी. वे नोटा के पीछे एक कारण माओवादियों को भी मानती हैं.
नंदिनी साहू कहती हैं, “हमारी प्रत्याशी से जनता नाराज़ थी और उनका संपर्क भी जनता के बीच नहीं रहा. इसके अलावा माओवादियों ने भी चुनाव बहिष्कार की बात कही थी. नोटा के पीछे, ये दोनों कारण हो सकते हैं.”
रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार इसे दोनों प्रमुख पार्टियों के चेहरों और उनके चुनाव संचालकों से जनता की नाराज़गी को कारण बताते हैं.
वे कहते हैं, “कांग्रेस या भाजपा के उम्मीदवारों से नाराज़गी ने ही जनता को नोटा की तरफ़ मोड़ा है. वे पार्टी से नहीं, इन उम्मीदवारों से नाराज़ नज़र आते हैं.”
नोटा पर जनता के विश्वास को लेकर राजनीतिक दल के लोग भी चकित हैं. हालांकि ऐसा क्यों हुआ, इसके कारणों को लेकर राजनीतिक दल भी आश्वस्त नहीं हैं.हालांकि बस्तर विश्वविद्यालय में नृविज्ञान और आदिवासी अध्ययन विभाग के डॉक्टर आनंदमूर्ति मिश्रा नोटा को आदिवासियों में आई जागरुकता से जोड़ते हैं.
उनका मानना है, “जनता में इस व्यवस्था को लेकर कहीं न कहीं उदासीनता है. उनके बीच जागरुकता आई है, इसलिए बड़ी संख्या में आदिवासियों ने नोटा के विकल्प को अपने मत के रूप में चुना है.”
पिछले साल नवंबर में जब छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए थे, उस समय राज्य में पहली बार मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था.
विधानसभा की 90 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बाद जनता ने नोटा को चुना था. बस्तर की सभी 12 सीटों पर नोटा का जम कर इस्तेमाल हुआ.
कांकेर में कांग्रेस के शंकर ध्रुवा की जीत का अंतर 4625 था, जबकि नोटा का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 5208 थी. दंतेवाड़ा में कांग्रेस की देवती कर्मा कुल 5987 वोटों से जीतीं लेकिन वहां 9677 लोगों ने नोटा में वोट डाले.
इसी तरह कोंडागांव में कांग्रेस के ही मोहन मरकाम 5135 वोटों से जीते, वहां 6773 लोगों ने नोटा में वोट डालना पसंद किया.
बस्तर की हरेक सीट पर चार हज़ार से अधिक नोटा वोट पड़े थे. चित्रकोट में कांग्रेस के दीपक बैज को कुल 50303 वोट मिले और जनता ने 10848 वोट नोटा में डाले थे.