चले जाना
गार्गी मिश्रा | फेसबुक
वस्तुएं अपने चले जाने का संकेत अजीब लेकिन बेहद स्वाभाविक ढ़ंग से देती हैं. ये साल के अंतिम दिन हैं. और मेरे पास से मेरी एक बेहद प्यारी चीज़ चली गई है. आप सोच भी नहीं सकते वो क्या चीज़ हो सकती है. तो वह है मेरा पानी का थर्मस. जानते हैं घर में कोई यात्रा पर जा रहा था और मैं घर में थी नहीं. मेरी माँ ने मेरा थर्मस उन यात्री को दे दिया. उस थर्मस को मैं पिछले दो साल से हमेशा अपने पास रखती थी. उसमें गर्म पानी रहता था. उस गर्म पानी से हरी चाय बना कर पीना मेरे एकान्त का हिस्सा था. कभी कभी यूं ही सादा पानी पीना. बल्कि मुझे लगता है पानी मुझे पीता था.
कुछ दिनों से जब मेरा थर्मस मेरी मेज़ पर नहीं दिखता था तो मैं एकाएक बेचैन हो जाती. रसोईं में बर्तनों में न जाने क्या उलट पुलट करती जबकि मैं जानती थी कि थर्मस तो नहीं है. अब थर्मस के न होने पर घर का एक पुराना थर्मस निकाला गया. उसे साफ़ किया गया और उसमें गर्म पानी रख कर मेरी मेज़ पर रख दिया गया. पर जानते हैं उस थर्मस को जैसे मेरी मेज़ भी स्वीकार नहीं कर पा रही थी. कभी कप में पानी ढ़ालने में पानी ज़्यादा गिर जाता और मेज़ पोश गीला हो जाता तो कभी मुझे भूल ही जाता कि मेज़ पर एक थर्मस रखा है और मैं पानी गर्म करने रसोईं की ओर बढ़ जाती.
आज सुबह जब उठी तो फ़िर ऐसा ही हुआ. टेबल पर एक थर्मस होते हुए भी मैं रसोईं की तरफ़ बढ़ गई. जब चूल्हे पर पानी गर्म करने को बर्तन रखा तो ये भूल गई कि पानी को गर्म होने में कितना वक़्त लगता है. पानी शायद गर्म हो चुका था और मैं कहीं और थी. पानी अब उबल रहा था. और एकाएक मेरे मन में एक ख़्याल आया कि यात्री आज वापस आ रहे हैं. फ़िर दूसरा ख़्याल आया कि एक बार ट्रेन में मेरा चश्मा छूट गया था और फ़िर मैं उसे कभी नहीं देख पाई. फ़िर मैं ख़ुद को समझाने लगी कि अरे नहीं थर्मस नहीं छूटेगा. फ़िर चुप रही. चुप चाप गर्म पानी ले कर आई कमरे में और सुड़क सुड़क कर पानी पीने लगी.
तभी कुछ देर में वे यात्री आए जिनके साथ मेरा थर्मस गया था. मैं उन लोगों से मिली और थर्मस के बारे में कुछ न पूछी. घर के ही लोग थे. यात्रा के बारे में पूछी. मुझे लग रहा था कि कहीं न कहीं मैं थर्मस के बारे में पूछने से बच रही थी. तभी एकाएक लौट कर आए यात्री ने मेरा पुकारू नाम लेते हुए कहा – अरे थर्मस तो ट्रेन में छूट गया. पहले मुझे लगा मज़ाक कर रहे हैं ऐसे ही छेड़ने के लिए जैसे बच्चों को छेड़ते हैं लेकिन वे सच बोल रहे थे. मैं हंस रही थी कि अभी वे मेरा थर्मस निकाल कर देंगे पर ऐसा नहीं हुआ.
जब अंततः मुझे ये मालूम हुआ कि मेरा थर्मस वाक़ई ट्रेन में छूट गया है तो मैं कुछ बोल ही नहीं पाई. कोई शिकायत नहीं कर पाई. आप लोग सोच रहे होंगे कि आख़िर ऐसा क्या था उस थर्मस में. ऐसा कुछ भी नहीं था. बमुश्किल एक लीटर पानी आता था. पर न जाने क्या था. बिचारा गिर के कहीं से पिचक भी गया था पर मैंने उसे अपने बिस्तर पर अपने सिरहाने अपनी मेज़ पर अपनी यात्राओं में हमेशा अपने साथ पाया था. आप यक़ीन करेंगे मेरी आँखों में आंसू थे जो किसी ने नहीं देखे. ऐसा ही होता है. बहुत ही सहज आंसू कहां दिख पाते हैं. घर वालों ने नया थर्मस ऑर्डर भी कर दिया. कितनी आसानी से भूला दिए जाते क्षण. वस्तुओं को जैसे कुछ मानते ही नहीं. वस्तुएं पर हमें याद करती हैं. उनकी एक स्मृति होती है.
पर अब जब वो थर्मस मेरे पास से जा चुका है जो मेरे पास दो वर्ष रहा जिसका मैंने कोई नाम नहीं रखा, जिसका अनाम होना ही नाम था, जो मेरा साथी था. मेरे एकांत और मेरे अन्तस की प्यास का साक्षी था अब वह मुझसे बिछुड़ गया है. मैं उसे अभी बहुत याद कर रही हूं. कितनी ठंड है. न मालूम वो कहां होगा. किसी ने उसे छुआ होगा भी या नहीं. क्या मालूम उसे किसी ने उठा लिया हो या फ़िर वो कहीं गिर कर लुढ़का हुआ हो. ईश्वर करें कि हमेशा उसमें पानी भरा रहे. पानी भी न रहा तब वह कितना अकेला हो जाएगा. एक भयावह खोखली गूंज. मैं प्रार्थना कर रही हूं वह थर्मस किसी बच्चे का गर्म पानी रखने के लिए किसी के काम आ जाए. जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा होगा मेरा थर्मस भी बड़ा होगा. एक दिन थर्मस बूढ़ा हो जाएगा. शायद उसे कभी मेरी याद आए.
समय जो कि कभी बीता ही नहीं उसके बीतने का बोध हमें हमेशा कराया गया है. ये साल के अंतिम दिन हैं और एक वस्तु चुप चाप मेरे पास से चली गई है. कितना सांकेतिक और मार्मिक है जीवन में वस्तुओं का होना. और होने के बाद एकाएक उनका न होना. उनकी खाली जगहों की पूर्ति कोई भी नहीं कर सकता. उन्होंने तब तब हमारा साथ दिया है जब भी संसार की समस्त जीवित बातें हमसे चूक गईं.