एक जनरल की मृत्यु से उठते सवाल !
श्रवण गर्ग
एक सौ चालीस करोड़ नागरिकों के राष्ट्र के एक सदस्य के रूप में हम विचलित करने वाली हेलिकॉप्टर दुर्घटना को लेकर किस तरह की बेचैनी का सामना कर रहे हैं ? जो हुआ है उसे लेकर क्या कोई सिहरन नहीं महसूस हो रही है ?
खुद से कोई सवाल नहीं पूछ रहे हैं कि सामरिक दृष्टि से एक संवेदनशील समय में इस सदमे को देश के नागरिकों द्वारा किस तरह से बर्दाश्त करना चाहिए ?
देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद पर नियुक्ति के साथ तीनों सेनाओं के बीच समन्वयक के रूप में कार्यरत एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का अचानक से अनुपस्थित हो जाना कितना बड़ा सदमा हो सकता है, सामान्य तरीक़े से महसूस कर पाना मुश्किल हो सकता है.
ऐसा इसलिए कि वायु दुर्घटनाएँ तो पहले भी कई हुई हैं पर इस तरह की बड़ी सैन्य क्षति हाल के सालों में देश के लिए पहला बड़ा धक्का है.
देश को एक बड़ा सदमा पहली बार तब लगा था, जब जनवरी 1966 में फ़्रांस-इटली के बीच फैली आल्प्स पर्वत श्रृंखला के ऊपर एयर इंडिया 101 विमान क्षतिग्रस्त हो गया था और उसमें देश के सर्वोच्च परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा का निधन हो गया था.
भाभा के निधन के हादसे को आधी सदी से ज़्यादा का वक्त गुज़र चुका है. इस बीच विमानन के क्षेत्र में भारत और दुनिया के मुल्कों ने अप्रतिम तरक़्क़ी कर ली है. दुनिया भर में हर दिन कोई एक लाख विमान उड़ान भरते और उतरते हैं. हर समय कोई पाँच लाख लोग आकाश में यात्राएँ करते रहते हैं. कुछेक विमान दुर्घटनाग्रस्त भी होते हैं. कई बार चमत्कारिक ढंग से यात्री बच भी जाते हैं.
छोटे विमानों की दुर्घटनाओं में संजय गांधी (जून 1980 ) और माधव राव सिंधिया (सितम्बर 2001) की मौतों ने तब देश में काफ़ी स्तब्धता पैदा की थी.
उक्त के अतिरिक्त लोकसभा के अध्यक्ष जी एम सी बालयोगी (2002), अविभाजित आंध्र के मुख्यमंत्री वाय एस राजशेखर रेड्डी(2009), अरुणाचल के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू (2011)आदि राजनेताओं की हेलिकॉप्टर/विमान दुर्घटनाओं ने भी तात्कालिक तौर पर खलबली मचाई थी.
ऐसा भी नहीं है कि सैन्य क्षेत्र में ऐसी घटनाएँ पूर्व में हमारे यहाँ नहीं हुईं हैं. परंतु आठ दिसम्बर 2021 को जो हुआ, वह इसलिए अलग है कि सीमाओं पर चीन की चुनौती के बाद से देश की सुरक्षा तैयारियों में जुटे और प्रतिरक्षा से जुड़े सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति और उनकी पत्नी सहित तेरह महत्वपूर्ण व्यक्तियों की जानें इस पीड़ादायक हादसे में गई हैं.
मीडिया में सार्वजनिक हो रही जानकरियों पर अगर यक़ीन करें तो दुर्घटनाग्रस्त हेलिकॉप्टर अत्यंत आधुनिक तकनीकी ज़रूरतों से सज्जित था. इनमें मौसम की जानकारी देने वाला रडार और नाइट विजन उपकरण भी शामिल हैं.
उड़ान भरने से पूर्व उसकी सम्पूर्ण तकनीकी जाँच कर ली गई थी. ट्विन इंजिन हेलिकॉप्टर के दोनों ही पायलट काफ़ी अनुभवी और प्रशिक्षण प्राप्त थे. इतने मज़बूत तकनीकी प्रबंधों के बावजूद हादसे का घटना आश्चर्य का विषय हो सकता है ?
मीडिया की चर्चाओं में यह भी शामिल है कि दुर्घटनास्थल के आसपास मौसम अचानक से बदल जाता है; हेलिकॉप्टर काफ़ी नीचे उड़ान भर रहा था इसलिए पेड़ों से टकराने के कारण उसमें आग लग गई होगी.
