हिन्दू, मुसलमान और अम्बेडकर
कनक तिवारी
भारत इन दिनों अपने अस्तित्व में सबसे तेजी से खुदकुशी करने की जिद में डुबाया जा रहा है. कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी, दलित-उत्पीड़न, आदिवासी की लूट, कॉरपोरेटी जहरखुरानी और चरित्रहीन बल्कि मोरियों की तरह बजबजाती सड़ांध जैसी गैरजिम्मेदाराना नस्ल की राजनीतिक जुबानों के कारण बरबादी की ओर देश फिसलता जा रहा है. निजाम के कई रसूखदारों की निगाह में नागरिकों का मनुष्य होना तक नागवार है.
हिन्दू और मुसलमान कौमों के आचरण में जहरीली नफरत का पोचारा फेरा जा रहा है. कुछ लोग चाहते लगते हैं कि देश में उनके विरोधी रह ही नहीं जाएं. उनके लेखे तब ही देश अपनी रीढ़ की हड्डी पर खड़ा हो पाएगा.
उनके तर्कों के लिहाज से यह भले ही दूर की कौड़ी लगती हो, लेकिन मजहबी अफीम के नशे में ग़ाफिल रहने वाले लोगों को अपने जीने का एक नया मकसद मिल गया लगता है.
ऐसी जद्दोजहद से जूझते देश में कभी एक आवाज़ गूंजी है जिसने आज़ादी की दहलीज़ पर देश का भविष्य पढ़ लिया था. देश की संविधान सभा में दो टूक अपनी बात भविष्यमूलक भाषा में कह भी दी थी.
13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने टीम के कप्तान वाली हैसियत में संविधान की संभावनाओं का आकाश अपने असाधारण भाषण में बुना था. फिर जिम्मेदारी अमूमन अम्बेडकर को उन आदर्शों को अर्थमय भाषा और विचार में गूंथने की दी गई. 1947 और 1948 के दो वर्ष समितियों, उपसमितियों के विचार विमर्श में बीते.
4 नवंबर 1948 को अम्बेडकर ने अपने मौलिक प्रास्ताविक भाषण में बनने वाले संविधान की पहली बार शक्ल उकेरी थी.
1949 की 25 नवम्बर तक बहस मुबाहिसे के बाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी और पहली समावेशी किताब देश की अनुशासन संहिता भी बनी. विरोधाभास में हिन्दू मुसलमान नफरत का भी लेकिन वही दौर था. उसी आधार पर जिन्ना की जिद के कारण पाकिस्तान बना.
खूरेंजी, नफरत, हत्याओं, बलात्कार और लूटपाट का भी वही समय था. तब भी समय सापेक्ष चेतना से युक्त अम्बेडकर ने बहुत संक्षेप में एक और कालजयी चेतावनी बिखेरी थी.
हिन्दू-मुसलिम संघर्ष के उस संकुल समय में भी संविधान सभा में कहा था बाबा साहब के साहस ने कि देश में बहुसंख्यकों अर्थात हिन्दुओं और अल्पसंख्यकों अर्थात मुसलमानों दोनों ने गलत रास्ता अख्तियार कर लिया है.
यह बहुसंख्यकों का गुरूर है कि वे इस देश में मुसलमानों के अस्तित्व से ही इंकार करते हैं. मुसलमानों की भी ग़लती है कि वे खुद को हिन्दुओं से अलग थलग रहने में महफूज, संतुष्ट और परिपूर्ण महसूस करते हैं. कहा था अम्बेडकर ने कि ऐसा रास्ता तलाशिए जिस पर चलकर दोनों मजहबों के अनुयायी साभ्यतिक और सांस्कृतिक तौर पर एक दूसरे में घुल मिल जाएं, वरना भविष्य संदेहजनक है.
संविधान सभा ने अल्पसंख्यकों को जो सुरक्षाएं दी हैं, उनकी अम्बेडकर ने खुलकर ताईद की. यह भी कहा कि बहुसंख्यक याद रखें कि मुसलमानों ने अपना अस्तित्व और भविष्य बहुत भरोसे के साथ उनके हाथों में सौंप दिया है. उनका यह भरोसा उन्हें कायम रखना चाहिए.
यह भी कहा कि हिन्दू फिलहाल चुनाव के अभाव में राजनीतिक बहुमत में नहीं है. वे जातीय और धार्मिक आधार पर मजहबी बहुमत हैं.
