BREAKING : हसदेव में नये कोयला खदान नहीं खुलेंगे
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि हसदेव अरण्य में नये कोयला खदान नहीं खोले जाएंगे. दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अमीर अडानी समूह के एमडीओ वाले दो खदानों के ख़िलाफ़ आदिवासी लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं.
पिछले एक दशक से चल रही आदिवासियों की लड़ाई के आगे राज्य सरकार को अंततः झुकना ही पड़ा.
इसी साल छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले परसा और 9 मिलियन टन वार्षिक कोयला उत्पादन की क्षमता वाले केते एक्सटेंशन को अंतिम मंजूरी दे दी थी. लेकिन अब सरकार ने नया कोयला खदान नहीं खोलने की बात कही है.
राज्य के वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव ने आज इसकी घोषणा करते हुए कहा कि परसा, केते एक्सटेंशन और पिंडराखी में कोयला खदान नहीं खोला जाएगा. उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद इसकी सहमति दी है.
हालांकि पहले से ही चालू अडानी के एमडीओ वाले परसा ईस्ट केते बासन के फेज-1 और 2 का काम चलता रहेगा.
इधर हसदेव में आदिवासियों ने कहा है कि जब तक सरकार इन नए कोयला खदानों को रद्द करने का आदेश जारी नहीं करती, तब तक वे इस पर बहुत भरोसा करने की स्थिति में नहीं हैं.
आदिवासियों को आशंका है कि अस्थाई रुप से संकट टालने के लिए राज्य सरकार ने यह घोषणा की है और देर-सबेर फिर से इन कोयला खदानों का काम शुरु किया जा सकता है.
उन्होंने आशंका जताई है कि आदिवासियों ने पहले से चालू परसा ईस्ट केते बासन खदान के दूसरे चरण का काम भी रोक रखा है, इसलिए सरकार चाहती है कि अभी कम से कम दो नई खदानों को शुरु करने के फैसले को वापस ले कर, पहले से चालू खदान के दूसरे चरण का काम शुरु करने पर किसी तरह सहमति बन जाए.
भूपेश बघेल खनन के पक्ष में
पिछले साल अक्टूबर में हसदेव के आदिवासियों ने हसदेव से राजधानी रायपुर तक पदयात्रा की थी.
उन्होंने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की थी.
लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साफ कह दिया था कि कोयला जरुरी है और खदान का काम नहीं रुकेगा.
उन्होंने उलटे आंदोलनकारियों का नेतृत्व करने वाले आलोक शुक्ला को कहा था कि वे पहले अपने घर की बिजली काटें, उसके बाद खदान के खिलाफ आंदोलन करें.
मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर कई बार कहा कि कोयला राज्य का मुद्दा नहीं है और केंद्र सरकार इसका आवंटन करती है. इसमें राज्य कुछ नहीं कर सकता.
हालांकि आंदोलनकारी लगातार पूछते रहे हैं कि अगर इसमें राज्य की भूमिका नहीं थी तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रातों-रात रायपुर पहुंच कर भूपेश बघेल से किस बात की फरियाद कर रहे थे और भूपेश बघेल ने उन्हें किस बात का भरोसा दिया था?
गौरतलब है कि कोयला खदानों की आरंभिक स्वीकृति भी राज्य सरकार जारी करती है और अंतिम स्वीकृति पर भी मुहर लगाने का काम राज्य सरकार करती है.
इससे पहले राज्य की विधानसभा ने सर्वसम्मति से संकल्प पारित करते हुए हसदेव अरण्य में सभी कोयला खदानों को रद्द करने की बात कही थी. यह अनुरोध केंद्र सरकार से किया गया था.
लेकिन राज्य सरकार ने अपनी तरफ से किसी तरह की कोई स्वीकृति रद्द नहीं की थी.
विपक्ष में थे तो इसे कहा था घोटाला
भूपेश बघेल सत्ता में जब नहीं थे तो उन्होंने हसदेव में कोयला खनन के खिलाफ आंदोलन किया था और एमडीओ को सबसे बड़ा घोटाला करार दिया था.
रमन सिंह सरकार नदियों को मार रही है. प्रदूषण है ही. अब नदी के कैचमेंट एरिया में खदानों की स्वीकृति दे दी गई है. हसदेव को बचाना होगा. pic.twitter.com/XDj6FNZXRW
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) April 21, 2017
हसदेव के मदनपुर के इलाके में चुनाव पूर्व राहुल गांधी, भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव आदि नेताओं ने 15 जून 2015 को सभा की थी और भरोसा दिया था कि कांग्रेस पार्टी उनके साथ खड़ी है.
अडानी का महाघोटाला छत्तीसगढ़ और राजस्थान की भाजपा सरकार की मिलीभगत और मोदी सरकार के संरक्षण में.
हसदेव नदी के जलग्रहण क्षेत्र में जंगल काटकर अडानी को अरबों का लाभ.
जांजगीर और कोरबा जिले में भविष्य में होगी पानी की कमी.
