हज़ारों हेक्टेयर वन क्षेत्र में बना दिया गौठान
रायपुर | संवाददाता : छत्तीसगढ़ में वन विभाग ने आवर्ती चराई के नाम पर, वन भूमि पर सैकड़ों गौठान बना दिए हैं. राज्य के अलग-अलग ज़िलों में कई-कई हेक्टेयर में बने इन स्थाई गौठानों को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं.
राज्य के आरक्षित वन क्षेत्र में बनाये गये इन कथित आवर्ती चराई केंद्र के निर्माण के लिए 5-5 लाख रुपये से अधिक की रकम खर्च की गई है.
इसे ‘आवर्ती चराई योजना’ का नाम दिया गया है लेकिन राज्य में इस नाम की कोई योजना अनुमोदित नहीं है.
पिछले साल जून तक के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार ‘आवर्ती चराई योजना’ में वन विभाग द्वारा जिला पंचायत को प्रेषित 1924 कार्यों में से 1734 कार्य स्वीकृत किए गये, जिन पर 17529.03 लाख खर्च करने के लिए स्वीकृत किए गये.
इस आवर्ती चराई योजना में कहीं रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत तालाब बना दिए गये तो कहीं पशुओं के बैठने के लिए शेड बना दिए गये. कहीं इसके लिए 10 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र की ज़मीन में निर्माण किया गया तो कहीं 5 हेक्टेयर में.
सरगुजा वनमंडल में वन विभाग द्वारा 59 आवर्ती चराई क्षेत्र बनाए गये, जिस पर 296.67 लाख रुपये खर्च करने का प्रावधान है. दिसंबर तक इन पर 76.26 लाख रुपये खर्च भी किए जा चुके थे.
इसी तरह सूरजपुर वनमंडल के 107 आवर्ती चराई केंद्र के नाम पर 758.12 लाख रुपये का प्रावधान रखा गया और दिसंबर तक 363.65 लाख रुपये खर्च भी हो चुके हैं.
कांकेर के भानुप्रतापपुर वन मंडल में 41 आवर्ती चराई के नाम पर 41 गौठान बना दिए गये, जिस पर 1352.03 लाख खर्च कर दिए गए.
दिलचस्प ये है कि इसके अतिरिक्त वन विभाग ने चारागाह विकास के नाम पर भी अलग से योजना बना दी.
चारागाह विकास योजना के नाम पर 2019-20 में 594 लाख, 2020-21 में 1026.17 लाख और 2021-22 में 3910.89 लाख यानी कुल 5531.06 लाख रुपये इस चारागाह विकास योजना के नाम पर लगा दिए गये.
इस आवर्ती चराई क्षेत्र में बनाये गये गौठानों से गोबर भी क्रय किया गया. उदाहरण के लिए पिछले साल दिसंबर तक सरगुजा वनवृत्त के 11 आवर्ती चराई क्षेत्र से 1,93,416 किलोग्राम गोबर ख़रीदा गया. इसके लिए 3,86,32 रुपये का भुगतान भी किया गया.
असल में क्या है आवर्ती चराई
आवर्ती या आवर्धिक चराई, वह चराई है, जिसमें वन को कई भागों में बांट कर उनमें से प्रत्येक में एक-दो माह या कुछ अधिक अवधि के लिए चराई क्रम से कराई जाये ताकि एक समय में एक ही भाग में चराई हो और अन्य भागों को आराम मिल सके.
जब चराई एक वर्ष या अधिक समय के लिए एक समय में बंद हो तो वह आवर्धिक चराई कहलाती है.
इस चराई में एक निश्चित अनुक्रम से चराई एक वर्ष या अधिक समय के लिए खुलती है और बंद होने के समय उस क्षेत्र को आवर्धिक बंद क्षेत्र कहा जाता है.