बस्तर में मुश्किल में भाजपा
जगदलपुर | संवाददाता: नक्सल प्रभावित बस्तर में विधानसभा चुनाव भाजपा के लिये मुश्किल का सबब बन गया है. राज्य में सत्ता की चाबी बस्तर ही सौंपता रहा है. पिछले चुनाव में 12 में से 11 सीटों पर भाजपा का कब्जा था. लेकिन इस बार भाजपा अपने उम्मीदवारों की स्थिति को लेकर परेशान है. 2003 के चुनाव में भाजपा को 9 सीटें मिली थीं और 2008 में यहां की 11 सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया. हालांकि इस दौरान भाजपा की जीत का अंतर कम ही हुआ है.
पिछले चुनाव में जिन 11 सीटों पर भाजपा का परचम लहराया था, उनमें से 3 सीटें पहले से ही मुश्किल घोषित रही हैं, उसके अलावा कम से कम 4 सीटें इस बार कमजोर हालत में हैं.
बस्तर की 12 में से 11 विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में है. केवल 1 विधानसभा कांग्रेस को मिली है. कवासी लखमा अकेले ऐसे विधायक हैं, जो भाजपा की आंधी के बाद भी बच गये. लेकिन पिछले चुनाव में ही यह बात साफ हो गई थी कि अगर कांग्रेस ने जोर लगाया होता तो बस्तर में पार्टी का हाल ये नहीं होता.
बस्तर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के डा. सुभाउ कश्यप केवल 120 मतों से जीते थे. यह कुल मतदान का 1.24 प्रतिशत के अंतर का मामला था. इसी तरह अंतागढ़ से आज के वनमंत्री मंत्री विक्रम उसेंडी 109 मतो से यह चुनाव जीत पाये थे. यह कुल जमा 0.13 प्रतिशत था. इसी तरह कोंडागांव से लता उसेंडी 2.61 प्रतिशत से आगे थीं और कुल जमा अंतर था 2771 मतो का.
आंकड़ों में देखें तो 2.61 प्रतिशत से आगे होने का अर्थ है कि 1.40 प्रतिशत का बदलाव भाजपा को कोंडागांव से हरा सकता है. उसी प्रकार अंतागढ़ में 0.07 प्रतिशत तथा बस्तर में 0.75 प्रतिशत का बदलाव भाजपा को हराने के लिये काफी है. इसके अलावा भाजपा के कम से कम 4 विधायक ऐसे हैं, जिनसे पार्टी के नेता भी नाराज हैं. भाजपा की वर्तमान राजनीति बताती है कि इस बार बस्तर का मन डोल सकता है.
भाजपा को उबारने के लिये मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ लगातार सक्रिय है. इसके अलावा राज परिवार के कमलचंद भंजदेव के भाजपा प्रवेश से भी भाजपा अपने को मजबूत करने की कोशिश में जुटी हुई है. मुख्यमंत्री रमन सिंह के एजेंडे में भी बस्तर सबसे उपर है. कहा तो यह भी जा रहा है कि बस्तर के 11 विधायकों में से 4 से 5 विधायकों का पत्ता पार्टी काटेगी. लेकिन क्या वर्तमान विधायक अपना पत्ता कटने के बाद विद्रोह की हालत में नहीं होंगे ? अगर इसका जवाब हां में है तो फिर बस्तर में भाजपा को डरना ही चाहिये.
वैसे भी नक्सलियों के तमाम विरोध के बाद भी वाम पार्टियां इस बार कुछ इलाकों में मजबूती से खड़ी नजर आ रही हैं. भाजपा के नेता दबे स्वर में ही सही, मान कर चल रहे हैं कि इस बार भाकपा नेता मनीष कुंजाम विधानसभा पहुंचेंगे ही. कुछ सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है. ऐसे में इस बार भाजपा के लिये बस्तर ही मुश्किलें पैदा कर सकता है.