आदिवासी और हाथियों के बीच संघर्ष में वृद्धि. https://t.co/K32t4hzsvN— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) March 14, 2018
लेकिन सत्ता में आते ही भूपेश बघेल ने अडानी समूह के साथ एमडीओ को मंजूरी दे दी.
उसके बाद से ही वे हसदेव में कोयला खनन के पक्ष में खड़े हो गये थे.
आदिवासियों ने पदयात्रा के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होने के बाद इसी साल 2 मार्च से हसदेव में अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरु कर दिया था, जो आज तक जारी है.
हसदेव का मुद्दा
भारत में उपलब्ध 326495.63 मिलियन टन कोयला भंडार में से 59907.76 मिलियन टन कोयला यानी लगभग 18.34 फ़ीसदी कोयला भंडार छत्तीसगढ़ में है, जहां सर्वाधिक कोयला का उत्पादन होता है.
छत्तीसगढ़ के 184 कोयला खदानों में से, 23 कोयला खदान हसदेव-अरण्य के जंगल में हैं. आदिवासी 1,70,000 हेक्टेयर में फैले इसी हसदेव अरण्य के इलाके में परसा ईस्ट केते बासन, परसा और केते एक्सटेंसन जैसे कोयला खनन का विरोध करते रहे हैं.
परसा कोयला खदान और पीईकेबी खदान में लगभग 4.5 लाख पेड़ कटने का अनुमान है. लेकिन केते एक्सटेंशन में इससे भी अधिक पेड़ काटे जाने की आशंका थी.
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार केते एक्सटेंशन के 1760 में से 1742 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल है. ICFRE के अनुसार प्रति हेक्टेयर यहां 400 से अधिक पेड़ हैं. इस तरह यहां लगभग 7 लाख पेड़ के कटने का अनुमान है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किए गये अध्ययन में कहा गया था कि केते एक्सटेंशन का इलाका चरनोई नदी का कैचमेंट है और अगर यहां खनन हुआ तो चरनोई नदी प्रभावित होगी.
भारत सरकार की रिपोर्ट बताती है कि जैव विविधता और पारिस्थितकी के लिहाज से यह अत्यंत संवेदनशील इलाका है, जहां कई विलुप्त प्राय प्रजातियां पाई जाती हैं. इसके अलावा राज्य के पांच सौ से अधिक जंगली हाथियों का यह प्राकृतिक आवास रहा है. यह इलाका महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के घने जंगलों को झारखंड तक जोड़ता है, जहां वन्यजीवों का निर्बाध तरीक़े से आवागमन होता है.
यही कारण है कि 2010 में कोयला मंत्रालय और वन पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य के जंगलों की अति संपन्न जैव विविधता और पारिस्थितकी रुप से संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए इसे ‘नो-गो एरिया’ घोषित कर दिया था. इस इलाके में किसी भी तरह के खनन को प्रतिबंधित कर दिया गया था.
लेकिन कुछ ही सालों के भीतर, एक-एक कर इस इलाके को कोयला खदानों के लिए खोलने की शुरुआत हो गई.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारत सरकार के निर्देश पर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद यानी आईसीएफआरई ने इस इलाके का व्यापक अध्ययन किया और उसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.
इस अध्ययन में कहा गया है कि इस इलाके में कोयला खनन से यहां कि पारिस्थितकी तो प्रभावित होगी ही, इसका पूरे इलाके पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. इसके अलावा इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष और बढ़ने की चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार अगर इस इलाके में खनन हुआ तो यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय की आजीविका, पहचान और संस्कृति खतरे में आ जाएगी. इसके अलावा इलाके की नदियां भी प्रभावित होंगी.
विशेषज्ञों की राय है कि 433,500 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता वाले हसदेव नदी पर बना हसदेव बांगो बांध भी कोयला खनन के कारण प्रभावित होगा क्योंकि इस बांध का मुख्य कैचमेंट इलाका यही जंगल है. बिजली बनाने के लिए तो छत्तीसगढ़ के इस सबसे बड़े बांध के पानी का उपयोग होता ही है, बड़ी संख्या में उद्योगों को भी इसी बांध से पानी मिलता है.
हाथी-मानव संघर्ष
हसदेव अरण्य के घने जंगल बरसों से हाथियों का स्थाई आवास रहे हैं. यही कारण है कि 11 मार्च 2005 को राज्य सरकार ने इस इलाके के 450 वर्ग किलोमीटर में लेमरु हाथी रिजर्व बनाने का अशासकीय संकल्प विधानसभा से पारित किया, जिस पर 5 अक्टूबर 2007 को केंद्र सरकार ने अपनी सहमति भी दे दी. लेकिन कोयला खनन के कारण भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 2018 तक के अपने कार्यकाल में, इसकी फाइलें ठंडे बस्ते में डाल दीं.
इसके उलट राज्य में तेज़ी से कोयला खनन का काम ज़रुर शुरु हो गया और हाथी राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भटकने लगे. हर दिन मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं सामने आने लगीं.
