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निगाहें आपको ढूंढेंगी स्वामी जी!

योगेंद्र यादव
गेरुआ वस्त्र, सौम्य मुस्कान, तनी हुई रीढ़ और ओजस्वी वाणी- स्वामी अग्निवेश की उपस्थिति किसी भी समारोह या आंदोलन को प्रज्वलित कर देती थी. स्वामी जी को देखकर धर्म का मर्म समझ आता था- ना कर्मकांड, ना अबूझ बातों का आडंबर, न हीं अपने मत के प्रति अहंकार.

बिना कोई प्रवचन दिए स्वामी जी अपने जीवन से हमें सिखा गए कि एक सच्चे सन्यासी की कर्मभूमि मंदिर, मठ, आश्रम, जंगल या पहाड़ नहीं बल्कि समाज के भीतर है. हर सामाजिक कुरीति से लड़ना और हर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना ही सच का मार्ग है.

आज के समय स्वामी जी की सबसे बड़ी सीख है हिंदू धर्म की उदात्त परंपरा को जीवित रखने का उनका जीवट. धर्म के नाम पर असहिष्णुता और दबंगई के इस माहौल में स्वामी जी सर्वधर्म समभाव की परंपरा के जीते जागते प्रतीक थे.

चाहे सांप्रदायिक दंगा हो या किसी मानवाधिकार के हनन का मामला, कठिन से कठिन स्थिति में भी स्वामी जी हिम्मत के साथ खड़े रहते थे. अंततः इसी हिम्मत की कीमत उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अदा की.

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के माध्यम से उनका संघर्ष और उस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश देश में सामाजिक न्याय के आंदोलन के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा. लेकिन स्वामी जी ने अपने सरोकार को केवल अपने संगठन, अपने संघर्ष या अपने मुद्दे तक समेट कर नहीं रखा.

देश के हर जन आंदोलन के लिए स्वामी जी उपलब्ध थे. चाहे जल जंगल जमीन के आंदोलन हो या भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन या फिर किसानों का संघर्ष, स्वामी जी का सानिध्य और आशीर्वाद हम जैसे कार्यकर्ताओं को हर कदम पर मिलता था.

मुझे याद है 2017 में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की स्थापना के दिन भी वे हमारे बीच मौजूद थे. हरियाणा में शराब के खिलाफ आंदोलन के लिए वे हमारा हौसला बढ़ाते रहते थे, अपने पुराने संपर्कों से जोड़ते रहते थे.

बहुत कम लोग जानते थे कि आंध्र प्रदेश में जन्मे और बंगाल में दीक्षा पाए इस सन्यासी ने हरियाणा को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना.

इस बहुरंगी देश के सतरंगी जन आंदोलनों में जब-जब देश केसरिया को ढूंढेगा तो मेरी तरह सब लोगों की निगाहें आपको ढूंढेंगी स्वामी जी! मुझे इंतजार रहेगा कि ऊपर से किसी दिन आप का फोन आएगा: “महाराज कैसे हो !”

*योगेंद्र यादव जाने-माने चुनाव विश्लेषक, समाजशास्त्री और स्वराज इंडिया के संस्थापक हैं.

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