छत्तीसगढ़ में टमाटर मवेशियों के हवाले
रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ में किसानों ने टमाटर की उचित कीमत न मिलता देख फसलों को अब अपने ही पालतू मवेशियों के हवाले करना प्रारम्भ कर दिया हैं. बेमौसम बारिश के बाद तो हालात और भी बदतर हो गए हैं.
दो महीने पहले थोक बाजार में 50 रुपये किलो तक बिकने वाले टमाटर को अब कोई एक रुपये किलो में भी नहीं खरीद रहा है. इतनी बंपर पैदावार हो गई है कि थोक में भाव बहुत गिर गए हैं. यहां तक कि टमाटर तोड़ने की मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है. बेमेतरा, धमधा, बेरला और साजा के किसानों ने तो टमाटर तोड़ना बंद कर दिया है. कुछ किसानों ने फसल में ही घर के मवेशियों को छोड़ दिया है.
हरदास के किसान दुखित साहू और खाती के सोहन पटेल का कहना कि टमाटर तोड़ने में 50 पैसे और इसे मंडी तक पहुंचाने में एक रुपये प्रति किलो का खर्च आता है. इस तरह डेढ़ से दो रुपये खर्च आ जाते हैं. लेकिन दो रुपये तक तो कोई खरीदार ही नहीं मिल रहा.
बेमेतरा के आढ़तिया राजू पटेल ने बताया कि बिगड़े मौसम ने टमाटर के दाम गिरा दिए हैं. रायपुर और बिलासपुर में टमाटर थोक में डेढ़ रुपये किलो बिक रहा है. पहले दूसरे राज्यों से डिमांड थी, अब नहीं है. इसलिए दाम गिर गए हैं.
सूबे के दुर्ग, बेमेतरा जिले और रायगढ़-जशपुर जिले में टमाटर की बड़े पैमाने पर खेती होती है. दोनों जिलों में लगभग पांच-पांच हजार हेक्टेयर में टमाटर की फसल ली जा रही है. इस साल बारिश अधिक हुई, इसलिए शुरू में दोनों जिलों की फसल खराब हो गई.
यही वजह है कि नवंबर-दिसंबर में थोक बाजार में टमाटर 40 से 50 रुपये किलो तक और चिल्हर बाजार में 80 रुपये किलो तक बिका. इसमें कुछ किसानों को अच्छे दाम मिले. बारिश के बाद किसानों ने फिर से टमाटर लगाए तो बंपर पैदावार से किसान नुकसान में आ गए हैं. चिल्हर बाजार में टमाटर के दाम भले ही पांच से सात रुपए किलो हैं, लेकिन थोक में इसकी कीमत एक रुपये किलो भी नहीं मिल पा रही है.
कृषक प्रहलाद वर्मा बताते हैं कि टमाटर की हाईटेक खेती में 60 हजार रुपये प्रति एकड़ तक खर्च आता है. दुर्ग जिले में किसान हाईटेक तरीके से खेती करते हैं. उनसे औसत 12 से 15 टन प्रति एकड़ उत्पादन आता है.
रायगढ़ जिले में किसान परंपरागत तरीके से खेती करते हैं. उन्हें 15 से 20 हजार रुपये खर्च आता है. इस तकनीक से छह से आठ टन टमाटर का उत्पादन होता है. जनवरी-फरवरी में टमाटर की ज्यादा पैदावार होती है, इस दौरान किसानों को सब्जी फेंकनी पड़ती है या फिर जानवरों को खिलानी पड़ती है.
छत्तीसगढ़ बनने के समय भी एक बार ऐसी स्थिति आई थी कि किसानों ने टमाटर मुफ्त में बांट दिए थे. उस वक्त बड़ी चर्चा चली थी कि राज्य में फूड पार्क और प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की जाएगी, लेकिन तब से लेकर आज तक केवल राजनीति हुई. प्रदेश में टमाटर की बंपर पैदावार से हर साल किसानों को घाटा होता है.
दुर्ग जिले में एक प्राइवेट कंपनी ने टोमेटो सॉस की फैक्ट्री लगाई है, लेकिन उसकी क्षमता काफी कम है. राजनांदगांव के टेड़ेसरा में एक फूड पार्क का निर्माण शुरू हुआ, पर वह घोटालों की भेंट चढ़ गया.
बेमेतरा विधायक अवधेश सिंह चंदेल का कहना है की प्रति वर्ष होने वाली इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढने का प्रयास किया जाएगा, शासन से बेमेतरा जिले में एक फूड पार्क का निर्माण कराने की मांग की जाएगी.