रेंजर संदीप सिंह का निलंबन वापस
रायपुर | संवाददाता :शिकारियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व के रेंजर संदीप सिंह को बहाल कर दिया गया है. संदीप सिंह और दूसरे वनकर्मियों पर हमला और फिर 4 महीने बाद संदीप सिंह को ही बिना जांच के निलंबित किये जाने की देश के जाने-माने वन्यप्राणी विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की थी. अलग-अलग राज्यों और दुनिया के कई देशों में काम कर रहे वन्यप्राणी विशेषज्ञों ने राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिख कर संदीप सिंह की तत्काल बहाली करने और राज्य में वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया था.
गौरतलब है कि 30 मार्च 2020 छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिज़र्व में वन्यजीवों के मुख्य निवास स्थल सुरही रेंज में एक तेंदुए की मानवनिर्मित ट्रैप में बुरी तरह घायल अवस्था की तस्वीर कैमरा ट्रैप में आई थी. किसी तरह तेंदुए को काबू में ला कर उसे बिलासपुर के कानन पेंडारी रेस्क्यू सेंटर ले जाया गया, लेकिन लगभग दो सप्ताह बाद इलाज के दौरान तेंदुए की मौत हो गई.
तेंदुए को मारने की नीयत से घायल करने वालों की जांच चल ही रही थी कि लगभग पखवाड़े भर बाद फिर 17 अप्रैल 2020 को, सुरही रेंज में ही घायल तेंदुये वाली जगह के आसपास ही धनुष और तीर से लैश चार ग्रामीणों की तस्वीर कैमरा ट्रैप में आई. इससे यह प्रमाणित हुआ कि उस क्षेत्र में शिकार करने वाले लोगों की लगातार उपस्थिति बनी हुई है. कैमरा ट्रैप में आई तस्वीरों के आधार पर चारों शिकारियों की शिनाख्ती की कार्रवाई शुरु की गई और आसपास के गांवों में पता लगवाया तो पुष्ट सूचना मिली की सभी चारों लोग निवासखार गांव के हैं.
शिनाख्ती सुनिश्चित होने के बाद 02 मई 2020 को वन विभाग के उच्च अधिकारियों के निर्देश पर रेंज वन अधिकारी संदीप सिंह 12 कर्मचारियों और डॉग स्क्वायड की एक टीम के साथ सुरही रेंज के निवासखार गांव में पहुंचे. आरोपियों की पहचान की गई और खून से सने हथियार, धनुष, तीर, तार के जाल आदि पाए गए और आरोपियों को हिरासत में लिया गया. लेकिन आरोपियों को अपने साथ लाने के क्रम में ही उनके परिजनों ने वन विभाग की टीम पर हमला कर दिया.
बंधक बना कर मारपीट
आरोपियों ने गांव के दूसरे लोगों को भी इकट्ठा कर लिया और इसके बाद दो आदिवासी महिला वन रक्षकों समेत सभी वनकर्मियों को गांव के लोगों ने बंधक बना लिया गया. सभी लोगों के साथ मारपीट की गई, उनसे उठक-बैठक कराई गई, उनके सेलफोन और अन्य सामान छीन लिये. मारपीट और वनकर्मियों के साथ अपमानित करने का यह सिलसिला दोपहर दो बजे से रात आठ बजे तक चलता रहा. बहुत अनुरोध के बाद बड़ी मुश्किल से वन कर्मियों को रिहा किया गया. इसके बाद रिहा किये गये वनकर्मियों को इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. रेंज वन अधिकारी संदीप सिंह की हालत गंभीर थी, इसलिये उन्हें अपोलो अस्पताल में कई दिनों तक इलाज के लिये भर्ती रखना पड़ा.
वनकर्मियों पर हुये इस हमले को लेकर अचानकमार टाइगर रिज़र्व की उप निदेशक ने 3 मई को लोरमी थाना में, गांव के 17 हमलावरों के ख़िलाफ ड्यूटीरत सरकारी कर्मचारियों से अपराधियों को छुड़ाने, सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने और मारपीट करने की नामजद रिपोर्ट दर्ज़ करवाई.
