आरक्षण पर सरकार ने आदिवासियों को धोखा दिया-मनीष कुंजाम
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के तेज़-तर्रार आदिवासी नेता और सीपीआई के राज्य सचिव मनीष कुंजाम ने कहा है कि आरक्षण के सवाल पर आदिवासियों में भारी नाराज़गी है.
उन्होंने कहा कि इसका परिणाम कांग्रेस सरकार को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा.
पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज अगर एकजुट हो कर चुनाव की प्रक्रिया में भाग लेता है तो यह राज्य में परिवर्तनकारी फैसला साबित होगा.
उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रक्रिया के लिए बनाए जाने वाले गठबंधन का हिस्सा बनना उनके लिए सुखद होगा.
उन्होंने कहा कि बस्तर के इलाके में माओवादियों की ताक़त कुछ इलाकों में कम हुई है लेकिन यह कहना सही नहीं है कि बस्तर में माओवाद ख़त्म हो गया.
उन्होंने कहा कि माओवाद एक विचारधारा है और उसे ख़त्म नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा कि यह पहला अवसर नहीं है, जब माओवादियों के ख़त्म होने के दावे किए गये हैं. अगर माओवादी पूरी तरह से ख़त्म हो गए हैं तो फिर सरकार को नये कैंप बनाने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती.
आरक्षण पर आदिवासियों के साथ धोखा हुआ
उन्होंने कहा कि विधानसभा के विशेष सत्र में अगर सरकार आरक्षण को लेकर कोई नीति सामने लाती है तो भी उसे अदालत में चुनौती देने की आशंका बनी रहेगी.
श्री कुंजाम ने कहा कि सरकार ने 2012 के आरक्षण मामले में भी सही तरीके से पक्ष नहीं रखा, अन्यथा ऐसी स्थिति नहीं बनती.
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में रमन सिंह की सरकार ने 18 जनवरी 2012 को एक अधिसूचना जारी करते हुए अनुसूचित जनजाति को 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 12 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिया था.
इसे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसके बाद 19 सितंबर 2022 को हाईकोर्ट ने इसके युक्तिसंगत होने का कोई प्रमाण राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध नहीं कराये जाने के आधार पर इस आरक्षण को रद्द कर दिया था. इसके बाद से राज्य में आरक्षण का नियम या रोस्टर सक्रिय नहीं है.
मनीष कुंजाम ने कहा कि आख़िर आदिवासियों को 32 फ़ीसदी आरक्षण दिये जाने के पक्ष में राज्य सरकार हाईकोर्ट में कोई तथ्य क्यों नहीं रख पाई? यह बताता है कि सरकार चाहती ही नहीं थी कि आदिवासियों को 32 फीसदी आरक्षण का लाभ मिले.
मनीष कुंजाम ने कहा कि आरक्षण के मसले पर सरकार ने आदिवासियों के साथ कोई संवाद करने तक की ज़रुरत नहीं समझी.
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को आरक्षण रद्द किया लेकिन राज्य सरकार 50 दिनों तक चुप्पी साधे रही. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की ज़रुरत नहीं समझी गई.
श्री कुंजाम ने कहा कि जब दूसरे लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी, तब जा कर राज्य सरकार वहां पहुंची है. पता नहीं, वहां भी सरकार क्या करेगी.
पेसा कानून में आदिवासी हितों की उपेक्षा
उन्होंने कहा कि पेसा कानून के नियम बनाने में भी सरकार ने आदिवासी हितों की बुरी तरह से उपेक्षा की है. आदिवासी समाज में इस मुद्दे पर लगातार बैठकें हो रही हैं.
मनीष कुंजाम ने कहा कि पेसा क़ानून को कमज़ोर करने वाले नियम ला कर कांग्रेस पार्टी की सरकार ने साबित कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता में कारपोरेट है. आदिवासी उसकी चिंता में शामिल नहीं है.
बस्तर में बढ़ा है धार्मिक-सांस्कृतिक विवाद
मनीष कुंजाम ने कहा कि बस्तर के भीतर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के बीच टकराव बढ़ा है.
उन्होंने कहा कि संभव है कि कुछ इलाकों में ऐसे किसी टकराव के पीछे संघ या भाजपा का हाथ हो लेकिन कई इलाकों में आदिवासी समाज स्वस्फूर्त तरीके से सांस्कृतिक सवालों पर सामने आया है.
श्री कुंजाम ने कहा कि हमने चर्च के लोगों से बरसों पहले यह अनुरोध किया था कि जो आदिवासी चर्च में जाते हैं या प्रार्थना करते हैं, उनके द्वारा हम आदिवासियों की देवधामी या देवगुड़ी के आयोजनों का बहिष्कार, कटुता बढ़ाने वाला साबित हो रहा है. उन आदिवासियों को सांस्कृतिक मामलों में उदार होने की ज़रुरत है.
उन्होंने कहा कि हम आदिवासियों के अधिकांश त्यौहार फसलों से जुड़े हुए हैं. हम अपनी फसलों को पहले देवों को अर्पित करते हैं, फिर उसका उपभोग करते हैं. उसका भी अगर बहिष्कार होगा तो स्वाभाविक है कि गांव में टकराव बढ़ेगा.
उन्होंने कहा कि आदिवासी अगर अपने सांस्कृतिक पहलू से कट जाएगा तो वह आदिवासी भी नहीं रहेगा. यही तो आदिवासी की पहचान है.