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सुधा भारद्वाज की जमानत का विरोध सुप्रीम कोर्ट में खारिज

नई दिल्ली | डेस्क: छत्तीसगढ़ की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज की जमानत का रास्ता साफ़ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें सुधा भारद्वाज की जमानत रद्द करने का अनुरोध किया गया था.

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के डिफॉल्ट जमानत के आदेश पर मुहर लगाते हुए, एनआईए की याचिका खारिज कर दी.

पिछले बुधवार को ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज को 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में ज़मानत दे दी थी. जमानत की शर्तों को निर्धारित करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज को आठ दिसंबर को एनआईए की विशेष अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.

लेकिन इस आदेश के अगले ही दिन एनआईए ने सुधा भारद्वाज की जमानत पर रिहाई का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

सोमवार को एनआईए ने इस मामले की तुरंत सुनवाई की मांग की थी और कहा था कि डिफॉल्ट जमानत पर रिहाई के लिए 8 दिसंबर की तारीख़ तय की गई है. ऐसे में 8 तारीख़ से पहले इस मामले का सुना जाना ज़रुरी है.

आरोप

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के 15 आरोपियों में शामिल सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, आनंद तेलतुंबडे, गौतम नवलखा, शोमा सेन, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, ज्योति राघोबा जगताप, सागर तात्याराम गोरखे, सुधीर धवले, रमेश मुरलीधर गायचोर, महेश राउत, हनी बाबू, अरुण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस वकालत, लेखन या सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं.

भीमा कोरेगांव हिंसा में इनकी गिरफ़्तारी के बाद पुणे पुलिस ने इन पर हिंसा में शामिल होने के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का सनसनीखेज आरोप लगाया था. हालांकि एनआईए ने अपने आरोप पत्र में प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का कहीं जिक्र नहीं किया.

एनआईए ने अपने आरोप पत्र में इन सब पर प्रतिबंधित भाकपा माओवादी या उससे संबद्ध संगठनों से जु़ड़े होने की बात कही है. एनआईए ने इन पर ‘जनता सरकार’ की स्थापना के लिए, दीर्घकालीन सशस्त्र संघर्ष करते हुए, राज्य की शक्ति को कमजोर करने का आरोप लगाया है.

इन सभी के ख़िलाफ़ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, आपराधिक बल के माध्यम से सरकार को डराने, राजद्रोह, साजिश रचने, दो समुदायों के बीच नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए गये हैं और संबंधित धाराओं में मामले दर्ज़ किए गये हैं.

जमानत

एक दिसंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सुधा भारद्वाज के वकील ने तर्क दिया कि एनआईए एक्ट के तहत केवल एक विशेष अदालत को ही गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) क़ानून से जुड़े मामलों की सुनवाई करने की अनुमति दी गई थी.

लेकिन पुणे सत्र न्यायालय ने 2018-19 में इस मामले में संज्ञान लिया, जो नियम विरुद्ध था. ऐसे में पुणे सत्र न्यायालय के न्यायाधीश, केडी वडाने का आदेश शून्य होगा.

इस तकनीकी आधार से सहमति जताते हुए अदालत ने सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका स्वीकार की.

हालांकि अदालत में सुधा भारद्वाज के अलावा वरवर राव, सोमा सेन, सुधीर धावले, रोना विल्सन, एडवोकेट सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, वरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की ओर से भी ज़मानत याचिका दायर की की गई थी. लेकिन अदालत ने सुधा भारद्वाज के अलावा अन्य लोगों को जमानत देने से इंकार कर दिया.

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