ग्रामीणों के इस हिंसक हमले की जांच के लिये पुलिस की एक टीम 4 मई को निवासखार गई हुई थी. हमले की आशंका के कारण पुलिस की इस टीम में कुल 72 जवानों को शामिल किया गया था. लेकिन जब पुलिस टीम गांव में पहुंची तो वहां पुलिस टीम पर भी हमला बोल दिया गया. इस हमले में कुछ पुलिस वालों को चोट आई और एक वाहन भी क्षतिग्रस्त हुआ. इस मामले में पुलिस ने 9 लोगों को हिरासत में लिया और 150 ग्रामीणो के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई.
31 जुलाई 2020 शिकारियों और अपराधियों के हमले की आशंका के मद्देनज़र रेंज अधिकारी को सुरही रेंज में नहीं जाने की हिदायत दी गई और बाद में 31 जुलाई 2020 को उनका स्थानांतरण कांकेर वन मंडल में कर दिया गया. इसके बाद 27 अगस्त 2020 विधानसभा में इस मुद्दे को एक विधायक द्वारा उटाये जाने के बाद संदीप सिंह को बिना किसी जांच के निलंबित कर दिया गया.
वन कर्मचारियों ने किया था विरोध
इस निलंबन को लेकर वन विभाग के मैदानी अमले ने भारी विरोध किया था. वन कर्मचारी संगठन से जुड़े लोगों ने वन मंत्री से मुलाकात कर मांग की थी कि अगर सप्ताह भर के भीतर संदीप सिंह की बहाली नहीं होती है तो वे अपना कामकाज बंद कर मुख्यालय में पहुंच जायेंगे.
इस पूरे मामले को लेकर देश के शीर्ष वन्यजीव विशेषज्ञों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कहा था कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में शिकार की घटनायें लगातार बढ़ रही हैं. ऐसे में इन्हें रोकने वाले वनकर्मियों को प्रोत्साहित किया जाना ज़रुरी है. इसके उलट वनकर्मियों के ख़िलाफ़ ही अकारण कार्रवाई से वन कर्मचारियों का उत्साह खत्म होगा और वन्यजीव अपराधों को रोकना मुश्किल होगा.
इन वन्यजीव विशेषज्ञों ने अपने पत्र में कहा था कि राज्य बनने के 20 सालों बाद भी नियमानुसार स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स और टाइगर सेल का गठन नहीं हुआ है. इसे भी जल्दी गठित करने की मांग पत्र में की गई थी. विशेषज्ञों ने कहा है कि नवंबर 2019 में गुरुघासीदास को टाइगर रिजर्व के तौर पर अधिसूचित करने का फैसला मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में किया गया था. इस दिशा में भी जल्दी पहल करने का अनुरोध पत्र में किया गया था.
पत्र लिखने वालों में भारत सरकार के प्रोजेक्ट टाइगर के पूर्व निदेशक पी के सेन, प्रोजेक्ट टाइगर के ही पूर्व निदेशक एम के रंजीत सिंह, भारत सरकार के बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के पूर्व निदेशक असद आर रहमानी, भारत सरकार की वाइल्ड लाइफ बोर्ड से जुड़ीं रहीं जानी-मानी लेखिका प्रेरणा सिंह बिंद्रा, वन्यजीव इतिहासकार रज़ा काज़मी, सुप्रीम कोर्ट में वन्यजीवों के विशेषज्ञ वकीलों में शुमार मृणाल कंवर, वन्यजीव विशेषज्ञ प्रणव कपिला, ओडिशा के आदित्य पांडा, मप्र व छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के सदस्य रहे प्राण चड्डा, छत्तीसगढ़ सरकार के वन्यजीव बोर्ड के वर्तमान सदस्य डॉक्टर राजेंद्र मिश्रा, मीतू गुप्ता, मोइज़ अहमद, नेहा सैमुअल, अमलेंदु मिश्रा और मोहित साहु शामिल थे.