इसलिए हठधर्मी और कट्टरपंथी हिन्दुओं को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा था कि याद रहे अल्पसंख्यक वे विस्फोटक ताकतें हैं, जो यदि फट पड़ें तो पूरे राज्य का ताना बाना तहस नहस कर सकते हैं. यह बहुसंख्यक वर्ग पर निर्भर है कि वह समझे कि उसे अल्पसंख्यकों को लेकर कोई भेदभाव नहीं करना है.
यह जिम्मेदारी बहुसंख्यकों पर है कि वे खुद तय करें कि अल्पसंख्यकों को अपने से अलग थलग रखना है या उनके साथ भेदभाव नहीं करते हुए उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा में अपना कर शामिल कर लेना है. बहुसंख्यकों के लिए दोनों विकल्प खुले हैं. जिस क्षण बहुसंख्यक वर्ग भेदभाव बरतने की आदत छोड़ देगा उसी क्षण अल्पसंख्यक व्यापक राष्ट्रीय धारा में एकजाई होकर शामिल हो जाएंगे.‘
बाबा साहब ने एक किस्सा भी सुनाया. आयरलैंड का विभाजन रोकने रेडमंड ने कार्सन से कहा था कि अपने प्रोटेस्टेंट अल्पसंख्यकों के लिए जितने चाहिए, वे संरक्षण ले लो लेकिन अपना आयरलैंड अखंड रहे. जवाब में कार्सन ने कहा था भाड़ में जाए आपकी सुरक्षा. हम आपकी हुकूमत के तहत ही नहीं रहना चाहते.
यह चेतावनी फिर बिखेरी बाबा साहब ने ‘‘भारत के मुसलमानों ने ऐसा नहीं कहा और बहुसंख्यकों के शासन के तहत वफादारी के साथ रहना स्वीकार किया.‘‘ यह सच ही तो है. जितने मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने और उसमें रहने का समर्थन किया उससे कहीं ज़्यादा मुसलमानों ने भारत के साथ रहना कुबूल किया.
आज जो कुछ हो रहा है उसे देखते हुए डॉ. अम्बेडकर की इबारत का एक एक शब्द आज नए संदर्भों में लगातार देश-कथा कह रहा है. देश के सांप्रदायिक सद्भाव से उपजी वैमनस्यता के भविष्य को लेकर सूत्रों के रूप में भाषा को वैचारिक धरातल पर प्रतिष्ठित करने का काम भी इस असाधारण बुद्धिजीवी ने किया.
दुनिया में इस्लाम के अनुयायी 130 करोड़ से ज्यादा हैं. उनमें कई हिंसक धड़े दोनों बड़े धड़ों में उन्मत्त होते रहते हैं. मुसलमानों के आतंकियों ने अमेरिका में दुस्साहस के साथ हमला किया ही है. पाकिस्तान से आकर कश्मीर सहित भारत में आते ही लगातार फिदायीन और अन्य हमले कर ही रहे हैं.
इस्लाम के उग्रपंथियों के चलते मध्य एशिया को तो छोड़ें, अमेरिका सहित यूरोपीय फ्रांस, इंग्लैंड, स्पेन सहित कई मुल्कों में हिंसक माहौल होता रहता है. पूरी दुनिया में मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं के बनिस्बत ज्यादा है. फिर भी किसी भी कौम या मजहब को मिटाने या कमतर करने की कोशिश अवैज्ञानिक, मनुष्य विरोधी और अतार्किक है.
भारत सामाजिक सहिष्णुता से कहीं ज्यादा सामाजिक समरसता का वैश्विक आशियाना रहा है. कैसा वक्त आ गया है? अशिक्षित, कूढ़मगज, हिंसक तत्व मोटर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठना चाहते हैं. आगे ढलान है. गाड़ी का ब्रेक टूट गया है. चालक एक्सीलरेटर पर पांव दबाने की जिद कर रहे हैं.
ऐसे गाढ़े वक्त में अम्बेडकर की आवाज़ समुद्र में भटक जाने वाले जहाजों का दिशासूचक यंत्र बनकर लाइट हाउस की तरह है. संविधान की इबारतों में देश के मौजूदा सवालों का हल अम्बेडकर के अनुभवसिद्ध आश्वासनों में गूंजता रहेगा.