दोमुंहा अमरीका
वाशिंगटन | एजेंसी: पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक हुसन हक्कानी के अनुसार अमरीका अपने तथा गैर देशों के राजनयिकों के बीच भेदभाव करता है. भारत के देवयानी को गिरफ्तार करने वाला अमरीका स्वयं अपने राजनयिकों को बचाचा रहा है. अमरीका ने घेरलू नौकरों के शोषण और यहां तक कि दुष्कर्म और हत्या और जघन्य अपराध करने वाले अपने राजनयिकों और गैर राजनयिकों को बचाया है.
अमरीका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसन हक्कानी ने ‘द बीस्ट’ में प्रकाशित एक लेख में लिखा है, “जनवरी 2011 में सीएआई के एक एजेंट रेमंड डेविस ने लाहौर में भीड़भाड़ वाली सड़क पर दो व्यक्तियों की हत्या कर दी थी. उस समय अमरीका ने डेविस के पास राजनयिक पासपोर्ट होने का दावा किया था, जबकि राजनयिकों में उसका नाम घटना के बाद शामिल किया गया था.”
हक्कानी ने लिखा है, “जब उसकी असली पहचान का पता चला तो पाकिस्तान सरकार ने इस मामले को टाल दिया और अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा को शर्मिदा होने से बचाया, जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि डेविस राजनयिक है.” अंत में मृतक परिवारों को मुआवजा दिलाकर पाकिस्तानी अदालत ने डेविस को बरी कर दिया.
‘वी मीन्ट वेल’ के लेखक पीटर वान ब्युरेन ने अपने ब्लॉग में कई राजनयिकों के बारे में लिखा है, जिन्हें कई अपराधों के बावजूद सजा नहीं दी गई.
देवयानी खोबरागड़े मामले पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा, “मजदूरी का उचित भुगतान न करना गलत है. लेकिन विदेश विभाग द्वारा दोहरे मानकों पर चलना भी गलत है, वह विदेशी राजनयिकों से अलग उम्मीद करता है और अपने खुद के राजनयिकों के साथ अलग उम्मीद करता है.”
अदालत के कागजात के हवाले से ब्यूरेन ने अमरीकी राजनयिक लिंडा हॉवर्ड के मामले का उदाहरण दिया है. लिंडा और उनके पति पर एक इथोपियाई महिला को धोखे से जापान लाने, उसे अपना दास बनाने, उसके साथ दुष्कर्म करने और एक डॉलर प्रति घंटा पर काम करने पर मजबूर करने का आरोप था.
वर्जीनिया के संघीय न्यायाधीश ने युगल के खिलाफ फैसला सुनाते हुए पीड़िता को क्षतिपूर्ति के तौर 3.3 करोड़ का मुआवजा दिलाया. लेकिन राजनयिक विदेश विभाग से पूरी पेंशन के साथ सेवानिवृत्त हुई.
इसी साल की शुरुआत में केन्या में अमरीकी राजनयिक ने अपने वाहन को पूरी तरह यात्रियों से भरी एक मिनी बस में घुसा दी. इस घटना में तीन बच्चों के एक पिता की मौत हो गई थी, जिसकी विधवा छह महीने की गर्भवती थी. ब्यूरेन के मुताबिक, अमरीकी राजनयिक अपने परिवार के साथ अगले दिन केन्या से बाहर चला गया और मृतक के अंतिम संस्कार तक के लिए मुआवजा नहीं दिया गया. गंभीर रूप से घायल आठ लोगों के इलाज पर आए खर्च का भुगतान नहीं किया.
ब्यूरेन ने इसी तरह के कई मामलों का उदाहरण पेश किया है. इन मामलों से साफ तौर पर जाहिर होता है कि अमरीका की नीति दोहरे मानकों वाली है तथा उसने कभी भी न्यायसंगत बातो का समर्थन नहीं किया.