आज की तारीख़ में कहीं हाथी मारे जा रहे हैं तो कहीं मनुष्य. लगभग 550 से अधिक जंगली हाथी, घरों, फसलों और मनुष्यों को रौंदते हुए, अपने घर और भोजन की तलाश में यहां से वहां भटक रहे हैं.
2018 में सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी की सरकार ने 15 अगस्त 2019 को, इन्हीं कोयला खदान के 1995.48 वर्ग किलोमीटर इलाके में हाथी रिज़र्व बनाने की घोषणा की. उसी महीने मंत्रीमंडल से इसकी मंजूरी भी हो गई. लेकिन साल भर बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई.
इसके बाद राज्य सरकार ने दो क़दम आगे बढ़ कर 3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हाथी रिजर्व बनाने की योजना पर काम करना शुरु कर दिया. इसके लिए ग्रामसभा भी की गई.
इस इलाके के कद्दावर नेता और मंत्री टीएस सिंहदेव ने हाथी रिजर्व के मामले पर अपना रुख साफ करते हुए मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी कि पूरे इलाके को यूपीए शासनकाल की तर्ज़ पर किसी भी तरह के खनन को प्रतिबंधित करते हुए, इसे फिर से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया जाए.
इधर राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य के 18 कोयला खदानों- परसा, केते-एक्सटेंशन, गिधमुड़ी-पतुरिया, तारा, पेंडराखी, सैदू उत्तर व दक्षिण, नकिया-1-2-3, भकुर्मा मतरिंगा, लक्ष्मणगढ़, पुटा परोगिया, मदनपुर उत्तर, मदनपुर दक्षिण, मोरगा-1, मोरगा-2, मोरगा-3, मोरगा-4, मोरगा दक्षिण और सरमा को हाथी रिज़र्व में शामिल करने का फ़ैसला किया.
राज्य सरकार ने केंद्र को कई चिट्ठी भी लिखी कि इस इलाके में कोयला खदानों की नीलामी न की जाए.
इसी साल 11 जनवरी को राज्य के खनिज सचिव अंबलगन पी द्वारा केंद्र सरकार को लिखी चिट्ठी की बानगी देखें- “हाथियों के संरक्षण, हाथी एवं मानव के बीच संघर्ष में हो रही वृद्धि को रोकने, क्षेत्र में अन्य जनधन की हानि को रोकने, पर्यावरणीय संतुलन को बनाये रखने, जल उपलब्धता के साथ प्रचुरता से विद्यमान जैव एवं वानस्पत्ति विविधता को संरक्षित करने के दृष्टिकोण से भविष्य में कोयला खदान आवंटन की प्रक्रिया से प्रस्तावित लेमरु हाथी रिजर्व क्षेत्र लगभग 3827 वर्ग किलोमीटर को संरक्षित किये जाने हेतु मदनपुर साऊथ कोयला खदान की भूमि को कोयला धारक क्षेत्र अर्जन और विकास अधिनियम 1957 की धारा-4 की उपधारा-1 के अंतर्गत कृत कार्यवाही एवं इस अधिनियम की अन्य धाराओं के तहत प्रस्तावित कार्यवाही पर राज्य शासन आपत्ति दर्ज करता है। अतः प्रकरण में आगामी कार्यवाहियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाये जाने का अनुरोध है.”
इस चिट्ठी में उसी मदनपुर के इलाके का उल्लेख था, जहां चुनाव पूर्व राहुल गांधी ने 15 जून 2015 को सभा की थी. राहुल गांधी ने आदिवासियों को भरोसा दिया था कि आदिवासियों और ग्राम सभा की सहमति के बिना कोयला खनन नहीं होगा और कांग्रेस पार्टी की सरकार उनके साथ है.
लेकिन इन तमाम चिट्ठियों और वादों का सच ये है कि सत्ता में आने के बाद सबसे पहले कोयला खदान के लिए आदिवासियों की ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया इसी मदनपुर में शुरु की गई और हाथी रिजर्व का दायरा घटा कर अधिसूचना जारी कर दी गई.
राहुल गांधी खनन के खिलाफ
कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी हसदेव में कोयला खनन के खिलाफ रहे हैं.
पिछले साल भर में उन्होंने दुनिया भर में हो रहे प्रदर्शनों के बीच कई अवसरों पर कहा कि वे आदिवासियों के साथ खड़े हैं.
यहां तक कि उन्होंने राज्य में आदिवासियों के प्रदर्शन को लेकर कैंब्रिज में दुहराया था कि वे आदिवासियों के प्रदर्शन को सही मानते हैं और जल्दी ही लोगों को हसदेव में उनकी सरकार का फैसला नज़र आएगा.
हालांकि उनकी घोषणा के बाद भी हसदेव में कोई भी कामकाज बंद नहीं हुआ.
उलटे राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में साफ कर दिया कि कोयला खनन हो कर रहेगा. उन्होंने आंदोलनारियों पर ही निशाना साधते हुए उनकी आलोचना की.