Social Media

मुफ़्त की इस मज़दूर को जानते हैं आप?

क्रांतिसभंव | फेसबुक
एक घरेलू महिला अपने पूरे जीवन काल में 5 लाख के लगभग रोटियां बनाती है और लगभग 200 क्विंटल चावल को पकाकर भात बनाती है. कूकर कढ़ाई और तसली, कठौती जैसे 80 हजार बड़े बर्तन धोती है. साथ ही 2 लाख प्लेट धोती है. इसके अलावा वर्ग के अनुसार सवा से 2 लाख के करीब तश्तरी और कटोरियाँ धोती है.

शहरों के रेस्त्रां में जिस हिसाब से एक कूक/शेफ और सफाई कर्मी को उसके श्रम का मूल्य मिलता है, उस हिसाब से उपरोक्त संख्या के श्रम का मूल्य, रुपयों में कितना होना चाहिए?

किचन और घर के एरिया के हिसाब से झाड़ू-पोछा करने का हिसाब लगाइए. पूरे जीवन में वह कितने वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का झाड़ू-पोछा करती है. उस हिसाब से उसके सफाई करने के श्रम की कीमत क्या होनी चाहिए? इसके अलावा सवा से डेढ़ लाख बार खाना परोसने के लिए एक वेटर को उसके श्रम का कितना मूल्य मिलेगा?

किचन और घर की साफ-सफाई के अलावा कपड़े धोने, इस्त्री करने की कीमत मिला दी जाए तो एक घरेलू महिला के जीवन भर के श्रम की कीमत इतनी जरूर हो जाती है कि जिससे वह अपनी शर्तों पर, अपनी जिंदगी जी ले.

महिला श्रम के ऊपर कॉमरेड रोजा लग्जमबर्ग का एक प्रसिद्ध उद्धरण है- “जिस दिन औरतें अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी.”

इतना अटूट और कठिन श्रम जो पितृसत्ता मुफ्त में करा रही है, ऐसे में महिलाओं के पढ़ने लिखने और अपनी योग्यता के अनुसार चौखट से बाहर निकलकर अपने श्रम का मूल्य पाने से पितृसत्ता को दिक्कत तो होगी ही. अपनी मुफ्त मजदूर हाथ से बाहर जो निकल रही है.मैत्रेयी पुष्पा की पोस्ट में पितृसत्तात्मक सोच के पुरुष वाहवाही कर रहे हैं.

इंडस्ट्रियल रिवोलुशन और बाजार अर्थव्यवस्था में इनके घर में मुफ्त श्रम करने वाले मज़दूर अब घर से बाहर निकल रहे हैं और अपने श्रम की कीमत कमा रहे हैं. पितृसत्तात्मक लोगों को इनसे दिक्कत हो रही है. वे अपने मुफ्त के मजदूर खोना नही चाहते हैं. मैत्रेयी पुष्पा पितृसत्ता की उसी ख्वाइश को लिख रही हैं, जिसमें एक महिला, घर के भीतर मुफ्त मजदूरी कर रही होती है.

error: Content is protected !!