मोदी को चुनौती देंगे केजरीवाल
जे के कर
क्या अरविंद केजरीवाल 2014 में नरेन्द्र मोदी को चुनौती देंगे? यदि ऐसा होगा तो मोदी के तरकश के तीर नाकाफी साबित होंगे. नरेन्द्र मोदी ने जितने भी अस्त्र तथा ब्रम्हास्त्र बनाये हैं वह सभी राहुल गांधी, सोनिया गांधी तथा कांग्रेस पर हमले के लिये बने हैं. इस हालात में जब अरविंद केजरीवाल देश के कई अन्य राज्यों से भी अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे तब नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा को फिर से दिल्ली विधानसभा के नतीजों की पुरनावृति का भय सतायेगा.
खुदा ना खास्ता यदि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में तीन के बजाये चार माह में भी बिजली के बिल आधा कर दिया तो ‘आप’ एक आंधी के समान 2014 के लोकसभा चुनाव में आयेगी. जिसके सामने कांग्रेस के वंशवाद का विरोध या सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने की बात को कोई भी सुनना नहीं चाहेगा. आम आदमी पार्टी ने पॉच राज्यों के विधानसभा चुनाव में केवल दिल्ली से अपने उम्मीदवार उतारे वह भी पहली बार. बावजूद इसके आप की अप्रत्याशित सफलता ने भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया है.
आम आदमी पार्टी से भाजपा को इसलिये खतरा है क्योंकि दिल्ली विधान सभा चुनाव में उसे 30 फीसदी मत मिले हैं. इस चुनाव में दिल्ली में भाजपा को पिछले चुनाव की अपेक्षा 2 फीसदी तथा कांगेस को 15 फीसदी मत कम मिले हैं. इसको इस तरह से भी समझा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी ने भाजपा से 2 फीसदी, कांग्रेस से 15 फीसदी तथा बाकी मत स्वयं अर्जित किये हैं. पहली बार लड़ने वाली पार्टी को 30 फीसदी मत मिलना कोई साधारण बात नहीं है. ऐसे में इस बात पर भी गौर कर ले कि छत्तीसगढ़ में भाजपा तथा कांग्रेस को मिले मतो में 1.11 फीसदी का अंतर है. क्या होता यदि आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ से भी चुनाव लड़ती तब ? क्या रमन सिंह तीसरी बार मुख्यमंत्री का ताज पहनने में सक्षम हो पाते ?
इसी प्रकार मध्यप्रदेश में भाजपा तथा कांग्रेस को मिले मतो का अंतर 8.29 फीसदी है. राजस्थान में भाजपा को कांग्रेस की तुलना में 12.35 फीसदी मत ज्यादा मिले हैं. इस कारण से कम से कम इन चारों राज्यों में आम आदमी पार्टी का पदार्पण भाजपा की सेहत के लिये अच्छा न होगा. खासकर तब जब इन चार राज्यों में लोकसभा की 72 सीटें हैं जो कुल लोकसभा की सीटों का 13 फीसदी है. इन चार राज्यों के 72 लोकसभा सीटों गड़बड़ झाला नरेन्द्र मोदी को अपने बलबूते पर 272 सीटें जीतने के दावे से बहुत दूर ले जायेगा.
ऐसे में यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अरविंद केदरीवाल की आम आदमी पार्टी खम ठोकर नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा को चुनौती देने की कुव्वत रखती है. विधानसभा चुनाव के आकड़े तो सही बयां करते हैं.दिल्ली विधानसभा में सरकार बनाने के लिये जनमत संग्रह करते हुए आम आदमी पार्टी ने अपने संगठन को अन्य राज्यों में फैलाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी है.
छत्तीसगढ़ के आम आदमी पार्टी के संयोजक उचित शर्मा ने एक समाचार पत्र के हवाले से बताया है कि छत्तीसगढ़ में 45,000 सदस्य बन गयें हैं. उन्होंने आगे कहा है कि छत्तीसगढ़ के 15 जिलों में आम आदमी पार्टी ने अपना संगठन खड़ा कर लिया है. सबसे चौंकाने वाली बात जो भाजपा के लिये है वह है कि छत्तीसगढ़ के 11 में से 5 में आम आदमी पार्टी अपना प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में उतारने जा रही है.
खबरों के अनुसार मुंबई में भी आम आदमी पार्टी ने अपना सदस्यता अभियान चला रखा है. जिसे लोगों का समर्थन प्राप्त हो रहा है. गौर करने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी अपना सदस्यता अभियान टेंट लगाकर चला रही है. जहां लोग स्वयं से जाकर सदस्यता ग्रहण कर रहें हैं. इस प्रकार से आम आदमी पार्टी के सदस्यता को वैचारिक सदस्यता कहा जा सकता है. जहां पर विचार मिलते हैं वहां पर पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता होती है. एक प्रतिबद्ध कार्यकर्ता बहुत कुछ कर सकता है. यह हमने दिल्ली में अनुभव किया है. इन चार राज्यों के अलावा क्या होगा जब आम आदमी पार्टी मोदी के गढ़ गुजरात से भी लोकसभा के उम्मीदवार उतारे ? आम आदमी पार्टी ने महाराष्ट्र से भी चुनाव लड़ने के संकेत दिये हैं.
यह सत्य है कि दिल्ली की भौगोलिक स्थिति अन्य राज्यों से अलग है. लेकिन जनता का मानस तो एक है. सभी मौजूदा हालात से त्रस्त हैं. महंगाई तथा भ्रष्ट्राचार से पूरा देश पीड़ित है. हर किसी को बीमार पड़ने पर इलाज के लिये पैसा खर्च करने में तथा बच्चों को पढ़ाने में जो खर्च करना पड़ रहा है उससे नानी याद आ रही है. ऐसे में आम आदमी पार्टी का दिल्ली घोषणा पत्र आशा की एक नई किरण लेकर आया है. फिलहाल दिल्ली की जनता को यह लग रहा है कि आम आदमी पार्टी के पास उसके तमाम मुश्किलों को हल करने के लिये एक कार्यक्रम है, कल यह देश के अन्य राज्यों के जनता को महसूस नहीं होगा क्या इसकी गारंटी नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा दे सकते है.
एक और बात है जो आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाती है वह है उसने कार्यक्रम के आधार पर चुनाव जीता है. जिसे सकारात्मक जीत कहा जाता है. परन्तु मोदी तथा भाजपा के पास कांग्रेस के हर नेता तथा उसके परिवार के खिलाफ कहने के लिये कुछ न कुछ तथ्य तो हैं परन्तु देशवासियों के हित में कर गुजरने के लिये कोई कार्यक्रम नहीं है. भाजपा ने कांग्रेस की नाकामी के नाव पर चढ़कर जीत हासिल की है जिसे नकारात्मक जीत कहा जाता है.
नरेन्द्र मोदी की कमजोरी इससे भी झलकती है कि उन्होंने दिल्ली तथा राजस्थान में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था तथा धुआधार सभाएं की थी. इसके बावजूद भाजपा का सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी सत्ता से दूर हो जाना एक अलग संकेत की ओर इशारा करती है. यही वह संकेत है जिसकी हम चर्चा कर रहें हैं. यह आने वाले कल का संकेत हो सकता है, यदि वाकई में हुआ तो नरेन्द्र मोदी भी हर्षवर्धन के समान ताकते रह जायेंगे.