आजम की भैंसें
कनक तिवारी
यह मुहावरा खूब प्रचलित है-‘अक्ल बड़ी कि भैंस.’ उत्तरप्रदेश में अब इसे पढ़ा जाएगा-‘विक्टोरिया बड़ी कि भैंस.‘
धाकड़ मंत्री आजमखान की सात भैंसें रामपुर फार्महाउस से अचानक गुम हो गईं. पुलिस और ज़िला अधिकारियों ने पूरा इलाका सर आंखों पर उठा लिया. दो दिनों की ताबड़तोड़ मेहनत के बाद भैंसें सकुशल बरामद कर फार्महाउस पहुंचा दी गईं.
प्रदेश की नाकारा और भ्रष्ट पुलिस हत्या, बलात्कार, डकैती और फिरौती के कई कुख्यात मामलों में भी ऐसी मुस्तैदी नहीं दिखा पाती. आजमखान पार्टी और मुलायम सिंह यादव के मुस्लिम वोट बैंक के सबसे बड़े ठेकेदार हैं. उनकी भैंसें निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्ष दूध देती हैं.
मीडिया ने चुटकी ली कि आजमखान के दबदबे के कारण ही पुलिस ने वह चमत्कार कर दिखाया जो जनता की आंखों में वर्षों से मृगतृष्णा की तरह झिलमिला रहा है.
तमतमाए आजम ने कहा ‘मेरी भैंसों को महारानी विक्टोरिया से ज्यादा प्रचार दिया गया.‘ हाल ही में मुजफ्फरनगर के दंगापीड़ितों के शिविर में जाने के बदले आजम के नेतृत्व में प्रदेश के कई मंत्री यूरोप तफरीह कर लौटे हैं. महारानी विक्टोरिया की याद आजम के दिमाग में कौंध रही होगी. मंत्री ने यह सार्वजनिक माफी तो नहीं मांगी कि उनकी भैंसों के लिए इतना बड़ा पुलिसबल बल्कि अन्य अधिकारियों का दस्ता लगाया गया जिसकी जरूरत या न्यायोचितता नहीं थी. उन्होंने मीडिया पर कटाक्ष किया.
भैंसें बेचारी फिल्मों में ‘मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा‘ जैसे गीत के मुखड़े तक ही सीमित रह पाई हैं. उन्हें अक्ल विरोधी माना गया है. वे अपनी श्यामली देह लिए पानी नहीं मिले तो दलदल और कीचड़ में बैठी रहती हैं. इतना गाढ़ा और ज़्यादा दूध देती हैं कि पुण्यभूमि भारत की माता समझी जाने वाली गायें अब खेल के बाहर होती जा रही हैं और कसाईबाड़े का सामान हो गई हैं. गोहत्या के खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं.
भैंसों के दूध को दो तीन बार उबालने पर भी चिकनाई रह जाती है. वह चिकनाईं आजमखान जैसे मंत्रियों के चेहरों पर साफ साफ दिखाई पड़ती है और पुलिस अधिकारियों के चेहरों पर भी. मंत्री और पुलिस के एक दूसरे के प्रति जिम्मेदार रहने का मुख्य कारण यही चिकनाई तो है. उत्तरप्रदेश वह स्वप्नलोक है जहां भैंसों का रखरखाव दंगा पीड़ित, अल्पसंख्यक, मरते अवाम से कहीं बेहतर होता है.
मुजफ्फरनगर के शरणार्थी शिविर में इंसान दिखाई पड़ते जो नामालूम लोग अल्लाह के रहमोकरम पर रह रहे हैं, उनको देखकर आजमखान की भैंसें रंभाती होंगी कि तुम इंसान बनकर इस धरती पर क्यों आए. तुम्हें हमसे रश्क होना चाहिए. आजमखान वैसे तो इंसान और मुसलमान दीखते हैं. वे धर्मनिरपेक्ष होने के कारण हिन्दू और मुसलमान दोनों के बीच नहीं पड़ सकते. वे बेचारे तो धर्मनिरपेक्ष भैंसों के साथ खुश हैं.
* उसने कहा है-10