विनोद कुमार शुक्ल को मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवार्ड
रायपुर | संवाददाता : देश के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल की किताब ‘ब्लू इज लाइक ब्लू’ को पहला मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवार्ड देने वाली जूरी ने कहा है कि विनोद कुमार शुक्ल अगर यूरोपियन लेखक होते तो वे विश्वप्रसिद्ध होते लेकिन हिंदी में लेखन के कारण उन्हें अलक्षित किया गया.
विनोद कुमार शुक्ल को यह अवार्ड बुकर पुरस्कार के जूरी सदस्य मार्गरेट बसबाई द्वारा दिया जायेगा.
इधर विनोद कुमार शुक्ल ने कहा है कि केरल के मीडिया समूह मातृभूमि द्वारा दिया गया पुरस्कार उनके लिये अप्रत्याशित है. उन्होंने कहा कि लिखना उनके लिये, लोगों से बातचीत करने की तरह है.
गौरतलब है कि रायपुर में रहने वाले विनोद कुमार शुक्ल के कहानी संग्रह ‘ब्लू इज लाइक ब्लू ’को पहले मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवार्ड के लिए चुना गया है. इसके तहत श्री शुक्ल को सम्मान पत्र और 5 लाख रुपये की सम्मान राशि दी जायेगी. इस किताब को हार्पर कॉलिंस ने प्रकाशित किया है.
उनकी किताब का चयन जिस निर्णायक मंडल द्वारा किया गया उनमें शशि थरूर, चंद्रशेखर कंबरा और डॉ सुमना रॉय शामिल थे.
1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्में विनोद कुमार शुक्ल पिछले 50 सालों से लिख रहे हैं. विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था. उनके उपन्यास नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में शुमार होते हैं. कहानी संग्रह पेड़ पर कमरा और महाविद्यालय भी लोकप्रिय हुये हैं.
इसी तरह लगभग जयहिंद, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, जैसे कविता संग्रह की कविताओं को भी दुनिया भर में सराहा गया है.
बच्चों के लिये लिखे गये हरे पत्ते के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का जैसी रचनाओं को भी पाठकों ने हाथों-हाथ लिया है.
दुनिया भर की भाषाओं में उनकी किताबों के अनुवाद हो चुके हैं.
कविता और उपन्यास लेखन के लिए रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, सृजनभारती सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, पं. सुन्दरलाल शर्मा पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 1999 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिल चुका है.
विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास’नौकर की कमीज’ पर जाने-माने फ़िल्मकार मणिकौल ने एक फ़िल्म भी बनाई थी.