यह चर्चा भी कि सम्भवतः हेलिकॉप्टर पूर्व के अनुभवों से भिन्न किसी अन्य मार्ग से गंतव्य की ओर उड़ान भर रहा होगा और उतरने के लिए कोई सुरक्षित स्थान न मिल पाने के कारण क्षतिग्रस्त हो गया. हेलिकॉप्टर में अचानक से उत्पन्न हुई किसी तकनीकी ख़राबी की आशंका को भी जाँच पूरी होने तक निरस्त नहीं किया जा रहा है.
मीडिया की खबरों में हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के ठीक पहले के एक संक्षिप्त वीडियो में उसे पहाड़ियों के काफ़ी ऊपर उड़ते हुए दिखाया जा रहा है. हेलिकॉप्टर की आवाज़ कुछ स्थानीय लोगों के शॉट पर ख़त्म हो जाती है.
वीडियो में दिख रहे स्थानीय लोग जब उस तरफ़ पीछे मुड़कर देखते हैं तो एक व्यक्ति जानकारी प्राप्त करता प्रतीत होता है कि क्या हुआ ? क्या वह गिर गया या क्रेश हो गया ? एक और आवाज़ जवाब देती है-हाँ . भारतीय वायु सेना ने इस वीडियो की प्रामाणिकता को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है.
देश के सामान्य नागरिक की समझ से बाहर है कि एक ऐसे व्यक्ति, जिनके कंधों पर तीनों सेनाओं के प्रमुखों को साथ जोड़कर करोड़ों देशवासियों को बाहरी ताक़तों से सुरक्षा प्रदान करने की ज़िम्मेदारी थी, की अतिसुरक्षा प्राप्त संसाधनों के बीच भी मौत कैसे हो गई ?
अति महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों द्वारा तमाम तरह से चाक-चौबंद बंदोबस्त के बीच की जाने वाली यात्राएँ सामान्य बात है. ऐसे में यह दुर्घटना कई सवाल और चिंताएँ खड़ी करती है.
यह भी सोचा जा सकता है कि दुर्घटना को लेकर देश के नागरिकों की चिंताओं से इतर, हमारी सैन्य तैयारियों और उनसे सम्बद्ध लोगों की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखने वाले मुल्कों की प्रतिक्रियाएँ क्या हो सकतीं हैं ?
देश के प्रतिरक्षा प्रतिष्ठानों के चेहरों पर इस दुर्घटना के कारण खिंचने वाली लकीरों को पढ़कर नागरिक राष्ट्र के सुरक्षा इंतज़ामों के प्रति कितने यक़ीन के साथ निश्चिंत हो सकेंगे ?
दुर्घटना के कारणों की जाँच के लिए समिति बना दी गई है और उसने काम भी प्रारम्भ कर दिया है. दुर्घटना में जीवित बच गए ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का इस समय बंगलुरु में इलाज चल रहा है. स्वस्थ होने पर ही वे इस सम्बंध में कुछ भी जानकारी दे सकेंगे.
दुर्घटनाग्रस्त हेलिकॉप्टर का ब्लैक बॉक्स घटनास्थल से प्राप्त कर जाँच के लिए भेज दिया गया है.
सवाल यह है कि विधानसभा चुनावों को लेकर चल रही राजनीतिक आपाधापी और जनरल रावत के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति के चयन को लेकर उनकी अंत्येष्टि के पूर्व ही प्रारम्भ कर दी गई अटकलों के बीच हेलिकॉप्टर दुर्घटना की खबर आगे कितने दिनों तक सुर्ख़ियों में बनी रह सकेगी ? दुर्घटना के कारणों और परिणामों पर अब आगे कौन प्रकाश डालने वाला है ?
और अंत में यह कि क्या आज के अत्यंत विकसित वैज्ञानिक युग में किसी अन्य विकसित राष्ट्र में इस तरह की सैन्य दुर्घटना सम्भव है ? हेलिकॉप्टर दुर्घटना का विश्वसनीय सच जितनी जल्दी हो सके नागरिकों तक पहुँचना ज़रूरी है.
नागरिकों में वे परिवार भी शामिल हैं, जिनके प्रियजन दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हुए हैं और लाखों की संख्या का वह सैन्य बल भी, जिसके ज़िम्मे देश की सरहदों को सुरक्षित रखने की बड़ी ज़िम्मेदारी है.